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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

13 अगस्त, 2018


धर्मनिरपेक्षता: वर्तमान चुनौतियाँ पर संगोष्ठी संपन्न

मॉबलिंचिंग(भीड़ द्वारा हत्या) एक राष्ट्रीय अपराध: इरफान इंजीनियर





रायपुर, 11 अगस्त 2018। विमर्श एवं पीस रायपुर द्वारा असगर अली इंजीनियर स्मारक व्याख्यान के तहत् ’’धर्मनिरपेक्षता: वर्तमान चुनौतियाँ’’ विषय पर सेमीनार का आयोजन रायपुर में गत 11 अगस्त को शहीद खुदीराम बोस की शहादत दिवस के अवसर पर किया गया। इस कार्यक्रम में प्रख्यात चिंतक, साहित्यकार, सीएसएसएस मुंबई के संयोजक व इंडियन जर्नल ऑफ सेकुलरिज्म के संपादक इरफान इंजीनियर  ने मुख्य वक्तव्य रखा। देशबंधु पत्र समूह के प्रधान संपादक ललित सुरजन  ने कार्यक्रम की अध्यक्षता कीे। कार्यक्रम में ’’बाबरी मस्जिद: 25 ईयर्स ऑन .....................’’ किताब का विमोचन भी हुआ। किताब के संपादक हैं- समीना दलवई, रामू रामनाथन एवं इरफान इंजीनियर। कार्यक्रम में अमरीका में बसे प्रख्यात वामपंथी चिंतक विनोद मुबाई, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेकुलरिज्म मुंबई की सहायक संचालक नेहा दाभाड़े व सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश एडगर ने भी अपनी बात रखी। कोटा बस्ती की किशोरियों के सांस्कृतिक समूह ने अदम गोंडवी की ’’दोस्त मेरे मजहबी नगमात’’ तथा ’’तोड़-तोड़ के बंधनों से’’ नामक जनगीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में योग मिश्रा के निर्देशन में अभिनट संस्था के बैनर तले अदम गोंडवी की प्रसिद्ध कविता का नाट्य रूपांतरण अभिनेता संजीव मुखर्जी ने प्रस्तुत किया। जनगीतों का प्रस्तुतिकरण ममता साहू, अनीता यादव, दिव्या साहू, नीतू चौहान, संजू चौहान, अनीशा चौबे, कुमारी यादव व किर्ती यादव ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन तुहिन एवं आभार रविन्द्र ने किया। कार्यक्रम में बडी़ संख्या में संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवीगण, युवा, विधार्थीगण व जनसंगठनों के कार्यकर्तागण उपस्थित थे।


संगोष्ठी में आधार वक्तव्य रखते हुए इरफान अली इंजीनियर ने कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद के सुनियोजित विध्वंस की घटना ने देश में असहिष्णुता के काले अध्याय की शुरूआत की। पूरे विश्व में हम जो हमारी गंगा-जमुनी तहजीब और साझी शहादत-साझी विरासत की परम्परा पर गर्व करते थे इस घटना ने दुनिया में हमारा सर शर्म से झुका दिया। वैसे तो ब्रिटीश साम्राज्यवाद ने भारत के आजादी के आंदोलन को भटकाने के लिए हिंदू व मुस्लिम राष्ट्रवाद की सोच को हवा दिया तथा 1857 के बाद से फूट डालो राज करो नीति केा षड़यंत्रकारी तरीके से लागू किया। इसमें अंग्रेजों के मंसूबो के सहायक बने सामंती, जातिवादी, नवाब, राजा-महाराजा, जमींदार वर्ग। समता, स्वतंत्रता व बंधुता की कल्पना जन सामान्य की थी। धर्म आधारित राष्ट्रवाद की कल्पना के चलते देश का देश का बंटवारा हुआ। ब्रिटिश साम्राज्यवाद की राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ;त्ैैद्ध तथा मुस्लिम लीग को जन्म देने में तथा स्थापित करने में बड़ी भूमिका रही है। उन्होने कहा कि बुद्ध, कबीर, चार्वाक के मूल्य विदेशी मूल्य नहीं हैं इन्हें संध परिवार कभी याद नहीं करता। इन्ही के तर्कशील, समतावादी मूल्यों पर भारत का संविधान बना है। भारत धर्म आधारित राज्य बने या तर्कशीलता, सहिष्णुता, समता पर आधारित राज्य बने इन्हीं दो संकल्पनाओं का संघर्ष आज भी चल रहा है। मुसलमानों के ऊपर देशद्रोहिता का आरोप लगाने के पीछे ब्राह्म्णवादी मनुवादी सोच है। आजकल दंगों की जगह मॉब लिंचिंग ने ले ली है। सिर्फ अफवाह फैलाएं और काम हो गया। हमें हिंसा को खत्म करना है तो सभी को एकजुट होना है। देश में दंगों की आवृति लगातार बढ़ रही है। फासीवादी ताकतें साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतना चाहते हैं। वे मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना चाहती हैं। आज विषमता बढ़ती जा रही है, इतिहास को विकृत व साम्प्रदायिकीकरण करने के नाम पर संविधान पर हमला हो रहा है। कबीर, लोकायत, चार्वाक की परम्परा को हमें बचाना है। आज जो हो रहा है वह असल में लोकतंत्र पर हमला है। मॉबलिंचिंग(भीड़ द्वारा हत्या) एक राष्ट्रीय अपराध है।




अध्यक्ष की आसंदी से ललित सुरजन ने कहा कि पूंजीवाद को दुनिया के तमाम संसाधनों पर कब्जा करना है। हम पढ़ते कम हैं इसलिए भ्रांतियां हैं। ऋग्वेद में संगीत है ईश्वर आराधना है ही नहीं। हमारी भारतीय सम्यता उन्नत है। आज भारत में विचार हीनता बढ़ती जा रही है या व्याप्त हो गई है। तुम मुझे गद्दी दो मैं तुम्हे भीख दूंगा। आपस में हमें बांट दिया गया। देश को मीठी नींद में सुला दिया जा रहा है और धर्म उस नींद का इंजेक्शन है। हिंदुस्तान की जनता को कैसे भरमा सकते हैं इसे जानना है तो इसकी शुरूआत गणेश की मूर्ति के दूध पीने की घटना से हुई। सोशल मीडिया के मैसेज पर सोच-समझकर भरोसा कीजिए। हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे खूबसूरत संविधान है।


विनोद मुबाई ने अपने पुराने मित्र धर्मनिरपेक्षता के पहरूए असगर अली इंजीनियर को शिद्दत से याद किया। उन्होंने बताया कि भारत के संघ परिवार के साथ अमरीका में बसे कट्टर हिंदुत्ववादी मिलकर कार्य करते हैं। सांप्रदायिक ताकतों के पास विदेशों से पैसा आना शुरू हुआ बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद। उसके बाद से पच्चीस वर्षों से अमेरिका से पैसा संघ परिवार के पास आता है इसका उपयोग कर साम्प्रदायिक फासीवादी ताकतें हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को खत्म कर रही हैं। नेहा दाभाड़े ने देश भर में सांप्रदायिक दंगों का महिलाओं पर पड़ रहे वीभत्स प्रभाव का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि हमें हर हाल में मिलकर धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की  रक्षा करनी है। क्योंकि यह हमारी जान है। हमारे देश में संघ परिवार जर्मनी में फासीवाद/नाजीवाद क ेजनक हिटलर की तरह महिलाओं को सिर्फ बच्चा पैदा करने, रसोई में सीमित रखन व पित्सत्ताम्क मूल्यों की गुलामी करवाना चाहती है।



अखिलेश एडगर ने कहा कि छत्तीसगढ़ में अल्पसंख्यकों की संख्या 6 प्रतिशत से भी कम है। पिछले चार वर्षों से अल्पसंख्यक, सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के निशाने पर ज्यादा आ गए हैं। उन्होंने आंकड़ों का विश्लेषण कर बताया कि राज्य में मुसलमानों से ज्यादा ईसाइयों पर लगातार हमले हो रहे हैं। पत्थलगड़ी की घटना को इसाई समुदाय से जोड़ा गया। जबकि पत्थलगड़ी आदिवासियों की पुरानी परम्परा है।
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रविन्द्र

विमर्श/पीस,
 रायपुर


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