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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 अगस्त, 2018

रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति की कविताएँ


रविन्द्र स्वप्निल 


बारिश में खड़े लोग

एक शेड के नीचे कुछ लोग पानी के कारण पेंटिंग बन कर खड़े हैं
कुछ लड़के हाथ मे बेग लिए कुछ उम्रदराज और तीन लड़कियां हैं

झमाझम पानी में आधे अधूरे से
भीगना चाह कर भी भीगने से बचना चाहते हैं
ये कुछ लोग इसलिए नही खड़े हैं कि उनके पास बहूत सा समय है
वे एक मजबूरी में नही खड़े बे पानी बरसने से खड़े है
वे नही जानते कि पानी क्यों बरस रहा है
उनके काम के दौरान

शेड में खड़े लोग इंसान है
वे देख रहे है कुछ गाड़ियां उनके सामने गुजर रही हैं
जिन पर लिखा हुआ है ऑन गवर्नमेंट ड्यूटी
कुछ पर विधानसभा के पास लगे हुए है
कुछ इठनी चमकती हुई जा रही है जैसे वो किसी राजनीतिक पार्टी की पदाधिकारी हों
कोई लगती जैसे किसी उद्योगपति की लाडली हो

सब गाड़ियां किसी न किसी काम मे गुजर रही हैं
पानी उनके लिए अवरोध नही जब तक गले तक न आये

लड़के अपनी दोस्त से कह रहे हैं
क्यों नही हम इन खाली गाड़ियों में कहीं तक जा सकते
या तेरे पापा की गाड़ी बुलवा ले

पानी जैसे बरसता है वैसे बरस रहा है
हवा इधर से आती और उधर को जाती है
बारिश के मजे में भीगना एक दिन की शिकायत भर है
शरीर पर गिरी बूंद जिंदगी भर लिखी रहती है
लड़का कहता है चल भीगने का मजा लें कुछ भीगते हुए चलें
तीन लड़के एक दुसरे के बैग में अपना भीगने वाला समान रखते हैं
फिर बारिश में एक एकसाथ कदम रखते हैं

सवाल अब भी यही था
शेड में खड़े बाकी लोगों का क्या होगा
कुछ लोग जा सकते है तो कुछ लोग क्यों नही जा सकते

कितना अधूरा है बारिश का मजा
और कितने अधूरे है हम
कुछ लोगो के खड़े हो ने और कुछ लोगो के भीगने पर किस तरह बदल जाते है दृश्य

क्या सबके पास बारिश में जाने और भीगने के विकल्प समान हैं
नही है क्योंकि शरीर और उम्र के मायने भी तय करते हैं कुछ चीजें

लेकिन कोई एक चीज हम तय करते है
हमारा सिस्टम तय करता है
बारिश में शेड के नीचे खड़े लोगों को देखें
और इस बारे में सोचें कि आखिर कुछ चीजें कौन तय करता है
जिसके तहत कुछ का भीगना मजबूरी है
कुछ का भीगना मस्ती
कुछ का शेड के नीचे बेचेन से खड़े होकर
बारिश को देखना क्या है

क्योंकि मुझे दिखने वाले हर दृश्य का
मेरी दुनिया से कोई रिश्ता तो है




समझौता

समझौतों की एक लंबी सी सड़क है मेरा जीवन
जिसमे कुछ दब गया है जैसे महापथ पर दबी होती हैं डूब की नोकें

तुम मेरे समझौतों में किसी दूब की नोक से छुपी हो
मेरे हर समझौते को तुम न जाने कितने हजार सालो से सह रही हो

मैं इस तरह एक महामार्ग बना
और तुम उसके दोनो तरफ कुछ दूब

समझौता तुमहरे प्यार को ऊंचाई नही देता
बल्कि मेरे होने को थोड़ा और चौड़ा कर देता है

जहां तुम हर बार कुछ तिनको की तरह प्रतिरोध करते हुए उग आती हो

महापथ होने की सबसे खराब शर्त है कि वो
हर सपने को एक समझौते में दर्ज करता है
उसके जीवन में इतने सपने होते है कि वो
कि हर सपने को वो पूरा करने की तरफ जाने वाला मार्ग लगता है
सच ये है कि जीवन के मार्ग मे हर सपना सिर्फ चमकता है

समझौते कही नही ले जाते
वे सिर्फ महामार्ग बनते है जिन पर
राजा नबाब और कुछ गणमान्य गुजरते हैं

कभी कभी कोई प्रेमी उनको क्रॉस करते हैं
तब महा पथ जैसा ये जीवन कितना छोटा हो जाता है
जो प्यार मे भटक कर रास्ता तलासते है
उनके पैर समझौतों पर लहूलुहान हो जाते हैं
राजाओं और गणमान्य के अलावा कोई प्रेमी कभी समझोंतो पर पैर नही रखता
दूब की नोकें कोई समझौता सहन  नही करती
उन पर सिर्फ प्रेमी ही पैर रख सकते हैं

देखो मेरी प्यार मेने जीवन के पैर महापथ से नीचे रख लिए
अब मैं तुम्हरी हरियाली में चल रहा हूं







मेरे देश की सुन्दर लड़कियो

मेरे देश की सुन्दर लड़कियो
तुमको पानी की जरूरत होगी
तुम किसी धर्म के किताब को नही पी सकोगी

तुमको खाने की जरूरत होगी
तुम किसी किताब को नही खा पायोगी
तुमको कपड़ों की जरूरत होगी तो राजनीति का कोई टुकड़ा ओढ़ने के काम भी नही आता

क्या कर रहे है वो लोग जो कहते है हम राजनीति करते हैं
वे अपनी दलाली को राजनीति कहने लगे
तो कंपनियां भी कहने लगती हैं खाने और पानी से ज्यादा जरूरी है शैम्पू करना

जब अंतरराष्ट्रीय दलाली को अंतरराष्ट्रीय राजनीति कहा जाने लगे
सरकारें जनता को नहीं
कंपनियों के हित बचाने में पुलिस लगा दें
इस तरह के सारे कुकर्म देशभक्ति के ब्रांड में पैक किये जाने लगे

पेट्रोल की कीमतें देशभक्ति के नाम पर गले से नीचे उतार दी जाएं
बेरोजगारी को भी देशभक्ति के उन्माद में जीवन का हिस्सा बना दिया जाए

देशसेवा सोचने विचारने वालो के कानों में भों भों करने लगे
कानून के सामने भावनाएं नंगा नाच करने लगें
देश की लड़कियों समझना खतरा कुछ अलग तरह का है

वाचाल सौदागरों की गिरफ्त में हो देश
सरकारी रामधुन में व्यस्त मीडिया
मंत्री के भ्रष्टाचार को अधिकारियों का भ्रष्टाचार बताये
संसद लोकपाल कानून के लिए अन्ना हजारे के मरने का इंतज़ार करने लगे

समझना कुछ अजीब तरह के खतरे आसपास ही हैं
सौदेबाजी में उलझा कोई देश क्रांति नही कर सकता

इसलिए तुम सांसदों और विधान भवनों के सामने जाओ
उनके अपने बालों में कंघी करो
जब विधायक और सांसद जनप्रतिनिधि का चोला पहनकर
किसी कंपनी के लिए
नकली देशभक्ति की आवाज बुलंद करें

तुम उनके सामने अपनी दोनो बाँह उठा कर
बाल बांधने लगना

ताकि उनको पता चल सके कि वे किसी क्रांति की जद में हैं
कि शरीर और उम्र के मायने भी तय करते हैं कुछ चीजें

लेकिन कोई एक चीज हम तय करते है
हमारा सिस्टम तय करता है
बारिश में शेड के नीचे खड़े लोगों को देखें
और इस बारे में सोचें कि आखिर कुछ चीजें कौन तय करता है
जिसके तहत कुछ का भीगना मजबूरी है
कुछ का भीगना मस्ती
कुछ का शेड के नीचे बेचेन से खड़े होकर
बारिश को देखना क्या है
क्योंकि मुझे दिखने वाले हर दृश्य का
मेरी दुनिया से कोई रिश्ता तो है




हिस्सा

जिंदगी का थोड़ा सा हिस्सा हूं
तुम्हारा
मुझे उतनी ही जगह देना जितने पर खड़ा रह सकूँ

तुम्हारे दायरे में जो हैं उस सब मे नही हो सकता मैं
मगर हूं उस जगह में पूरा जितने में खड़ा हूं

नही बांध सकता तुमको अपने होने के लिए
नहीं अलग कर सकता कोई हिस्सा अपने लिए

तुम्हारी जिंदगी में सब जगह नहीं हो सकता
बस एक सिरा भर छूता रहूं तुम्हारे होने का







होर्डिंग पर मुस्कुराती हुई तुम

तुमको प्यार किया
और तुम आंखों से उतर कर होर्डिंग पर मुस्कुराई

मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था और
तुम साबुन की तरह मेरी बॉडी पर घूमने लगीं
प्यार कुछ क्षणों की तरह सफेद फोम बनता जा रहा था
अचानक साबुन मेरे हाथ से छुटी और
मैंने तुम्हें होर्डिंग पर महसूस किया


जल्दबाजी में प्यार अजीब से आकार ले सकता है
जैसे बहुत स्पीड वाली मोटरसाइकल में बदल जाना
या किसी क्रीम की तरह चेहरे पर महकना
किसी विज्ञापन में तुम्हारा समुद्र की तरफ घूमने जाना
और वहां एक बेंच पर बिअर के साथ दिखना

मेरी जल्दबाजी तुमको कितनी तरह से बदल देती है
तुम होर्डिंग से उतर कर किचिन में पोहा बना रही होती हो

तभी तुम्हारें हाथ ठहर जाते है
और जल्दी ही सबसे अच्छे नमक के विज्ञापन में
प्रचार करने चली जाती हो

सरकार दांडी मार्च वाले नमक सत्यग्रह का एड देती है
तुम उसी समय मुझे शर्ट खरीदने के लिए बोलती हो
और शर्ट के विज्ञापन में दिखाई देने लगती हो

जबकि मुझे देखना चाहिए था
एक इंटरनेशनल ब्रांड में बंगलादेशी मजदूरों का शोषण
जहां चालीस रुपए की लेबर से तीन हजार की शर्ट तैयार होती है
जिसके धागों में किसानों के बीटी कॉटन से उजड़ते खेत
और ब्रांडेड आटे में पिसा सच
उनके कर्ज आत्महत्याएं और अभावग्रस्त जीवन के साथ
मैं नहीं देख पाता होर्डिंंग के पीछे एंगलों में उलझी
होर्डिंग लगाने वाले मजदूरों की तकलीफें

जब मैं न्यूज़ देख रहा होता हूँ
तुम विज्ञापनों में बहते जीवन को सहेज कर रख देती हो
ऐसा बहुत कुछ होता है जो फैला रह जाता है रोज
तुम रात को होर्डिंंग से उतर बेडरूम में आ जाती हो

और उनींदी उंगलियों में से टीवी रिमोट हटा कर कहती हो-सो जाओ
मैं नींद में सोचता हूं ये विज्ञापन था या सच में तुम मुझे सुला रही थीं






साथ चलना

साथ चलना कभी-कभी और किसी-किसी के साथ होता है
रोज रोज नहीं ये कभी कभी होता है

तुम मेरे साथ चलो या मैं तुम्हारे साथ
एक ही बात है कि हम साथ चल सकें कुछ समय
और कुछ दूर तक

ये बातें किसी को पता न चलें और जान भी जाएं तो समझ न पाएं
हर सवाल का उत्तर साथ चलना हो तो साथ चलना बड़ी बात है

हम साथ चल रहे हैं ये मायने रखता है
जिंदगी में साथ चलना कभी-कभी और मुश्किल से आता है
साथ चलने में हाथ पकडऩा जरूरी नहीं होता





बोर कब होना चाहिए

उसने मेरी बोरियत को रिबन की तरह लपेटा
और पर्स में रख लिया
वह मेरे साथ बोगलबेलिया सी बैठी है

हम कुछ देर चुप रहे फिर उसने पूछा
इस शहर को देख कर तुम बोर नहीं होते

मैंने भी पूछा- तुम बताओ हमें बोर कब होना चाहिए
उसने कहा- कभी नहीं और पेड़ की छांव बन गई
वह ठंडी हवा में हिली और कहा-
चलो तुम अच्छा सा रास्ता बन जाओ

मैं इस शहर में एक अच्छा रास्ता हूं
और वह मेरे आसपास घने पेड़ों की छांव



वह साथ है मेरे

एक खोज बन गया हूं
और डूबता जाता हूँ एक अनंत गहराई में
मेरे चारों तरफ वह हवाओं सी रहती है
वह साथ है और मैं लगातार डूब रहा हूं





दुनिया का पहला ड्राफ्ट

दुनिया की डिजाइन को इतना सरल नहीं बनाया था
कि किसी कागज पर लिखने से
कोई जमीन और पेड़ों पर काबिज हो जाए

दुनिया में आज की और पुरानी डिजाइन में फर्क है
आज पहले ड्राफ्ट को चेंज कर दिया गया

सरकार जैसी कोई चीज उसमें नहीं थी
नहीं था राजा और न कोई पानी पर हक जमाता था
सरकार को किसने बनाया है जिसे पक्षियों की चिंता भी नहीं है
और उन लोगों से जो जंगल का पेड़ काटने से पहले
जंगल से पूछते थे
क्या सरकार ने उनसे पूछा है कि तुम्हारे जंगल हम ले रहे हैं

क्या सरकार होने का अर्थ सबसे ज्यादा बेईमान होना है
जो लगातार छीनती है जंगल की नदियों का पानी
और जंगल के पक्षियों का खाना और दाना

कागज पर लिख देने से सरकार का कुछ नहीं हो सकता
इस ड्राफ्ट को बदला जाना जरूरी है




नदी एक फोटो भर बची है

नदी के किनारों ने चांद को देखना छोड़ दिया
दुनिया भी अब चांद को नहीं देखती

हर खूबसूरत नजारा अब सिर्फ एक फोटो है
जिसे अपने शहर के पास नहीं देख सकते

नदी देखने के लिए अब फोटों खरीदना होते हैं
नदी पर अब कोई नहीं जाता
हमने अपनी दुनिया को फोटों में बदलना सीख लिया
खेत और फसलें भी एक फोटों की तरह हैं

हवाओं को एसी में सहेज लिया है हमने
और किसी दिन जिंदगी भी एक फोटो में बदल जाएगी

क्या नदी अब सिर्फ फोटो भर बची है








बिजली के तार पर बैठा पक्षी

मेरे दिन बनने से पहले
तुमने ओंठों पर सुबह की लिपस्टिक लगा ली थी
जंगल की नदी में मुंह धो लिया था

तुम धरती के अंदर से उपजा फूल थीं
जिसके चारों तरफ किरणों का पराग फैल चुका था
और मैं अपने आप उगा घास का फैलाव

हम अपने असंगत प्रेम के रेगिस्तान में दौड़ रहे थे
हमारी मुस्कुराहटें हवाओं के झौंके बन गई
उलट पलट गया था सब कुछ
हम अचानक चाय पीते पीते पूल में नहाने लगे थे

तुम शाम की किरणें बनकर बैठी थीं
मैं पहाड़ बन कर तुम्हारे माथे पर ऊंगलियां फिरा रहा था

रात तुम्हारी एक सहेली थी
जिसने अपने पहाड़ पर थोड़ी सी जगह दी
सुबह तक तुम तुम जंगल में पत्तियों की तरह छा गई
मैं बिजली के तार पर पक्षी की तरह बैठ गया




पहाड़ पर खड़ा होकर देखता हूं तुम्हें

मैंने तुमको पहाड़ पर खड़े होकर देखा
मैंने तुमको कार की खिड़की से देखा
मोर और हिरण के फोटो लिए
किसानों को काम करने के अलावा
पहाड़ और जंगल के घने पेड़ों को देखा
मेरे पास सिर्फ देखना ही देखना बचा था

रद्दी कागज, प्यार के दो पल और एक आह
ओह तुम कितनी अच्छी लगती हो

मैंने तुमको जिया और मैं तुममें रहा
तुम नहीं फेंकती हो मुझे रद्दी कागज की तरह

मैं छोड़ जाता हूँ तुम्हें काम का बहाना देकर
शहर में रह कर भूल चुका हूँ फिर भी

बड़ा सवाल है पहाड़ जंगल और नदी क्यों याद आते हैं?




परिचय
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
जन्म     - 15 जून 1970 
ग्राम    - सियलपुर, तहसील -सिरोंज, जिला- विदिशा, मप्र
शिक्षा    - एम ए हिंदी साहित्य, बीएड, स्क्रिप्ट लेखन सर्टिफिकेट कोर्स इग्नू, नई दिल्ली
प्रशिक्षण  
- हर्ष मंदर, जावेद अख्तर, गोबिन्द निहलानी, हरीश शेट्टी  द्वारा सामाजिक संरचना और सौहार्द    पर दस दिवसीय प्रशिक्षण, मुंबई 2006
- समाज में शांति की स्थापना पर दस दिनों का विभिन्न लेखकों पत्रकारों से प्रशिक्षण 2007
- हिंदी कहानी पर मांडू में राष्ट्रीय कहानी शिविर में प्रशिक्षण, कार्यशाला में चयनित कहानी कई   जगह प्रकाशित एवं चर्चित
- शांतिकुंज हरिद्वार से एक माह का समाजसेवी प्रशिक्षण
कार्यानुभव
- राज एक्सप्रेस, भोपाल में रविवारीय प्रभारी, 2004-2006,
- वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली में प्रसिद्ध लेखक सुधीश पचौरी के साथ वाक् में सहायक संपादक 2006-07,
- जिला साक्षरता मिशन विदिशा में सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं प्रवेशिका में पाठों का लेखन,
- शासकीय माध्यमिक शाला में अध्यापन 1998-2003,
- मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पांच वर्षों तक पाठक मंच विदिशा का संचालन,
- फिल्म समीक्षा पर प्रो जवरीमल्ल पारख, प्रोफेसर सत्यकाम और डॉ. असगर वजाहत से प्रशिक्षण   2006, नई दिल्ली।
- प्रगतिशील लेखक संघ का सदस्य एवं विभिन्न कार्यशालाओं में भागीदारी

रेडियो टीवी एवं समाज सेवा
    बच्चों के लिए रेडियो नाटक 'मां के आसपास भोपाल के लिए लेखन एवं विभिन्न संगोष्ठियों में भागीदारी।
    दूरदर्शन भोपाल एवं नई दिल्ली से परिचर्चा एवं कविता पाठ प्रसारित पर्यावरण एवं साहित्य के विषयों पर लेखन
    विभिन्न विज्ञापनों की कॉपी राइटिंग (स्क्रिप्ट लेखन)
    ग्रीनअर्थ विलेज वेलफेयर सोसायटी की स्थापना २०१०, पर्यावरण एवं जैविक खेती के लिए कार्य
    आदिवासी ग्राम छेड़का में ग्राम उन्नयन हेतु कार्य 2016 -17
प्रकाशन
 इंडिया टुडे द्वारा दस सबसे संभावनाशील रचनाकारों में चयनित 2001, आजकल प्रकाशन विभाग नई दिल्ली, द्वारा तीस युवा रचनाकारों में कविताओं का चयन,1996, कविताओं पर मंगलेश डबराल, लीलाधर मंडलोई और सुधीश पचौरी सहित देश के जाने माने साहित्यकारों द्वारा समीक्षा। ज्ञानोदय के पानी विशेषांक में विशिष्ठ कविता'मुझे कैसे पता चला कि सूखा है का प्रकाशन। युवा लेखन विषेशांक में लेख और कविताओं का प्रकशन, भारतीय अमेरिकी मित्रों का उपक्रम अन्यथा में एनआरआई झुग्गी बस्ती पर रिपोतार्ज का प्रकाशन।
रचनाएं
आउट लुक में कहानी 2008, कविताएं आदि। इंडिया टुडे, लोकमत समाचार, सहारा समय, राष्ट्रीय सहारा, हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, हंस, कथादेश, वागर्थ, वाक्, नया ज्ञानोदय, आलोचना, समकालीन भारतीय साहित्य, वीथिका, वसुधा, पहल, इंद्रप्रस्थ भारती, मुधमति, सरिता, मुक्ता, अक्षर पर्व, वितान, बहुमत आदि साहित विभिन्न संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन

साक्षात्कार
धु्रव शुक्ल, राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, प्रो मैनेजर पांडे, प्रो विश्वनाथ त्रिपाठी, अरणकमल, विनीत तिवारी, पुण्यप्रसून बाजपेयी, महरुन्ननिसा परवेज, मंजूर एहतेशाम, कमला प्रसाद, उदयन वाजपेयी, धनंजय वर्मा, रमेशचंद्र शाह, सत्येन कुमार, विनय दुबे, फरीदुद्दीन डागर, रामेश्वर मिश्र पंकज आदि से साक्षात्कार एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनका प्रकाशन।

अनुवाद
बंगला एवं पंजाबी भाषा में कविताओं का अनुवाद।

पुस्तकें
कोलाज (कविता संग्रह) अफेयर, (टू लाइनर प्यार के अहसास) अफेयर रिटन्र्स एक गर्लफे्रेंड की दुनिया
वोटों की राजनीति (लोकतांत्रिक जीवन दर्शन) और कर्ज है तो क्या हुआ (किसान आत्महत्या) पर केंद्रित पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य
आधा बिस्किट, (प्रेम कविता संग्रह) मन का ट्रैक्टर (कहानी संग्रह) खिड़की खिलौना, बाल कविताएं। 

संपर्क
111, आरएमपी नगर, फेस-1, विदिशा, मध्यप्रदेश
टॉप- 12, हाईलाइफ कॉम्पलेक्स, जिंसी जहांगीराबाद, भोपाल मप्र 
मोबाइल संपर्क- 82699 43607 / 9826782660
 Ravindra Swapnil Prajapati
कोलाज कला: साहित्य संस्कृति सबके लिए


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