‘सृजन संवाद’ में मूर्ति कला पर परमानंद रमण
प्रस्तुति: विजय शर्मा
19 अगस्त ‘सृजन संवाद’ की मासिक गोष्ठी में डॉ. परमानंद रमण ने मूर्ति कला पर अपने विचार रखे। वरिष्ठ लेखिका डॉ विजय शर्मा ने युवा कलाकार डॉ परमानंद रमन का परिचय देते हुए बताया कि डॉ रमन ने कला की पढ़ाई बीएचयू और खैरागढ़ जैसे सुप्रसिद्ध संस्थानों से की है।
वर्तमान में ये केंद्रीय विद्यालय, टाटानगर में कला शिक्षक हैं और साहित्य में भी इनकी गहरी रुचि है। उन्होंने नए सदस्यों का परिचय भी दिया।
परमानंद रमण ने पावर पॉइंट प्रजेंटेशन की सहायता से मूर्ति कला की बारिकियों को स्पष्ट किया। डॉ रमन ने मूर्तिकला पर अपने लंबे व्याख्यान में इसकी कई बारीकियों पर चर्चा की। बताया कि मूर्तकला और मूर्तिकला को आमतौर पर एक ही समझा जाता है जबकि दोनों अलग-अलग है। पहले भले ही यह स्वांत: सुखाय कला थी पर अब यह रोजगार और आमदनी का जरिया भी है। एक अच्छे कलाकार को यश और शोहरत तो मिलती ही है, पैसा भी मिलता है। यही वजह है कि युवाओं का रुझान इस तरफ बढ़ा है। उन्होंने बताया कि डांसिंग गर्ल (नर्तकी) एक कांस्य मूर्ति है जो मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई थी। माना जाता है कि इसे 2500 ईसा पूर्व के आसपास बनाया गया होगा। यह मूर्ति महज चार इंच की है और इस पर इतना बारीक काम किया हुआ जिसे देखकर आश्चर्य होता है कि 5000 साल पुरानी सभ्यता में भी मूर्तिकला कितनी विकसित थी।
स्कल्पर आर्ट की व्याख्या करते हुए डॉ रमन ने बताया कि इसके कई रुप होते हैं, जैसे, कार्विंग, मॉडलिंग,कास्टिंग और इंस्टॉलेशन। पत्थर को बिना तोड़े यानि एक ही पत्थर को गढ़कर जो मूर्ति बनायी जाती है उसे एकाश्म (मोनोलिथ) कहा जाता है। मूर्तियों की मुद्राओं - समभंग, द्विभंग, त्रिभंग और अतिभंग के बारे में उन्होंने चित्र सहित समझाया। हाई रिलीफ़, बास रिलीफ़, फ़ुल राउंड आदि का अंतर भी उदाहरण सहित विस्तार से बताया। देश-दुनिया की विभिन्न कलाओं को सचित्र समझाते हुए उन्होंने देशी-विदेशी कलाकारों के बारे में भी बताया। पूरे समय गोष्ठी बहुत सक्रिय रही। विचारों का खूब आदान-प्रदान हुआ। परमानंद रमण ने सबके प्रश्नों का बड़े धैर्य के साथ उत्तर दिया और जिज्ञासाओं को शांत किया। गोष्ठी में आशुतोष झा, आभा विश्वकर्मा,अखिलेश्वर पांडेय, बीनू पांडेय, मिथिलेश कुमार झा, अभिषेक कुमार मिश्रा, खुशबू राय, अजय मेहताब, सुशांत कुमार ने चर्चा में भाग लिया।
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