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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 सितंबर, 2018

गोष्ठी
यह धरती की सखी है

अमेय कान्त 

पिछले दिनों राजस्थान से आए दो वरिष्ठ साहित्यकारों, कहानीकार ओम प्रकाश भाटिया तथा वरिष्ठ कवि प्रो. आईदान सिंह भाटी से रूबरू होने का मौका मिला. गत 24 सितम्बर को इंग्लिश ट्यूटोरियल्स, देवास में शाम सात बजे हुई इस अनौपचारिक गोष्ठी में दोनों रचनाकारों ने श्रोताओं के बीच अपनी कुछ रचनाएँ साझा कीं.

आईदान सिंह भाटी रचना पाठ करते हुए

‘दीवान सालम सिंह’ उपन्यास के लेखक, कहानीकार ओम प्रकाश भाटिया ने राजस्थान में आने वाले विदेशी सैलानियों तथा यहाँ के स्थानीय व्यवसायों से जुड़े लोगों के बीच संबंध तथा आर्थिक असमानताओं से उपजी कई विडम्बनाओं पर आधारित जैसलमेर की पृष्ठभूमि में लिखी अपनी कहानी ‘बुर्ज, चाँद और धुआँ’ का पाठ किया. ओम प्रकाश भाटिया के उपन्यास ‘दीवान सालम सिंह’ की कहानी भी जैसलमेर और इसके आसपास घूमती है. लगभग पाँच वर्षों के गहरे शोध के बाद उनका यह उपन्यास वर्ष 2002 में प्रकाशित हुआ था. राजस्थान का ऐतिहासिक गाँव कुलधरा किस तरह एक ही रात में खाली कर दिया गया था, इसकी पूरी कहानी तथा उससे जुड़ी घटनाओं के बारे में उनके इस उपन्यास में पढ़ने को मिलता है. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि रचनाएँ संवेदना से उपजती हैं और अनुभव संसार से पुष्ट होती हैं. उन्होंने मित्रताओं में कम होती जा रही गर्माहट और रिश्तों में आते जा रहे ठंडेपन को बेहद तकलीफ़ के साथ बयाँ करती अपनी एक ग़ज़ल का भी बहुत उम्दा पाठ किया.

इनके बाद साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ कवि प्रो. आईदान सिंह भाटी ने अपनी कुछ प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया. उन्होंने हिंदी तथा राजस्थानी में ‘मेरी कविता’, ‘समंदर में प्यास लिख’, ‘मैं देख ल्यूं आबो-ज़मीं’ आदि कविताएँ सुनाईं.
‘यह कविता है मेरी अपनी’ में वे कहते हैं:

“यह धरती की साखी है
यह बतियाती है तामझाम से
मेरी कविता जन-अगत्स्य सी 
सोखे जिसने अनगिन सागर 
इस अन्यायी जन्म-जन्म के 
जिसकी साखी नत पड़ा है  
यह विन्ध्याचल युगों-युगों से
ऐसी है अवधूती कविता 
ऐसी है राखोड़ी कविता 
ऐसी है सावणिया कविता”

राजस्थान की मिट्टी से सनी और मानवीय मूल्यों से सराबोर अपनी लयबद्ध कविताएँ सुनाने के बाद उन्होंने श्रोताओं के साथ कविताओं से जुड़े कुछ अनुभव भी साझा किए. उन्होंने नए रचनाकारों से अपनी रचनाओं में लोक और स्थानीयता को बचाए रखने का आग्रह किया. उन्होंने बेहद विश्वास के साथ कहा कि अगर मुट्ठी भर लोग भी इस दिशा में सोच सकते हैं, इस विचार के साथ एक जगह इकठ्ठा हो सकते हैं तो यह अपने-आप में बहुत बड़ी बात है जो बहुत उम्मीद जगाती है.


ओम प्रकाश भाटिया रचना पाठ करते हुए

इस बेहद आत्मीय आयोजन में विक्रम सिंह गोहिल, सत्यनारायण पटेल, बहादुर पटेल, मनीष वैद्य, संदीप नाईक, प्रकाश कान्त, मनीष शर्मा, ज्योति देशमुख, बिंदु तिवारी, रश्मि शर्मा, शक्ति वैद्य, अमेय कान्त, श्रीकांत तेलंग, पियूष मुंगी आदि मौजूद थे. गोष्ठी के संचालन तथा अतिथियों के परिचय का दायित्व प्रसिद्ध कथाकार मनीष वैद्य ने संभाला.

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