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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

01 जून, 2018

गुमनाम औरत की डायरी के कुछ और नोट्स

कविता कृष्णपल्लवी

भाग सात

( अंतिम भाग )

सरलता एक जटिल चीज़ होती है | सरल होना बहुत कठिन होता है |
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सच कभी पूरीतरह पकड़ में नहीं आता | उसका लगातार पीछा करना पड़ता है |
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ज्यादा से ज्यादा, हम एक सार्थक जीवन जीने की कोशिश कर सकते हैं | महत्वपूर्ण होने की महत्वाकांक्षा हमें नक्काल बना देती है, या कुंठित कर देती है |
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कविता कृष्णपल्लवी


जब दूसरों की खुशियाँ हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाएँ तो कठिन समय में भी जीना आसान हो जाता है |
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ज्ञानी और अनुभवी व्यक्ति ने शिक्षा दी,”हमें सहृदयता, उदारता, उदात्तता, विचारशीलता और उन्नत सौन्दर्यबोध वाला इंसान होना चाहिए |” सभी तुरत ऐसा दीखने की कोशिश करने लगे और माहौल और अधिक कुरूपता से भर गया |
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ठहरे हुए, उदास दिनों में युवा शरीरों में बूढ़ी आत्माएँ निवास करती हैं |
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आप प्यार जीत नहीं सकते | सहज ही वह आपको मिल सकता है, या आप उसका आविष्कार कर सकते हैं |
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लोग इनदिनों लोगों को चीज़ों की तरह प्यार करते हैं |
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लोग इनदिनों प्यार को जीत की ट्रॉफी की तरह शोकेस में सजाते हैं |
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लोग चिंतित रहते हैं कि बुढ़ापा आने से पहले किसी भी तरह से उन्हें प्रेम हो जाये और सेहत बनाने की तमाम कोशिशों के बावजूद, वक़्त से पहले ही वे बूढ़े हो जाते हैं |
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अधिकांश जनवादी चेतना के पुरुष भी स्त्री से ‘ना' सुनने के आदी नहीं होते | इससे उनका पुरुष-दर्प लहूलुहान हो जाता है |
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खुद से प्यार करना और आत्ममुग्ध होना --- ये दोनों एकदम अलग चीज़ें होती हैं |
 (23अप्रैल, 2018)


गुमनाम औरत की डायरी भाग छः नीचे लिंक पर पढ़िए

भाग छः
http://bizooka2009.blogspot.com/2018/05/blog-post_30.html

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