नाज़िम हिक़मत की कविताएं
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल व चन्द्रबली सिंह
तुम्हारे हाथ
तुम्हारे हाथ
पत्थरों जैसे मजबूत
जेलखाने की धुनों जैसे उदास
बोझा खींचने वाले जानवरों जैसे भारी-भरकम
तुम्हारे हाथ जैसे भूखे बच्चों के तमतमाए चेहरे
तुम्हारे हाथ
शहद की मक्खियों जैसे मेहनती और निपुण
दूध भरी छातियों जैसे भारी
कुदरत जैसे दिलेर तुम्हारे हाथ,
तुम्हारे हाथ खुरदरी चमड़ी के नीचे छिपाए अपनी
दोस्ताना कोमलता।
दुनिया गाय-बैलों के सींगों पर नहीं टिकी है
दुनिया को ढोते हैं तुम्हारे हाथ।
(‘तुम्हारे हाथ और उनके झूठ’ कविता का एक हिस्सा,1949)
रोशनी के धुले दिन देखेंगे
बच्चो, हम सुन्दर दिन देखेंगे, देखेंगे,
सूरज की रोशनी के धुले दिन देखेंगे, देखेंगे —
खुले हुए सागर में अपनी द्रुतगामी नौकाएँ दौड़ाएँगे।
जगमग करते हुए खुले नीले सिन्धु में नावें दौड़ाएँगे।
सोचो तो पूरी गति से उन्हें कैसा दौड़ाना !
मोटर चलती हुई !
मोटर गरजती हुई !
अहाहा, बच्चो, कौन कह सकता है
कितना अद्भुत्त होगा
चूम लेना नावें जब वे सौ मील की रफ़्तार से दौड़ें !
आज यह सच है
केवल जुमा और इतवार को फूलों के बाग़ों में हम जाते
केवल जुमा के दिन
केवल इतवार के दिन
आज यह सच है
हम आलोकित पथों के भण्डार यों देखा करते हैं,
जैसे परी की कहानी सुन रहे हों
शीशे की दीवारों वाले वे भण्डार
सत्तर मंज़िलों की ऊँचाइयों में ऐसे हैं।
सच है कि जब हम जवाब चाहते हैं तो
डायन-सी पुस्तक खुल जाती है —
कारागार।
चमड़े की पेटियों में हमारी बाँहें बँध जातीं
टूटी हड्डियाँ
ख़ून।
सच है हमारी थालियों में अभी
हफ़्ते में एक दिन ही गोश्त मिल पाता है
और हमारे बच्चे काम के बाद यों लौटा करते हैं
जैसे पीली-पीली ठठरियाँ हों।
सच है अभी —
लेकिन तुम मेरी बात गाँठ बाँध लो
बच्चो, हम सुन्दर दिन देखेंगे, देखेंगे,
सूरज की रोशनी के धुले दिन देखेंगे,
खुले हुए सागर में अपनी द्रुतगामी नौकाएँ दौड़ाएँगे।
जगमग करते हुए खुले नीले सागर में नावें दौड़ाएँगे।
मेरी शायरी
चांदी की काठी वाला घोड़ा नहीं है मेरे पास सवारी के लिए
नहीं है गुज़ारे के लिए कोई विरासत
ज़र न ज़मीन
कुल जमा शहद की एक हांडी है मेरे पास
आग की लपटों जैसे शहद की हांडी।
मेरा शहद ही मेरा सब कुछ है
सभी किस्म के कीड़े-मकोड़ों से
हिफ़ाजत करता हूं मैं अपने ज़र-ज़मीन की
मेरा मतलब अपनी शहद की हांडी की।
ज़रा ठहरो,बिरादर
मेरी हांडी में जब तक शहद है
टिम्बकटू से भी आएंगी
मधुमक्खियां उसके पास।
बीसवीं सदी
’जानेमन आओ अब सो जाएं
और जगें सौ साल बाद’
नहीं
मैं भगोड़ा नहीं
अलावा इसके,अपनी सदी से मैं भयभीत नहीं।
मुसीबतों की मारी मेरी यह सदी
शर्म से झेंपी हुई
हिम्मत से भरी हुई मेरी यह सदी
बुलंद और दिलेर
मुझे कभी अफसोस नहीं हुआ
कि क्यों इतनी जल्दी पैदा हो गया।
बीसवीं सदी में पैदा हुआ
फ़ख्र है इसका मुझे
जहां भी हूं अपने लोगों के बीच हूं,काफी है मेरे लिए
और यह कि एक नई दुनिया के लिए मुझे लड़ना है
‘जानेमन सौ साल बाद’
मगर नहीं,पहले ही उसके और सब कुछ के बावजूद
मरती और फिर-फिर पैदा होती हुई मेरी सदी
मेरी सदी,जिसके आखिरी दिन ख़ूबसूरत होंगे
सूरज की रोशनी जैसी खुल-खुलेगी मेरी सदी
जानेमन,तुम्हारी आंखों की तरह।
(1941)
हल्की हरी हैं मेरी महबूबा की आंखें
हल्की हरी हैं मेरी महबूबा की आंखें
हरी
जैसे अभी अभी सींचा हुआ
तारपीन का रेश्मी दरख्त
हरी
जैसे सोने के पत्तर पर
हरी मीनाकारी
ये कैसा माजरा, बिरादरान,
कि नौ सालों के दौरान
एक बार भी उसके हाथ
मेरे हाथों से नहीं छुए।
मैं यहां बूढ़ा हुआ
वह वहां।
मेरी दुख्तर-बीवी
तुम्हारी गुदाज़-गोरी गर्दन पर
अब सलवटें उभर रहीं हैं।
सलवटों का उभरना
इस तरह नामुमकिन है हमारे लिए
बूढ़ा होना।
जिस्म की बोटियों के ढीले पड़ने को
कोई और नाम दिया जाना चाहिए,
उम्र का बढ़ना
बूढ़ा होना
उन लोगों का मर्ज़ है जो इश्क नहीं कर सकते।
(1947)
यही तो सवाल है
दुनिया की सारी दौलत से पूरी नहीं हो सकती उनकी हवस
चाहते हैं बनाना वे ढेर सारी रकम
उनके लिए दौलत के अंबार लगाने के लिए
तुम्हें मारना होगा औरों को,खुद भी मरना होगा दम-ब-दम।
झांसा पट्टी में उनकी आना है?
या धता बताना है?
तुम्हारे सामने यही तो सवाल है!
झांसें में न आए तो जियोगे ता-क़यामत
और अगर आ गए तो मरना हरहाल है।
(1951)(लंबी कविता का एक अंश)
पाल रोबसन से
वे हमें अपने गीत नहीं गाने देते है, रोबसन,
ओ गायकों के पक्षीराज नीग्रो बन्ध !
वे चाहते हैं कि हम अपने गीत न गा सकें।
डरते है, रोबसन,
वे पौ के फटने से डरते हैं।
देखने,
सुनने,
छूने से
डरते हैं।
वैसा प्रेम करने से डरते हैं
जैसा हमारे फ़रहाद ने प्रेम किया
(निश्चय ही तुम्हारे यहाँ भी तो कोई फ़रहाद हुआ,
रोबसन, नाम तो उसका बताना ज़रा)
उन्हें डर है
बीज से,
पृथ्वी से,
पानी से,
और वे
दोस्त के हाथ की याद से डरते हैं —
जो हाथ कोई रियायत, कमीशन या सूद नहीं माँगता
जो हाथ उनके हाथों में किसी चिड़िया-सा फँसा नहीं।
डरते हैं, नीग्रो बन्धु,
वे हमारे गीतों से डरते हैं, रोबसन!
विदा
विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
मैं तुम्हें दिल में लिए जाता हूँ
दिल की गहराइयों में —
और अपने संघर्ष को अपने मन में लिए।
विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
सिन्धु के किनारे पाँत बाँध मत खड़े हो
चित्र-कार्डों में बने विहगों से
अपने रूमाल हिलाते हुए।
यह सब मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए।
मैं सिर से पैर तक
अपने को देखता हूँ दोस्तों की आँखों में।
ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा, शब्द के बिना।
रात्रि आकर द्वार पर ताला जड़ जाएगी,
वर्ष झरोखों पर अपने जाल बुनेंगे —
और मैं कारा-गीत ऊँचे स्वरों में उठाऊँगा —
उसे संघर्ष का गीत बना गाऊँगा।
हम फिर मिलेंगे,
दोस्तो,
फिर हम मिलेंगे ही।
साथ-साथ सूरज को देखकर हँसेंगे हम,
साथ-साथ जुटेंगे फिर संघर्ष में।
ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा !
आशावादी आदमी
जब वह बच्चा था, उसने
कभी नहीं तोड़े तितलियों के पंख
बिल्लियों की पूँछ में उसने कभी नहीं बाँधे टिन के डिब्बे
माचिस की डिब्बी में नहीं बंद किया पतंगों को
चींटियों की बाँबियों को कभी पैरों से नहीं रौंदा।
वह बड़ा हुआ
और ये सारी चीज़े उसके साथ हुईं।
जब वह मरा, मैं उसके बिस्तर के पास मौजूद था।
उसने कहा मुझे एक कविता सुनाओ
सूरज और सागर के बारे में
नाभिकीय रियेक्टरों और उपग्रहों के बारे में
इंसानियत की महानता के बारे में।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे रोटी को नमक में डुबोना और खाना
जैसे तेज़ बुखार में रात में उठना
और टोंटी से मुँह लगाकर पानी पीना
जैसे डाकिये से लेकर भारी डिब्बे को खोलना
बिना किसी अनुमान के कि उसमें क्या है
उत्तेजना, खुशी और सन्देह के साथ।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे सागर के ऊपर से एक जहाज में पहली बार उड़ना
जैसे मेरे भीतर कोई हरकत होती है
जब इस्ताम्बुल में आहिस्ता-आहिस्ता अँधेरा उतरता है।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे खुदा को शुक्रिया अदा करना हमें जिन्दगी अता करने के लिए।
जीना
जीना कोई हँसी-मजाक की चीज़ नहीं:
तुम्हें इसे संजीदगी से लेना चाहिए।
इतना अधिक और इस हद तक
कि, जैसे मिसाल के तौर पर, जब तुम्हारे हाथ बँधे हों
तुम्हारी पीठ के पीछे,
और तुम्हारी पीठ लगी हो दीवार से
या फिर, प्रयोगशाला में अपना सफेद कोट पहने
और सुरक्षा-चश्मा लगाये हुए भी,
तुम लोगों के लिए मर सकते हो --
यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिनके चेहरे
तुमने कभी देखे न हों,
हालाँकि तुम जानते हो कि जीना ही
सबसे वास्तविक, सबसे सुन्दर चीज है।
मेरा मतलब है, तुम्हें जीने को इतनी
गम्भीरता से लेना चाहिए
कि जैसे, मिसाल के तौर पर, सत्तर की उम्र में भी
तुम जैतून के पौधे लगाओ --
और ऐसा भी नहीं कि अपने बच्चों के लिए,
लेकिन इसलिए, हालाँकि तुम मौत से डरते हो
तुम विश्वास नहीं करते इस बात का,
इसलिए जीना, मेरा मतलब है, ज्यादा कठिन होता है।
लोहे के पिंजरे में शेर
देखो लोहे के पिंजरे में कैद उस शेर को
उसकी आँखों की गहराई में झाँको
जैसे दो नंगे इस्पाती खंजर
लेकिन वह अपनी गरिमा कभी नहीं खोता
हालाँकि उसका क्रोध
आता है और जाता है
जाता है और आता है
तुम्हें पट्टे के लिए कोई जगह नहीं मिलेगी
उसके घने मोटे अयाल के इर्द-गिर्द
हालाँकि कोड़े के निशान मिलेंगे अभी भी
उसकी पीली पीठ पर जलते हुए
उसके लम्बे पैर तनते हैं और दो ताँबे के
पंजों की शक्ल में ढल जाते हैं
उसके अयाल के बाल एक-एक कर खड़े होते हैं
उसके गर्वीले सिर के इर्द-गिर्द
उसकी नफरत
आती है और जाती है
जाती है और आती है
काल कोठरी की दीवार पर मेरे भाई की परछाईं
हिलती है
ऊपर और नीचे
ऊपर और नीचे
पाँच पंक्तियाँ
जीतने के लिए झूठ को जो पसरा है दिल में, गलियों में, किताबों में,
माँओं की लोरियों से लेकर
उन समाचार रिपोर्टों में जो वक्ता पढ़ रहा है,
समझना, मेरी प्रिय, क्या शानदार खुशी की चीज़ है,
यह समझना कि क्या बीत चुका है और क्या होने वाला है।
तुम
तुम मेरी गुलामी हो और मेरी आजादी
तुम हो गर्मियों की एक आदिम रात की तरह जलती हुई मेरी देह
तुम मेरा देश हो
तुम हो हल्की भूरी आँखों में हरा रेशम
तुम हो विशाल, सुन्दर और विजेता
और तुम मेरी वेदना हो जो महसूस नहीं होती
जितना ही अधिक मैं इसे महसूस करता हूँ।
झूठ की पराजय
उन लोरियों से जिन्हें माताएँ गाती हैं
उन समाचारों तक जिन्हें रेडियो पर सुना जाता है
झूठ को परास्त करना
दुनिया में हर जगह —
दिलों में, क़िताबों में, शहरों की सड़कों पर —
इसमें कितना अद्भुत्त आनन्द आता है — यह जान लेना कि
क्या सोता और क्या आता जा रहा है — हमेशा को। माध्यम से
००
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल व चन्द्रबली सिंह
नाज़िम हिकमत |
तुम्हारे हाथ
तुम्हारे हाथ
पत्थरों जैसे मजबूत
जेलखाने की धुनों जैसे उदास
बोझा खींचने वाले जानवरों जैसे भारी-भरकम
तुम्हारे हाथ जैसे भूखे बच्चों के तमतमाए चेहरे
तुम्हारे हाथ
शहद की मक्खियों जैसे मेहनती और निपुण
दूध भरी छातियों जैसे भारी
कुदरत जैसे दिलेर तुम्हारे हाथ,
तुम्हारे हाथ खुरदरी चमड़ी के नीचे छिपाए अपनी
दोस्ताना कोमलता।
दुनिया गाय-बैलों के सींगों पर नहीं टिकी है
दुनिया को ढोते हैं तुम्हारे हाथ।
(‘तुम्हारे हाथ और उनके झूठ’ कविता का एक हिस्सा,1949)
रोशनी के धुले दिन देखेंगे
बच्चो, हम सुन्दर दिन देखेंगे, देखेंगे,
सूरज की रोशनी के धुले दिन देखेंगे, देखेंगे —
खुले हुए सागर में अपनी द्रुतगामी नौकाएँ दौड़ाएँगे।
जगमग करते हुए खुले नीले सिन्धु में नावें दौड़ाएँगे।
सोचो तो पूरी गति से उन्हें कैसा दौड़ाना !
मोटर चलती हुई !
मोटर गरजती हुई !
अहाहा, बच्चो, कौन कह सकता है
कितना अद्भुत्त होगा
चूम लेना नावें जब वे सौ मील की रफ़्तार से दौड़ें !
आज यह सच है
केवल जुमा और इतवार को फूलों के बाग़ों में हम जाते
केवल जुमा के दिन
केवल इतवार के दिन
आज यह सच है
हम आलोकित पथों के भण्डार यों देखा करते हैं,
जैसे परी की कहानी सुन रहे हों
शीशे की दीवारों वाले वे भण्डार
सत्तर मंज़िलों की ऊँचाइयों में ऐसे हैं।
सच है कि जब हम जवाब चाहते हैं तो
डायन-सी पुस्तक खुल जाती है —
कारागार।
चमड़े की पेटियों में हमारी बाँहें बँध जातीं
टूटी हड्डियाँ
ख़ून।
सच है हमारी थालियों में अभी
हफ़्ते में एक दिन ही गोश्त मिल पाता है
और हमारे बच्चे काम के बाद यों लौटा करते हैं
जैसे पीली-पीली ठठरियाँ हों।
सच है अभी —
लेकिन तुम मेरी बात गाँठ बाँध लो
बच्चो, हम सुन्दर दिन देखेंगे, देखेंगे,
सूरज की रोशनी के धुले दिन देखेंगे,
खुले हुए सागर में अपनी द्रुतगामी नौकाएँ दौड़ाएँगे।
जगमग करते हुए खुले नीले सागर में नावें दौड़ाएँगे।
मेरी शायरी
चांदी की काठी वाला घोड़ा नहीं है मेरे पास सवारी के लिए
नहीं है गुज़ारे के लिए कोई विरासत
ज़र न ज़मीन
कुल जमा शहद की एक हांडी है मेरे पास
आग की लपटों जैसे शहद की हांडी।
मेरा शहद ही मेरा सब कुछ है
सभी किस्म के कीड़े-मकोड़ों से
हिफ़ाजत करता हूं मैं अपने ज़र-ज़मीन की
मेरा मतलब अपनी शहद की हांडी की।
ज़रा ठहरो,बिरादर
मेरी हांडी में जब तक शहद है
टिम्बकटू से भी आएंगी
मधुमक्खियां उसके पास।
बीसवीं सदी
’जानेमन आओ अब सो जाएं
और जगें सौ साल बाद’
नहीं
मैं भगोड़ा नहीं
अलावा इसके,अपनी सदी से मैं भयभीत नहीं।
मुसीबतों की मारी मेरी यह सदी
शर्म से झेंपी हुई
हिम्मत से भरी हुई मेरी यह सदी
बुलंद और दिलेर
मुझे कभी अफसोस नहीं हुआ
कि क्यों इतनी जल्दी पैदा हो गया।
बीसवीं सदी में पैदा हुआ
फ़ख्र है इसका मुझे
जहां भी हूं अपने लोगों के बीच हूं,काफी है मेरे लिए
और यह कि एक नई दुनिया के लिए मुझे लड़ना है
‘जानेमन सौ साल बाद’
मगर नहीं,पहले ही उसके और सब कुछ के बावजूद
मरती और फिर-फिर पैदा होती हुई मेरी सदी
मेरी सदी,जिसके आखिरी दिन ख़ूबसूरत होंगे
सूरज की रोशनी जैसी खुल-खुलेगी मेरी सदी
जानेमन,तुम्हारी आंखों की तरह।
(1941)
हल्की हरी हैं मेरी महबूबा की आंखें
हल्की हरी हैं मेरी महबूबा की आंखें
हरी
जैसे अभी अभी सींचा हुआ
तारपीन का रेश्मी दरख्त
हरी
जैसे सोने के पत्तर पर
हरी मीनाकारी
ये कैसा माजरा, बिरादरान,
कि नौ सालों के दौरान
एक बार भी उसके हाथ
मेरे हाथों से नहीं छुए।
मैं यहां बूढ़ा हुआ
वह वहां।
मेरी दुख्तर-बीवी
तुम्हारी गुदाज़-गोरी गर्दन पर
अब सलवटें उभर रहीं हैं।
सलवटों का उभरना
इस तरह नामुमकिन है हमारे लिए
बूढ़ा होना।
जिस्म की बोटियों के ढीले पड़ने को
कोई और नाम दिया जाना चाहिए,
उम्र का बढ़ना
बूढ़ा होना
उन लोगों का मर्ज़ है जो इश्क नहीं कर सकते।
(1947)
यही तो सवाल है
दुनिया की सारी दौलत से पूरी नहीं हो सकती उनकी हवस
चाहते हैं बनाना वे ढेर सारी रकम
उनके लिए दौलत के अंबार लगाने के लिए
तुम्हें मारना होगा औरों को,खुद भी मरना होगा दम-ब-दम।
झांसा पट्टी में उनकी आना है?
या धता बताना है?
तुम्हारे सामने यही तो सवाल है!
झांसें में न आए तो जियोगे ता-क़यामत
और अगर आ गए तो मरना हरहाल है।
(1951)(लंबी कविता का एक अंश)
पाल रोबसन से
वे हमें अपने गीत नहीं गाने देते है, रोबसन,
ओ गायकों के पक्षीराज नीग्रो बन्ध !
वे चाहते हैं कि हम अपने गीत न गा सकें।
डरते है, रोबसन,
वे पौ के फटने से डरते हैं।
देखने,
सुनने,
छूने से
डरते हैं।
वैसा प्रेम करने से डरते हैं
जैसा हमारे फ़रहाद ने प्रेम किया
(निश्चय ही तुम्हारे यहाँ भी तो कोई फ़रहाद हुआ,
रोबसन, नाम तो उसका बताना ज़रा)
उन्हें डर है
बीज से,
पृथ्वी से,
पानी से,
और वे
दोस्त के हाथ की याद से डरते हैं —
जो हाथ कोई रियायत, कमीशन या सूद नहीं माँगता
जो हाथ उनके हाथों में किसी चिड़िया-सा फँसा नहीं।
डरते हैं, नीग्रो बन्धु,
वे हमारे गीतों से डरते हैं, रोबसन!
विदा
विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
मैं तुम्हें दिल में लिए जाता हूँ
दिल की गहराइयों में —
और अपने संघर्ष को अपने मन में लिए।
विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
सिन्धु के किनारे पाँत बाँध मत खड़े हो
चित्र-कार्डों में बने विहगों से
अपने रूमाल हिलाते हुए।
यह सब मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए।
मैं सिर से पैर तक
अपने को देखता हूँ दोस्तों की आँखों में।
ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा, शब्द के बिना।
रात्रि आकर द्वार पर ताला जड़ जाएगी,
वर्ष झरोखों पर अपने जाल बुनेंगे —
और मैं कारा-गीत ऊँचे स्वरों में उठाऊँगा —
उसे संघर्ष का गीत बना गाऊँगा।
हम फिर मिलेंगे,
दोस्तो,
फिर हम मिलेंगे ही।
साथ-साथ सूरज को देखकर हँसेंगे हम,
साथ-साथ जुटेंगे फिर संघर्ष में।
ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा !
आशावादी आदमी
जब वह बच्चा था, उसने
कभी नहीं तोड़े तितलियों के पंख
बिल्लियों की पूँछ में उसने कभी नहीं बाँधे टिन के डिब्बे
माचिस की डिब्बी में नहीं बंद किया पतंगों को
चींटियों की बाँबियों को कभी पैरों से नहीं रौंदा।
वह बड़ा हुआ
और ये सारी चीज़े उसके साथ हुईं।
जब वह मरा, मैं उसके बिस्तर के पास मौजूद था।
उसने कहा मुझे एक कविता सुनाओ
सूरज और सागर के बारे में
नाभिकीय रियेक्टरों और उपग्रहों के बारे में
इंसानियत की महानता के बारे में।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे रोटी को नमक में डुबोना और खाना
जैसे तेज़ बुखार में रात में उठना
और टोंटी से मुँह लगाकर पानी पीना
जैसे डाकिये से लेकर भारी डिब्बे को खोलना
बिना किसी अनुमान के कि उसमें क्या है
उत्तेजना, खुशी और सन्देह के साथ।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे सागर के ऊपर से एक जहाज में पहली बार उड़ना
जैसे मेरे भीतर कोई हरकत होती है
जब इस्ताम्बुल में आहिस्ता-आहिस्ता अँधेरा उतरता है।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे खुदा को शुक्रिया अदा करना हमें जिन्दगी अता करने के लिए।
जीना
जीना कोई हँसी-मजाक की चीज़ नहीं:
तुम्हें इसे संजीदगी से लेना चाहिए।
इतना अधिक और इस हद तक
कि, जैसे मिसाल के तौर पर, जब तुम्हारे हाथ बँधे हों
तुम्हारी पीठ के पीछे,
और तुम्हारी पीठ लगी हो दीवार से
या फिर, प्रयोगशाला में अपना सफेद कोट पहने
और सुरक्षा-चश्मा लगाये हुए भी,
तुम लोगों के लिए मर सकते हो --
यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिनके चेहरे
तुमने कभी देखे न हों,
हालाँकि तुम जानते हो कि जीना ही
सबसे वास्तविक, सबसे सुन्दर चीज है।
मेरा मतलब है, तुम्हें जीने को इतनी
गम्भीरता से लेना चाहिए
कि जैसे, मिसाल के तौर पर, सत्तर की उम्र में भी
तुम जैतून के पौधे लगाओ --
और ऐसा भी नहीं कि अपने बच्चों के लिए,
लेकिन इसलिए, हालाँकि तुम मौत से डरते हो
तुम विश्वास नहीं करते इस बात का,
इसलिए जीना, मेरा मतलब है, ज्यादा कठिन होता है।
लोहे के पिंजरे में शेर
देखो लोहे के पिंजरे में कैद उस शेर को
उसकी आँखों की गहराई में झाँको
जैसे दो नंगे इस्पाती खंजर
लेकिन वह अपनी गरिमा कभी नहीं खोता
हालाँकि उसका क्रोध
आता है और जाता है
जाता है और आता है
तुम्हें पट्टे के लिए कोई जगह नहीं मिलेगी
उसके घने मोटे अयाल के इर्द-गिर्द
हालाँकि कोड़े के निशान मिलेंगे अभी भी
उसकी पीली पीठ पर जलते हुए
उसके लम्बे पैर तनते हैं और दो ताँबे के
पंजों की शक्ल में ढल जाते हैं
उसके अयाल के बाल एक-एक कर खड़े होते हैं
उसके गर्वीले सिर के इर्द-गिर्द
उसकी नफरत
आती है और जाती है
जाती है और आती है
काल कोठरी की दीवार पर मेरे भाई की परछाईं
हिलती है
ऊपर और नीचे
ऊपर और नीचे
पाँच पंक्तियाँ
जीतने के लिए झूठ को जो पसरा है दिल में, गलियों में, किताबों में,
माँओं की लोरियों से लेकर
उन समाचार रिपोर्टों में जो वक्ता पढ़ रहा है,
समझना, मेरी प्रिय, क्या शानदार खुशी की चीज़ है,
यह समझना कि क्या बीत चुका है और क्या होने वाला है।
तुम
तुम मेरी गुलामी हो और मेरी आजादी
तुम हो गर्मियों की एक आदिम रात की तरह जलती हुई मेरी देह
तुम मेरा देश हो
तुम हो हल्की भूरी आँखों में हरा रेशम
तुम हो विशाल, सुन्दर और विजेता
और तुम मेरी वेदना हो जो महसूस नहीं होती
जितना ही अधिक मैं इसे महसूस करता हूँ।
झूठ की पराजय
उन लोरियों से जिन्हें माताएँ गाती हैं
उन समाचारों तक जिन्हें रेडियो पर सुना जाता है
झूठ को परास्त करना
दुनिया में हर जगह —
दिलों में, क़िताबों में, शहरों की सड़कों पर —
इसमें कितना अद्भुत्त आनन्द आता है — यह जान लेना कि
क्या सोता और क्या आता जा रहा है — हमेशा को। माध्यम से
००
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