डायरी:
कनॉट प्लेस
तीन
बच्चे
कबीर संजय
वह बहुत ही ठाठ के साथ एमबेसी रेस्तरां के सामने वाली बेंच पर जाकर बैठ गई। जैसे ही मैले-कुचैले कपड़े पहने सात-आठ साल का एक लड़का उसे गुलाब देने आया, उसने तुरंत उसकी कलाई जोर से पकड ली।
कबीर संजय |
गुलाब बेचने वाले बच्चे को खतरे का अहसास हुआ। वो अपनी कलाई छुड़ाकर भागने लगा। लेकिन, सोहनी की पकड़ बड़ी तेज थी। उसने जोर-जोर से फटकारने की शुरुआत कर दी।
शर्म नहीं आती तुमको। भीख मांगते हुए।
दीदी हम भीख नहीं मांगत हैं।
तो, क्या गुलाब बेच रहे हो। कौन बिचवाता है तुमसे गुलाब।
जवाब देने का कोई फायदा तो है नहीं, यह सोचकर बच्चा बस किसी तरह अपनी कलाई को छुड़ाने के प्रयास में लगा हुआ है। हमका छोड़ो।
कनॉट प्लेस में हर दिन लाखों लोग आते हैं। इनमें से कई विदेशी भी होते हैं। लेकिन, यहां पर भीख मांगने वाले इतने ज्यादा है कि विदेशी हमारे देश की क्या छवि लेकर जाते होंगे। छोटे-छोटे बच्चों को उनके मां-बाप भीख मांगने के काम में लगा देते हैं। उन्हें कोई छोटी-मोटी चीज दे देते है। उन चीजों को वे लोगों को बेचने की कोशिश करते हैं। बच्चे हैं तो लोग दया करके खरीद लेते हैं। पर है तो यह भीख मांगने जैसा या बाल श्रम जैसा। इस पर लगाम लगाना है। अधिकारियों का आमतौर पर खयाल कुछ ऐसा ही था।
इसका अभियान छेड़ा गया था। इसमें पुलिस, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के अलावा कुछ छात्र-छात्राओं की टोली भी लगी हुई थी। सोहनी इस टीम की नेता थी। अपने कॉलेज में भी वो वाद-विवाद प्रतियोगिता से लेकर मैराथन तक में अव्वल रहती थी। जिस साल कॉलेज में दाखिला हुआ, वही मिस फ्रेशर हुई। उम्मीद पूरी है कि जिस साल वो कॉलेज से विदा होगी मिस फेयरवेल भी वही होगी। भिखारी बच्चों और बाल श्रम कराने वालों को पकड़ने की उसकी अपनी अदा थी। खुद अनजान बनकर किसी बेंच पर बैठकर जाल बिछा लेती और जैसे ही कोई फंसता वो तुरंत ही उसे जकड़ लेती।
स्कूल नहीं जाते तुम। क्या उम्र है तुम्हारी।
लड़का चुप रहा।
स्कूल क्यों नहीं जाते तुम।
लड़का चुप रहा।
सोहनी का स्वर और तेज हो गया। पता नहीं कैसे मां-बाप है। अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते। अरे सरकारी स्कूल है। फीस लगनी नहीं है। यूनीफार्म खुद स्कूल वाले देते हैं। कापी किताब भी मिलता है। दोपहर में खाना भी मिलेगा। पर ये लोग रह जाएंगे भिखारी के भिखारी। इन्हें तो भीख मांगने में ही मजा आता है। बस उसी में लगे रहते हैं।
मैले-कुचैले कपड़े पहने एक छोटे बच्चे और उसे पकड़कर डांट-फटकार रही युवती के इर्द-गिर्द एक छोटी सी भीड़ लग गई। एक आदमी ने दबे हुए स्वर से कहा, अरे जाने दीजिए मैडम, गरीब लोग हैं।
सोहनी बिफर पड़ी। गरीब हैं तो क्या भीख मांगेगे। गलती इनके मां-बाप की है। इतने ज्यादा बच्चे वे पैदा ही इसीलिए करते हैं ताकि एक को भीख मंगवा सके तो दूसरे को पाकेट मारने भेज सकें।
उस आदमी ने प्रतिवाद करना चाहा, मजबूरी में मांगने चले आते हैं।
सोहनी को तो जैसे आग लग गई, वो चिल्ला पड़ी, आप जैसे लोगों के चलते ये सब पनपते हैं। आप तो ठेकेदार नहीं है इसके। बच्चों से भीख मंगवाकर लोग अपना पेट भरते हैं। पता नहीं कैसे लोग हैं। शर्म नहीं आती।
चीख-चीख कर बोल रही सोहनी के होठों के कोने से झाग भी निकलने लगे। मैली-कुचैली साड़ी पहने एक औरत काफी देर से उस गोल घेरे के आस-पास मंडरा रही थी। उसने हल्के से कहा. छोड़ देव। छोड़ देव।
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सोहनी ने उसे देखा, तुम इसकी मां हो। तुम भीख मंगवा रही हो इससे। रुको जरा अभी पुलिस को बुला रही हूं मैं। पढ़ने नहीं भेजती। उसने अपने हैंडबैग की जिप खोली और उसमें से मोबाइल निकालने लगी।
इसी बीच उसका ध्यान थोड़ा सा भटका। लड़के ने अपनी कलाई छुड़ाई और भीड में गायब हो गया। सोहनी उस पर चिल्लाती, लाख लानत-मलामत करते हुए अपना हाथ मलते खड़ी रह गई।
कुछ देर बाद सोहनी फिर से एक रेस्टो-बार के सामने बेंच पर जाल बिछाए बैठी थी। जबकि लड़का कनॉट सर्कल के दूसरी तरफ किसी दूसरी महिला को गुलाब बेचने या फिर उससे कुछ भीख लेने के लिए रिरिया रहा था।
कनॉट प्लेस की दूसरी कड़ी ' बीमारी ' नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/08/blog-post_40.html?m=1
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