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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

10 नवंबर, 2017

नागेश्वर पांचाल की कविताएं


नागेश्वर पांचाल


कविताएं

एक - जाना
सुदूर प्रदेश से आते हैं पक्षी
और फिर लौट जाते हैं
उसका आना और जाना
काश, बिलकुल ऐसे ही होता।

जो मेरे लिए आना है
सुदूर प्रदेश के लिए जाना होगा।
ठीक इसका विपरीत भी सच है।

जाना, आने की विपरीत क्रिया नहीं है
जाने में पीठ होती है
आने में आँखें होती हैं
कान दोनों में होते हैं।
शायद यही वजह रही होगी कि
कान मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र या
सबसे ताकतवर शत्रु है।

उसके जाने के बाद जाना मैंने
जाना हमेशा बुरा नहीं होता।
उसके आने के बाद जाना मैंने
आना हमेशा अच्छा नहीं होता।

वो किसी भी मौसम में
नहीं लौटता सुदूर प्रदेश से
मनुष्य, पक्षी नहीं होते।

००
दो - देखना

कितने उलझे हुए हैं
कई जगह गणित के सिद्धांत |

उसकी दोनों आँखे बंद थी
और फिर उसने एक आँख खोली |
दोनों आँखे बंद होने पर देखना
एक आँख से देखने से,
बिलकुल आधा नहीं था |
दोनों आँखों से देखने की मात्रा
एक आँख से देखने से
बिलकुल दोगुना नहीं थी |

उसे गणित नहीं आता है
और मुझे देखना |


अवधेश वाजपेई


तीन - मिलना

ऐसा माना जाता है कि
दो समांतर रेखाएँ
क्षितिज पर कहीं मिलती हैं|
लेकिन ये नहीं पता कि
क्षितिज कहाँ मिलता है |

शायद मिलना जरुरी नहीं है,
जरुरी है साथ-साथ समान्तर चलते रहना
क्षितिज की खोज में |

मिलना बिछड़ने की प्री- क्रिया है
तो मिलने की प्री- क्रिया
साथ साथ चलना तो कतई ना हुई |

हम दोनों पटरियाँ हैं,
काश कोई ट्रेन हमसे गुज़रकर
बनारस तक चली जाए |


चार - उस मासूम बच्चे की तरह

कपड़े उतारकर बाहर निकला
कुंडली मारकर बैठा था सांप |
उसके जाने के बाद
बच्चे
किताबो में उसकी केंचुली रखते हैं ।

सुना है,
उससे विद्या आती है |

एक दिन के पास इतना वक्त था कि
मतभेद पैदा कर सके
तेरे मेरे बीच में |
एक सदी के पास इतना वक्त कहाँ
कि समझ सके हम, एक दूजे को |

मैंने अपने पास
किसी की केंचुली रखी थी |

लो मैं जा रहा हूँ
उस मासूम बच्चे की तरह
तुम मेरे कपड़े रखोगे ?



पांच -  गुज़िश्ता दिनों एक गोली चली है मेरे गाँव में

जवाबों के आसपास
रखे गए जब सारे सवाल
वहीँ कहीं वसीयत है
जिसका सवाल गुम हो गया है |

दुखद है सवालों के जवाब खोजना
लेकिन दर्दनाक है सवाल का गुम हो जाना ।

मैथी की सब्जी और मक्के की रोटी,
वो एक तिल्ली माचिस की उलटी कर
जादू दिखाता नन्हा बच्चा |

वो नई नई माँ बनी
गाय और भेंस के दूध का स्वीट |
इमली बेचकर कमाई गई
पारस की टाफी या मटका कुल्फी |

मेले से बंदूक का खरीद लाना
जिसका निशाना कभी लगा नहीं |

पांचवी कक्षा में पढ़ी
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के ........
या ईदगाह में ख़रीदा चिमटा
शक्ति या क्षमा का चाव |

गुज़िश्ता दिनों एक गोली चली है मेरे गाँव में
हाँ गाँधी
बहरहाल बाक़ी सब ठीक है
और मैं ?
हाँ मैं उन्नति कर रहा हूँ |
मैं सिर्फ इसलिए नहीं मरा
क्योंकि
मुझे सिर्फ कफ़न दिखाई दिया |

आँखों को मरने के लिए
जानते हो क्या क्या चाहिए ?


अवधेश वाजपेई


छह -
मुझे विस्तार पसंद था
अत: आकाश कभी मेरा मित्र नहीं हुआ |

हां उसे चाहता था मैं,
तो पाँव में घोड़े के नाल ठोक दी |

पीठ में छुरा घोप दिया
देखो ना
आँखों में शर्म तो थी उसके |

अंतिम बार उसके गले के तिल को चूमते वक्त
मुझे यूथेनेशिया का ख़याल आया |
मैं शामिल हूँ,
मेरी अंतिम यात्रा में |
मौत मंजिल नहीं होती
मौत होती है एक प्रक्रिया |


मुझे कुछ चुनना था
तो मैंने "कुछ नहीं " को चुना |
सीधे रास्ते पाँव की आदत बन जाते है तब
मोड़ पर चारो पाँव रखता हूँ |

उसे तितली बनना था तो
छिपकली पूँछ छोड़कर आगे चल दी |
गौर से पूछो
कुछ जवाब
अनाथ होते है |

सात -  ख़ाली झूलते फंदे

एक अधूरी ग़ज़ल
मिट्टी में दफ़न हुई और
अंकुरित हो गए ,
असंख्य मतले |

वेदना, संवेदना, विषाद
रिश्ते, राजनीति, अहसास, एहसान
रकीब, हबीब
सब जोड़ दो
लेकिन गैरवाजिब
और नामुमकिन है
मतले का मकता होना |

यारो,
फंदे में गर्दन भयानक है ,
पर सबसे भयानक है
आँखों में बसे
असंख्य, अनन्त
ख़ाली झूलते फंदे |
(रोहित की आत्महत्या पर उसकी याद में )


आठ - ओडिसी

अपना सा महसूस करता हूँ
हे ओडिसियस तुम्हे |

मैं तुमसा पराक्रमी नहीं
ना ही सूर्य सा आभामंडल मुझमे
तीव्रता में, मैं शून्य हूँ |

विवेक खो देता हूँ अक्सर
दिल के किसी छल में आकर |
ना तुम सी बुधिमत्ता,
ना वो अनुपमेय वाकचातुर्य |

किसी रणभूमि में नहीं मौजूद
मेरे जिस्म की एक भी बूंद
फ़िर भी
ओ ज्यूस-सम्भूत लेयरतीज के पुत्र ओडिसियस
जोड़ देता है मुझे, तुझसे
एक खामोश दर्द |
००

अवधेश वाजपेई


नौ -आस्था के कान
तुम बिलकुल अविश्वसनीय लगते हो,
सत्यनारायण भगवान के कथा के किरदार,
उल्कामुख की तरह |

मैं तुम्हारे इश्क़ में,
वो स्त्री हो गया हूँ
जिसे लगता है कि
उसे अवश्य पुत्र प्राप्ति होगी
इस बार के व्रत के बाद |

आस्था के कान
हाथ घुमाकर पकड़ना इश्क़ है



दस - हत्या


मैं जामुन के पेड़ के नीचे
अपने लब, गुलाबी कर रहा था
आँखों में था, एक गुलाबी लबों वाला चेहरा

मैं मोबाइल का फ्रंट कैमरा ऑन कर
मिलान करने लगा उसके लब और अपने लब
तभी सहसा नज़र पड़ी
बीड़ी की दुकान पर रखे अखबार पर

अब, एक प्रेम कविता की हत्या हो चुकी है
वज़ीरे-आज़म, के "दम का मोह" मगरमच्छ,
धीरे-धीरे, सारे प्रेम कवियों को निगल लेगा

फिर सारी प्रेम किताबें
पेड़ों से ठूँठ में बदल जाएगी
तब होगी, हज़ारो नकली कविताएँ,
और एक पाठक, मगरमच्छ


ग्यारह - पागल बुढ़िया

भिंडी लेलो, गोबी लेलो
भिंडी लेलो, गोबी लेलो
वो साक्षी की माँ, ले ले रे
ऐ भगवती ले ले रे
सब्जी वाला आया है।

जैसे ही कोई आता है गली नंबर 12 में
सब्जी वाला, आइसक्रीम वाला, दूध वाला
पागल बुढ़िया चिल्लाने लगती है
ओटले पर पड़ी पड़ी ।

गली में होती रहती है चर्चा कि
बुढ़िया जवानी में कहर ढाती थी
उसके नितंब का कोई तोड़ नहीं था
उसकी आंखें सूरज की रिश्तेदार थी

कहते हैं एक बार पुजारी ने भी

उसकी छाती को दबा दिया था।
सट्टे खेलने वालों को वो देती थी गालियां
उन्हें पकड़ने के बहाने पुलिस आती रहती थी।

वो किशोरों की माधुरी
युवाओं की जवानी
बुजुर्गों की ठरक थी।
तीन पीढ़ियों की नज़र उसपर होती थी
ग़नीमत है उसने कभी चुनाव नहीं लड़ा।

जिसे तुम कह सकते थे अपना
सरकारे कहने लगी शरणार्थी  ।
वो पेशावर की राजधानी
अब भी दिल्ली बताती है।
वसुदेव कुटुम्भ की सबसे ज्यादा हिमायती
मुझे वो बुढ़िया लगती हैं।

उसका पोल्का ढीला पड़ गया था
उसके ऊरोज़ो के सिकुड़न के साथ साथ
लेकिन कम न हुई गिरती नजरो की ठरक ।
बुढ़िया आदि हो गई इतना
कि उसे फर्क नही पड़ता
न जिस्म चीरती आँखों का
और ना फटे पोलके का|

मैं देख रहा हूँ जिस दिन बुढ़िया नही रहेगी
कई घरों की सब्जी, दूध और
बच्चो की आइसक्रीम छूट जाएगी।
एक पाकिस्तानी शरणार्थी
हिंदुस्तान की एक गली को
सूना कर सकती है।

कई दिनों पहले सियासतदानों ने
एक मुल्कों को सूना कर दिया था
जिसका ख़ालीपन तीन देश मे भर गया है।

एक बुढ़िया वहाँ चिल्ला रही है
ऐ हुक्मरानों शांति ले लो ।
००

बारह -
मसला आवाज़ खत्म करने का नहीं
साज़िश है कि कानों पर हो अधिकार।

एक दिन आप चिल्लायेंगे
और बहरे घोषित हो जाएंगे।

हर कहानी की आँख होती है
काश हर कहानी के पास कान हो।

हम बांधने में गर रह गए
पालिश किये बूट के तस्मे ।
तो तय है एक दिन
प्रगति मैदान जाने वाली मेट्रो भी
झंडेवालान पहुंचाएगी ।

 ००                                    
नागेश्वर पांचाल युवा लेखक और सामजिक उद्यमी है।
अपना अधिकांश वक़्त वो यात्राओ में गुजारते है और वर्तमान में फिल्म निर्देशन और लेखन के कार्य में लगे हुए है।मूल रूप से नागेश्वर उज्जैन जिले के ग्राम झुटावाद के निवासी हैं।

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