कनॉट प्लेस की डायरी- आठ
फ्रेंड्सशिप डे
कबीर संजय
रोशनियां सीपी पर धूप की तरह नहीं बिखरतीं। बल्कि, जैसे पत्तों से छन-छन कर धूप जमीन पर गिरती है और जमीन पर धूप के अलग-अलग प्रिंट छप जाते हैं। रोशनियों का कुछ-कुछ ऐसा ही हाल सीपी में है। कनॉट सर्कल के बरामदे रोशनियों से चमक रहे हैं। गोलाकार इन बरामदों में घूमते-फिरते लोग जैसे रोशनियों में नहाए हुए हैं। रोशनियों ने इन पर अपनी मेहर की है। वे चमक रहे हैं। लेकिन, रोशनी के इस झिटपुटे में अंधेरों का आकार बड़ा सा है। रोशनियों के चमकदार प्रिंट छपे हुए हैं, लेकिन अंधेरों की कोई शक्ल नहीं उभर रही है। वो तो अपना बदन छिपाए हुए जैसे अंधेरों में ही मुंह गड़ा लेने की कोशिशों में जुटे हुए रहते हैं।
रविवार के दिन की यह शाम कनॉट प्लेस में खुशियों भरी थी। दिन में भी हल्की रिमझिम होती रही। मौसम सुहावना हो गया। खुशियों से भरा। गर्मी और उमस से दूर। गम और दुख से दूर। खुशियों के परिंदे अपनी चहचहाहटों से पूरे कनॉट प्लेस को गुलजार कर रहे थे। खास बात यह थी कि यह दिन दोस्ती का दिन था। रविवार हो और दोस्ती का दिन भी हो। यानी फुरसत भी हो, मौका और दस्तूर भी हो। कनॉट प्लेस में युवा उल्लास दमक रहा था।
वैसे तो हमारे ज्यादातर त्यौहार परंपराओं और धर्म ने निर्धारित किए हैं। यह उनका जिम्मा भी था। लेकिन, हाल के कुछ सालों में परंपरा और धर्म की जिम्मेदारी भी बाजार ने उठानी शुरू कर दी है। मसलन, फ्रेंड्सशिप डे है। पूरी दुनिया में मनाया जाता है। सब जगह लोग अपने दोस्तों की दोस्ती का दम भरते हैं। अपने दोस्तों को याद करते हैं। फ्रेंड्सशिप बैंड भी बांधते हैं। हां, ये बात और है कि इसे मनाने की तारीखें दुनिया के कुछ देशों में अलग-अलग हो जाती है। हमारे देश में शायद यह अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है। आप इस तारीख को भूल न जाएं, इसके लिए बाजार आपको पहले से ही आगाह भी करता रहता है। पुराने पंचांगों की भूमिका भी है यह।
खैर, तो यह छह अगस्त की शाम थी। अगस्त का पहला रविवार, यानी फ्रेंड्सशिप डे।
जब बिसलरी ने भारत में अपना पानी बेचना शुरू किया तब हमारे शब्दकोश में मिनरल वाटर भी शामिल हो गया। उसके पहले भले हम शुद्ध पानी पीते रहे हों लेकिन हमें हमारी शुद्धता का ही अहसास नहीं था। खैर, इस पवित्र मिनरल वाटर की जो बोतल मेरे हाथ लगी, उसकी बाहरी परत पर ठंडे पसीने की बूंदें चुहचुहा रही थीं। इसकी बोतल खोलकर मैंने घूंट-घूंट कम करते हुए उसे अपने मुंह में डालना शुरू किया। अंदाजा एकदम ठीक होना चाहिए। उतना पवित्र जल इसमें से बाहर जाना चाहिए, जितने पवित्र जल के लिए जगह बनाई जा सके। बिसलरी की बोतल में पवित्र जल के लिए जगह बनाने के बाद उसमें दूसरी बोतल उलट ली। दोनों पवित्र जल मिलकर एक हो गए। पारदर्शी। साफ। एकदम निर्दोष। पानी रे पानी तेरा रंग कैसा। जिसमें मिला दो, लगे उस जैसा।
ढक्कन बंद करने के साथ ही मैंने पहली बूंद चख ली। फिर हल्के कदमों से कनॉट सर्कल की एक बेंच पर आकर बैठ गया। सामने ओडियन गुप्ता पान भंडार का बोर्ड दिख गया। क्या खिचड़ी बन गई है। कहां ओडियन कहां गुप्ता। पर कुछ भी कहो, गुप्ता जी ने दिमाग क्या खूब लड़ाया है। प्राचीन ग्रीक और रोम में ओडियन शायद उन इमारतों को कहा जाता था, जहां पर गायन के अभ्यास होते थे, संगीत के आयोजन होते थे और कविताओं की प्रतियोगिता होती थी। इन सारे आयोजनों के लिए कनॉट प्लेस से बेहतर जगह क्या हो सकती है भला। ओडियन गुप्ता पान भंडार पर भी खास चहल-पहल है। पान की किस्मों और उनके अनूठेपन पर क्या तो मेरी निगाह टिकती। मेरी लड़खड़ाती हुई निगाहें तो दोस्ती की किस्मों पर टिकी हुई थी।
सामने तीन-चार सहेलियां तमाम तरह के मुंह बनाती हुई सेल्फी खिंचाने की जिद में लगी हुई थीं। सेल्फी में उनके मुंह ऐसे बन रहे थे कि सामान्य तौर पर इन्हें कोई चिढ़ाना भी समझ सकता था। लेकिन, वे खुश थीं। अपने दोस्तों के साथ ये शाम बिताने के लिए। मुझ से कुछ दूरी पर दो सहेलियां बैठी थीं। एक ने अपने हाथ में गत्ते का एक गिफ्ट पैक लिया हुआ था। अपनी सहेली को किसी प्रिंसेज की तरह बेंच पर बैठाकर बड़ी अदा से वो बाक्स के रिबन पर लगी गांठों को खोलने लगी। बड़ी अदा के साथ उसने बाक्स के अंदर से चॉकलेट निकाली और प्यार से अपनी सहेली के हाथों में थमा दिया। उसकी आंखों में आंखे डालकर। प्यार भरी नजर से। सहेली की आंखों में भी प्यार बसा हुआ था। ऐसी ही खास अदा में जवाब देते हुए चॉकलेट का एक टुकड़ा काटा और फिर उसे अपनी सहेली की तरफ बढ़ा दिया। सहेली ने भी उसमें से एक टुकड़ा काट लिया। दोनों के मुंह चॉकलेट की मिठास से भर गए। फिर उसने बाक्स की दूसरी परत हटाई। यहां पर एक अजब ही आश्चर्य छिपा बैठा था। उसमें से निकली बेला के फूलों की एक माला को एक सहेली ने अपनी दूसरी सहेली की माथे पर किसी मुकुट की तरह सजा दिया। यह कुछ-कुछ वैसा ही था जैसा अभी भी ओलंपिक समारोहों में युवतियों को जैतून की पत्तियों के मुकुट सजा दिए जाते हैं। दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़कर बैठी, जाने क्या-क्या बतियाती रहीं।
पता नहीं क्यों लड़के एक-दूसरे को इस तरह से प्यार क्यों नहीं कर पाते। क्यों। मेरी पीठ के पीछे पार्किंग में एक गाड़ी से टेक लगाए दो युवक भी अपनी दोस्ती का मजा ले रहे थे। दोनों के हाथ में बीयर के कैन थे। बीच-बीच में वे उसका घूंट भर लेते। हल्के नशे से उनकी आवाज में जोश और बेपरवाही आ गई थी। जोर-जोर से चिल्लाते हुए वे हर वाक्य की शुरुआत या अंत मां-बहन की गालियों से कर रहे थे। वाक्यों की बुनावट जिस तरह से थी, उससे ऐसा लग रहा था कि उनमें से कई गालियां छिटककर उन दोनों पर भी पड़ रही थी। लेकिन उन दोनों की दोस्ती भाइयों जैसी थी। इसलिए वे इसका बुरा भी नहीं मानते।
जापान को भी कनॉट सर्कल की खूब खबर है। जापान के प्रमुख ब्रांड में शामिल मिनी सायुज ने हाल ही में यहां अपनी दुकान खोली है। दिन भर लोग इसमें टूटे रहते हैं। भीड़ इतनी रहती है कि लोगों के कंधे हमेशा टकराते रहें। रोशनियों से नहाई इस दुकान के बाहरी हिस्से में जहां कनॉट प्लेस के एक मेहराब की परछाई पड़ रही है, वहां पर एक लड़की बैठी है। सात-आठ साल की। गंदी सी सलवार कमीज पहने। बाल एक-दूसरे में उलझ गए थे। वो किसी की तरफ देख नहीं रही थी। बस जमीन पर सिर गड़ाए हुए थे। उसके बगल में एक अंगोछे पर दूसरा बच्चा सोया हुआ था। एकदम नंगा। उसके शरीर पर कपड़े का एक सूत तक नहीं। इतनी चहल-पहल और शोर-शराबे के बीच भी उसकी नींद नहीं टूट रही। बस वो सो रहा है।(ठीक वैसे ही जैसे देश का भविष्य सो गया है।) या पता नहीं उसने अपनी आंखें बंद कर ली हैं। अपनी आंखें छिपा ली है और सबसे छुप जाना चाहता है। लड़की की आंखे कनॉट प्लेस के पत्थरों के डिजाइन के सूत्र तलाशती हुई गुम सी हो गई हैं। वो किसी से कुछ मांग नहीं रही है। चुपचाप बैठी है। इतने में ही एक खूबसूरत सी लड़की ने उसके हाथों में आलू कतले की एक प्लेट पकड़ा दी। धूल और गंदगी से लदी-फंदी उस किशोरी ने पहले तो अकबका कर उसे देखा। फिर चुपचाप प्लेट पकड़ ली। आलू कतले पकड़ाकर वो खूबसूरत सी लड़की उठी और कुछ दूर बैठे अपने ब्यावफ्रेंड के पास चली गई। वो दूर से बैठा यही सब देख रहा था। उसकी आंखों में अपनी दोस्त के लिए सराहना साफ दिख रही थी।
मेरी दाहिनी तरफ एक जोड़ा खड़ा न जाने कहां पर गुम हुआ पड़ा था। लड़के ने एक्टिवा को अपने पैरों पर टेक रखी थी। उसका स्टैंड नहीं लगाया था। लड़की उसके बगल में खड़ी थी। कभी बातों के दौरान वो एक्टिवा की सीट पर हल्का सा अपनी कमर टिका लेती। जोड़ी कुछ-कुछ मोटू-पतलू जैसी लग रही थी। लड़की थोड़ा मोटी थी। गाल भरे-भरे। सेहत के रंग से गाल गुलाबी हुए पड़े थे। उसने स्किन से मिलते-जुलते रंगों वाला फ्राक पहन रखा था। कंधों पर एक बारीक सी डोर उसे साधे हुए थी। ब्रा की पारदर्शी स्ट्रैप को कभी यह डोर ढंक लेती तो कभी सामने रख देती। इससे उसके गोल-गोल कंधे अपनी पूरी खूबसूरती के साथ नुमाया हो रहे थे। घुटने तक मुश्किल से पहुंचती फ्राक के नीचे से उसकी साफ-सुथरी टांगों का सौंदर्य भी अपना प्रदर्शन खुद ही कर रहा था। इस पर उसने हल्की बिना हील वाली चप्पल पहनी हुई थी। जिसके लेदर लुक वाले लेस टखने के ऊपर आते हुए पिंडलियों पर बंधे हुए थे।
लड़के ने एक ढीली-ढाली सी जींस पहन रखी थी। जिसके घुटने और जांघ पर खिड़कियों के दो अलग-अलग स्तर खुले हुए थे। चारखाने वाली शर्ट को अंदर खोंसने की जरूरत उसने नहीं समझी थी। बाल कुछ बिखरे थे। चेहरे पर हल्की उगी दाड़ी उसके गोरे चेहरे पर खूब फब रही थी। स्पोर्ट्स शूज और कलाई पर बंधी घड़ी उसके स्टाइल में इजाफा कर रहे थे। अपनी एक्टिवा को पैरों पर टेके वह अपनी आवाज के साथ ही दोनों हाथों से भी बात कर रहा था। उसके होंठों के साथ-साथ उसके हाथ भी चलते। चेहरे पर भंगिमाओं की लहर पर लहर जारी थी।
दूसरे की बात सुनना कोई अच्छी बात तो है नहीं। लेकिन, मैं आदत से मजबूर हूं। कुछ मजेदार हो रहा था। मैं सुनने लगा। दिन भर फ्रेंड्सशिप डे मनाने के बाद लड़का लड़की को मेट्रो पर छोड़ने आया था। लड़की को बस उससे विदा कहकर राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के लिए सीढ़ियां उतरनी थी। लेकिन, दोनों में से कोई जैसे जाने के लिए तैयार ही नहीं था। वे बात करते। फिर मिलने की बात कहते। लड़की कुछ अनिश्चित सी जाने के लिए कदम बढ़ाती कि तभी लड़का उसे रोक लेता।
तो फिर मैं चलूं।
हां, ठीक है। मिलते हैं।
ओके, सीयू।
पता है, मेरा ये सबसे अच्छा वाला फ्रेंड्सशिप डे था।
मेरा भी।
फ्रेंड्सशिप डे पर तुम मुझे हग नहीं करोगी।, लड़के ने जाते-जाते पूछा।
ओ-हो। इसमें क्या है। ये लो।
लड़की ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया। फिर अलग हो गई।
ठीक है फिर।
अच्छा चलो फ्रेंड्सशिप डे पर एक किस करो।
किस। लड़की कुछ अचकचा गई।
हां-हां।
लड़की भी बोल्ड बनी रही। उसने आगे की ओर झुककर उसके गाल पर किस कर दिया।
बस इतना जरा सा। नहीं, मजा नहीं आया।
ओके, बाबा। लड़की फिर आगे बढ़ी और उसने गाल पर किस करने के लिए अपने होंठों को आगे किया। लेकिन, तब तक लड़के ने अपना चेहरा आगे कर दिया और अपने होंठों से लड़की के होंठों को चूम लिया। कुछ पलों के लिए दोनों के होंठ जुटे रहे। फिर संभलते हुए लड़की पीछे हट हट गई।
उसकी आंखों में हैरत थी।
रागी, ये क्या। हम तो दोस्त है न।
अन्नी, ये हमारी दोस्ती के नाम।
रागी पर तूने बोला था न कि कुछ ऐसा-वैसा नहीं करेंगे हम। हम सिर्फ दोस्त बने रहेंगे।
लड़का अब इसका क्या जवाब देता। अरे, सुन तो पहले...
लड़की नाराज सी होती हुई मेट्रो की सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। लड़का हक्का-बक्का रह गया। पहले तो उसके पीछे लपकने को हुआ। फिर इरादा छोड़ दिया। उसने फोन पर ही उसे मनाने की सोची और मोबाइल पर उसका नंबर मिलाने लगा। फिर क्या हुआ। पता नहीं।
मैंने उधर से निगाह घुमा ली। बारिश की झिर्री थोड़ा तेज होने लगी थी। कनॉट प्लेस की पीली रोशनियों में ऐसा लग रहा था कि बारिश की टूटती लकीरें नीचे गिर रही हैं। कभी वे बनने लगती थीं, फिर टूट जाती थीं।
क्या स्त्री और पुरुष कभी अपनी देह की कैद से आजाद हो पाएंगे। क्या वे इसके आकर्षणों में बंधने से बच पाएंगे। दोस्तियों में भी क्या देह हमेशा बाधा बनी रहेगी। हम कब प्यार करेंगे और शरीर हमारे आड़े नहीं आएगा। पहले अपनी जरूरतें मनवाने।
मैंने पवित्र और पारदर्शी जल का आखिरी घूंट भी अपने गले से नीचे उतार दिया।
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कनॉट प्लेस डायरी की पिछली कड़ी नीचे लिंक पर पढ़िए
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