माधव राठौड़ की कहानियाँ आधुनिक सोच और नए यथार्थ को रचती है - प्रेम भारद्वाज
प्रस्तुति: कमलेश तिवारी
युवा कथाकार माधव राठौड़ के प्रथम कहानी संग्रह “मार्क्स में मनु ढूँढती” का विमोचन सृजना संस्था के बैनर तले होटल प्रतीक, जोधपुर में हुआ।
इस अवसर पर प्रदेश भर के साहित्यकार,मीडियाकर्मी, बुद्धिजीवी और शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ कहानीकार और पाखी के संपादक प्रेम भारद्वाज थे | उन्होंने माधव की कहानियों पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि माधव को यह बहुत पहले ही लिखनी चाहिए । इन कहानियों को पढ़ते हुए इसके बैकग्राउंड में उदासी ,दुःख और बेचैनी का संगीत बजता है | उन्होंने विदेशी लेखक के हवाले से कहा कि जीवन की अर्थहीनता ही मनुष्य को अर्थ रचने के लिए विवश करती है| इसलिए इन दुखों और अंधरे के बीच जीवन की उम्मीद और चिराग को खोजना होगा |
प्रेम भारद्वाज ने कहा कि माधव आधुनिक सोच और नए यथार्थ के कथाकार है जो व्यक्तिगत स्वंतत्रता पर बात करते हैं। हालाँकि विचारधारों के अंत की बात बहुत पहले हो चुकी है | आज का समय व्यक्तिगत स्वन्त्रता की छटपटाहट लिए हुए है इसलिए इन्सान को कैसे बचाया जाये यह बड़ी चुनोती है आज के लेखक के सामने |माधव की कहानी रेगिस्तान में सहेजे हुए पानी की तरह है।
अध्यक्षीय उद्धबोधन में डॉ सत्यनारायण ने कहा कि माधव की कहानियों में संभावना की उजली पंगडंडी है। इनमें छूटे हुए यथार्थ की बेचैन करने वाली कहानियाँ है। इन कहानियों में जीवन के भीतर से जीवन को तलाशने की कवायद है | डॉ सत्यनारायण ने कहा कि माधव राठौड़ की कहानियाँ अपने समय से रूबरू ही नहीं होती बल्कि उसकी चुनौती को भी स्वीकार करती है | एक रचनाकार आज की चिंताओं को अपने साहित्य में तभी अभिव्यक्त करने में सक्षम हो सकता है जब वह उसे आत्मसात कर सके | माधव की कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि वह अपने समय और उसकी चिंताओं से बखूबी वाकिफ़ है | शीर्षक कहानी “मार्क्स में मनु ढूँढती” सिर्फ कहानी ही नहीं बल्कि वह हकीकत है जो उन सवालों से जुझती है जिससे आज के अधिकांश लोग इन दोनों के बीच में झूल रहे हैं |
विमोचन के अवसर पर अपनी किताब पर बोलते हुए माधव राठौड़ ने बताया कि इसमें इंसान के अकेलेपन दुख और बेचैनी की व्यथा है । सच कहूँ तो साहित्य मेरे लिए वो खोह है जो मुझे जेठ में तपते रेगिस्तान में खेजड़ी सी छांह देता है | माधव ने अपनी कहानियों बारे में बताते हुए कहा कि इन कहानियों में अपने आसपास बिखरे हमारे समय को देखा है और उसे कहानी में कहने का प्रयास किया है | यह पात्र मुझे कई दिन तक बैचेन करते रहे | अपने आसपास रेगिस्तान की तरह पसरे दुःख को शब्दों में बयाँ करना मेरे लिए सदैव कठिन रहा | इनके पात्र मुझे विन्सेंट गॉग, काफ्का, चेखव ,कामू, मार्केज ,स्वदेश दीपक,भुवनेश्वर और निर्मल वर्मा की कहानियो और जीवनी की याद दिलाते कि फ़्रांस के पेरिस शहर की गलियाँ ,मास्को के गाँव और दागिस्तान के लोगो में और मेरे थार के रेगिस्तान के लोगों के भीतर पसरे दुखों में ज्यादा कोई फर्क नहीं है |
राजस्थान के वरिष्ठ कहानीकार हबीब कैफ़ी ने कहा कि कहानी मुकम्मल होने के बाद उसका पहला पाठक लेखक स्वयं होता है। दूसरा सार्वजनिक होने पर पाठक और तीसरा आलोचक और चौथा लेखक जब एक कहानीकार के रूप में आता है ।
हबीब कैफ़ी ने कहा कि माधव की चारों कहानी मिलकर एक कोलाज़ बनाती है जिसमे गरीबी,महानगर,उदासी और प्रेम सब शामिल हैं। इनकी कहानियां एक विस्तार लिए है जिनमें नये समय की आहट को महसूस किया जा सकता है |
युवा रचनाकार किशोर चौधरी ने माधव राठौड़ की किताब पर बोलते हुए कहा कुछ रचनाकारों की रचनाएँ स्वयं सी लगती है । इन कहानियों को पढ़ते हुए अपनी कहानियों से अनुभूति होती है।
उन्होंने हंगरी लेखक की कहानी से समझाते हुए कहा कि इन कहानियों में रेगिस्तान का दुख पसरा है। कई जगह माधव तुरंत कहानी को समेट कर अगली कहानी में पाठक को प्रवेश कराते है | इन कहानियों के पात्रों को पढ़ते हुए आप अपने आसपास के सच से रूबरू होते है |
कार्यक्रम संचालन कहानीकार डॉ हरीदास व्यास ने करते हुए कहा कि आज का समय एक लेखक के लिए चुनोती भरा है जिसमें लेखक के सामने दोनों तरफ से चुनोती है जिसे स्वीकार करते हुए सृजन करना होता है |
धन्यवाद बाड़मेर से आये त्रिभुवन सिंह राठौड़ ने ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में डॉ पद्मजा शर्मा ,कैलाश कौशल,सरोज कौशल ,मीठेश निर्मोही, जेबा रशीद, मुरलीधर वैष्णव, हरिप्रकाश राठी, उषा रानी ,अयोध्या प्रसाद गौड़ ,दशरथ सोलंकी , डॉ फतेह सिंह भाटी, राकेश मुथा, श्याम सुंदर भारती, कमलेश तिवारी, रेणु वर्मा ,किरण राजपुरोहित,डॉ वीणा चुण्डावत सहित पूना, वर्धा, अहमदाबाद, बाड़मेर ,जैसलमेर, जालोर,सिरोही उदयपुर ,नागौर से आये साहित्यकार प्रेमी उपस्थित थे।
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माधव राठौड़ की कविताएं नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/05/60-c-73-7-11-1985.html?m=1
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