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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

12 जून, 2018

कोई क्षमा नहीं का लोकार्पण
प्रस्तुति: सुमन कुमारी


रमणिका फाउण्डेशन व AITLF के तत्वाधान में प्रत्येक माह के दूसरे शनिवार होने वाली साहित्यिक गोष्ठी में इस बार वरिष्ठ कवि अनिल गंगल के नये कविता संग्रह ‘कोई क्षमा नहीं’ का लोकार्पण हुआ। दलित लेखक संघ के अध्यक्ष हीरालाल राजस्थानी ने अपनी कहानी ‘व्यतिरेक’ का पाठ किया। युवा कवयित्री रानी कुमारी ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया।


समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण कवि अनिल गंगल का यह चौथा कविता संग्रह है। उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया।
हीरालाल राजस्थानी ने कहानी ‘व्यतिरेक’ का पाठ किया। इस कहानी में अंतरजातीय विवाह तथा संवैधानिक तरीके से कोर्ट मैरिज पर कथानक बुना गया है।
युवा कवयित्री रानी कुमारी ने भारतीय समाज में स्त्रियों की पर कविताओं का पाठ किया। ‘बीस साल की बूढ़ी लड़की’, ‘गैसबर्नर-सी औरतें’ तथा ‘छोटा भाई’ कविताओं का पाठ किया।
अनिल गंगल की कविताओं पर परिचर्चा करते हुए कवि एवं आलोचक संजीव कौशल ने कहा कि छन्द को तोड़कर जो कविता कही गयी वह कितना कुछ ख़ास कह पाती हैं, यह महत्वपूर्ण है। गद्य कविता की परम्परा से जोड़ते हुए कहा कि अनिल गंगल की कविता युद्ध की तरह हमारे भीतर उतर जाती है।
आइडियोलॉजी कविताओं को निखारती हैं। ‘घर’ कविता में ‘गर्माहट’ के बिना घर नहीं बन सकता। गंगल जी पॉलिटिकली अवेयर कवि हैं, इतना कि विचार कविता को ग्रिप में ले लेता है। यह माँ-बेटे की सम्वेदना तथा पति-पत्नी का वैचारिक सम्बन्ध है।
‘धागा’ में बारीक़ बुनाई है। इसमें बारीक़ धागा सम्भ्रान्त वर्ग का प्रतीक तथा मोटा धागा मज़दूर धागा का प्रतीक है। ‘तुमने मुझे कॉमरेड कहा’ में स्पष्ट होता है कि इन शब्दों से आज भी कोई जुड़ा हुआ है। गंगल जी चाहते हैं कि कवि मज़दूरों के बीच जाए।
‘पिता का कोट’ में कोट के छेद तो दिख जाते हैं, परेशानियों के नहीं दिखते।
परिचर्चा में कवि एवं आलोचक जगदीश जैन्ड 'पंकज' जैंड ने कहा कि अनिल गंगल की कविता समय व समाज पर तीख़ी प्रतिक्रिया हैं। वैचारिकी में प्रतिबद्ध होकर भी समय के सवालों से टकराती है अनिल की कविता। ‘गुलामी’ इसका सबसे सशक्त उदाहरण है।
हीरालाल राजस्थानी की कहानी पर टिप्पणी करते हुए बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा कि हीरालाल राजस्थानी अपनी कहानी में संभावना तलाशते हैं। वे आकांक्षा के रचनाकार हैं जो संघर्ष से गुजरकर इस मुक़ाम पर पहुँची पीढ़ी का मुख्य स्वर है। आंबेडकर के ‘जाति का ख़ात्मा’ की संभाव्यता की कहानी है ‘व्यतिरेक’.
रानी कुमारी की कविताओं पर बात करते हुए उन्होंने तीन पीढ़ियों की चर्चा की। विमर्शपरक, विचारपरक और जीवनपरक काव्य-दृष्टियों के परिदृश्य में रानी कुमारी जीवनपरक रचनाकार हैं। दलित स्त्रीवादी कविता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बजरंग बिहारी तिवारी ने रानी कुमारी की कविताओं को संक्षोभ से जोड़ा।
इस अवसर पर दिल्ली विवि के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. हरिमोहन शर्मा भी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें अनिल गंगल की कविता पर चर्चा की गयी जिसमें वंचित-दलित लोगों की भी कोई मानवीय गरिमा होती है-- इसके जहाँ-तहाँ संकेत इनकी कविताओं में मिलते हैं। हीरालाल राजस्थानी की कहानी समाज के शिक्षित लोगों से दृष्टि-परिवर्तन का आह्वान है। वे अन्धविश्वास-रूढ़ियों को धता बताकर आगे बढ़ने की चर्चा की गयी है। युवा कवयित्री रानी कुमारी की कविता अपने आसपास की ज़िन्दगी से बुनी गयी हैं जिसमें विचार है, विरोध है, आगे बढ़ने की सम्भावना है। इन पर की गयी टिप्पणियाँ सार्थक विचार-विमर्श को जन्म देती हैं ।


अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए रमणिका फाउंडेशन की अध्यक्ष रमणिका गुप्ता ने कहा कि यह कार्यक्रम महीने के हर दूसरे शनिवार को होता है -- हमारा उद्देश्य है एक ऐसा मंच बनाना जिस पर कवि-कहानीकार, नाटककार या विचारक-- नए-पुराने दोनों ही साहित्य के माध्यम से समय के साथ मुँह-दुह होते हुए-- साहित्य को एक दिशा देते हुए विभेदपूर्ण दृष्टिकोण बदलने और नया दृष्टिकोण बनाने की भूमिका निभाएं।
उन्होंने कहा साहित्य स्वान्तःसुखाय नहीं-- साहित्य एक लक्ष्य लेकर चलता है। इसे भी हम प्रस्थापित करना चाहते हैं। आज का समय बहुत ख़तरनाक है-- इसलिए ऐसी गोष्ठियां एक भूमिका अदा कर सकती हैं-- प्रेरणाजनक सृजन के माध्यम से। वंचित समाज, वर्जित समाज व नये सृजकों को हम विशेष ध्यान देते हैं, उनके साथ प्रतिष्ठित लेखकों को भी बुलाते हैं ताकि वे दिशा दे सकें--और नये लेखक मंच पा सके।
मंच सञ्चालन टेकचन्द ने किया।
 
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Ramnika Gupta, President Ramnika Foundation & 
Editor of YUDDHRAT AAM AADMI magazine 
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