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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

22 अगस्त, 2018


‘सृजन संवाद’ में मूर्ति कला पर परमानंद रमण

प्रस्तुति: विजय शर्मा

19 अगस्त ‘सृजन संवाद’ की मासिक गोष्ठी में डॉ. परमानंद रमण ने मूर्ति कला पर अपने विचार रखे। वरिष्ठ लेखिका डॉ विजय शर्मा ने युवा कलाकार डॉ परमानंद रमन का परिचय देते हुए बताया कि डॉ रमन ने कला की पढ़ाई बीएचयू और खैरागढ़ जैसे सुप्रसिद्ध संस्थानों से की है। 


वर्तमान में ये केंद्रीय विद्यालय, टाटानगर में कला शिक्षक हैं और साहित्य में भी इनकी गहरी रुचि है। उन्होंने नए सदस्यों का परिचय भी दिया।

परमानंद रमण ने पावर पॉइंट प्रजेंटेशन की सहायता से मूर्ति कला की बारिकियों को स्पष्ट किया। डॉ रमन ने मूर्तिकला पर अपने लंबे व्याख्यान में इसकी कई बारीकियों पर चर्चा की। बताया कि मूर्तकला और मूर्तिकला को आमतौर पर एक ही समझा जाता है जबकि दोनों अलग-अलग है। पहले भले ही यह स्वांत: सुखाय कला थी पर अब यह रोजगार और आमदनी का जरिया भी है। एक अच्छे कलाकार को यश और शोहरत तो मिलती ही हैपैसा भी मिलता है। यही वजह है कि युवाओं का रुझान इस तरफ बढ़ा है। उन्होंने बताया कि डांसिंग गर्ल (नर्तकी) एक कांस्य मूर्ति है जो मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई थी। माना जाता है कि इसे 2500 ईसा पूर्व के आसपास बनाया गया होगा। यह मूर्ति महज चार इंच की है और इस पर इतना बारीक काम किया हुआ जिसे देखकर आश्चर्य होता है कि 5000 साल पुरानी सभ्यता में भी मूर्तिकला कितनी विकसित थी। 


स्कल्पर आर्ट की व्याख्या करते हुए डॉ रमन ने बताया कि इसके कई रुप होते हैं, जैसे, कार्विंगमॉडलिंग,कास्टिंग और इंस्टॉलेशन। पत्थर को बिना तोड़े यानि एक ही पत्थर को गढ़कर जो मूर्ति बनायी जाती है उसे एकाश्म (मोनोलिथ) कहा जाता है। मूर्तियों की मुद्राओं - समभंगद्विभंगत्रिभंग और अतिभंग के बारे में उन्होंने चित्र सहित समझाया। हाई रिलीफ़, बास रिलीफ़, फ़ुल राउंड आदि का अंतर भी उदाहरण सहित विस्तार से बताया। देश-दुनिया की विभिन्न कलाओं को सचित्र समझाते हुए उन्होंने देशी-विदेशी कलाकारों के बारे में भी बताया। पूरे समय गोष्ठी बहुत सक्रिय रही। विचारों का खूब आदान-प्रदान हुआ। परमानंद रमण ने सबके प्रश्नों का बड़े धैर्य के साथ उत्तर दिया और जिज्ञासाओं को शांत किया। गोष्ठी में आशुतोष झाआभा विश्वकर्मा,अखिलेश्वर पांडेयबीनू पांडेयमिथिलेश कुमार झा, अभिषेक कुमार मिश्राखुशबू रायअजय मेहताब, सुशांत कुमार ने चर्चा में भाग लिया।
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