image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

15 जुलाई, 2018

परखः आठ


भोजवन में कविता

गणेश गनी


चनाब के किनारे रेत में खेलना और रंगीन पत्थरों को इकट्ठा करना हमेशा अच्छा लगता था। वैसा रेत और वैसे रंगीन गोल गोल पत्थर किसी और नदी के किनारे मिलना मुश्किल है। हमारे लिए चनाब केवल दरिया नहीं है, यह कई सभ्यताओं, संस्कृतियों, लोकगाथाओं, लोकसंगीत, अमर प्रेम कथाओं, गीतों और कविताओं को समेटे निरन्तर बहता जीवन है। जीवन में भी वक्त के साथ कितना कुछ बहता रहता है। इस बहाव में बहुत कुछ तो बालू बन जाता है, कुछ बड़े बड़े गोल पत्थर और थोड़े से छोटे मगर रंगीन पत्थर भी। यही रंगीन लुभावने पत्थर हमारी स्मृति में हमेशा हमेशा के लिए घर कर जाते हैं।

गणेश गनी


लाहुल का चिमरेट गांव हरे भरे खेतों से घिरा है। पिता जी इधर वन रक्षक हैं। मेरा बचपन लाहुल के बच्चों के साथ बोलते बतियाते बीता तो लाहुली भाषा को ज़ुबान पर चढ़ते देर नहीं लगी। शीत ऋतु में गांव के बीच से बहने वाले नाले को ग्लेशियर यानि हिमनदी पूरी तरह से ढक देती थी। पानी का प्रबंधन अब बर्फ़ पिघला कर किया जाता था। जब ग्रीष्म ऋतु दस्तक देती तो यह हिमनदी कहीं कहीं पिघल जाती और गोल गोल गहरे खोह बन जाते। मेरी जिद्द के कारण मां मुझे अपनी शाल से पीठ पर बांधती और ग्लेशियर पर चलकर खोह में से पानी का पीपा भर कर लाती।
पिताजी को रेडियो सुनने, शिकार करने तथा मदिरा सेवन का शौक था। रेडियो पर विविध भारती, ऑल इंडिया रेडियो की ऊर्दू सर्विस, रेडियो सिलोन तथा आकाशवाणी शिमला समय समय पर लगातार बजते रहते।
अजेय हिमाचल के इसी सुंदर लाहुल से सम्बद्ध हिंदी के चर्चित कवि हैं। यह अलग बात है कि अजेय प्रचार से दूर रहते हैं । इनकी कविताओं में अलग तरह का राग है । कवि ने अपनी अलग शैली विकसित की है और शिल्प तो कुछ कविताओं में अद्भुत है । बिना नाम के भी ये कवितायेँ खुद कहती हैं कि हमें अजेय ने लिखा है।
दरअसल अजेय को बार बार पढ़ने का मन करता है। कवि कैसे अपने आसपास से कविता चुनता है और उसे गढ़ता है, यह काम कोई प्रतिभाशाली कवि ही कर सकता है । मुझे लगता है जैसे अजेय अपनी कविता को पालते हैं, पोसते हैं, कई कई दिन। इनकी बहुत कविताओं में स्थानीयता है । जो इन्हें अन्य कवियों से अलग करती है । भाषा में ताजगी , बिम्बों और मुहावरों का शानदार प्रयोग इनकी खासियत है।
पहाड़ों में जिस ऊंचाई पर देवदार के वन भी उगना बंद कर देते हैं, ठीक वहीँ से भोजवन उगना आरम्भ करते हैं और यह अंतिम ट्री लाइन होती है। भोजवन मुझे हमेशा आकर्षित करते आए हैं। इनकी खूबसूरती और आकर्षण केवल वही महसूस कर सकता है जो इनके करीब रहा हो। हमारे गांव के लोग भुज का ही हल बनाते थे। यह पक्का और मजबूत होता है। भोजपत्र घरों की मिट्टी वाली छतों में काम आता रहा है। पैदल यात्राओं में भोजन इन्हीं भोजपत्रों में सुरक्षित लपेटकर झोलों में रखा जाता था। भुज के पेड़ों का सम्बन्ध जीवन से बड़ा ही करीबी है। जब एक कवि भोजवन में पतझड़ देख रहा हो तो बड़ा अचम्भा होता है-

लेटी रहेगी
एक कुनकुनी उम्मीद
मेरे बगल में
एक ठण्डी मुर्दा लिहाफ के नीचे
कि फूट जाएंगी कोंपलें
लौट आएगी
अगले मौसम तक
भोजवन में जिंदगी।

अजेय की कविताओं में न केवल विविधता है बल्कि जिद्द भी है, एक अजीब सी जिद्द। वो ईश्वर से कहते हैं-

इतने दिन हो गए
आज तुम्हारी गोद में सोऊंगा
तुम मुझे परियों की कहानी सुनाना
फिर न जाने कब फुर्सत होगी।

देखा जाए तो आज अधिकतर कवि डर कर लिख रहे हैं। यह डर उन्हें मार रहा है। कवि के स्वर में विरोध के बजाए जब समझौता आ जाए तो समझो वो कविता नकली है। लेकिन हिमालय में पला बढ़ा कवि पाठकों को अपनी कविताओं से चमत्कृत करता है। कवि की बातें आखिरी बातें नहीं हैं-

आखिरी बातें तो अभी कही जानी हैं
यह जो कुछ कहा है
आखिरी बात कहने के लिए ही कहा है
आखिरी बात तो दोस्त
बरसात की तरह कही जाएगी
बौछारों में
और जो परनाले चलेंगे
पिछली तमाम बातें उनमें बह जाएंगी।

अजेय अपनी कविताओं में स्थानीयता का जमकर प्रयोग करते हैं। कई मुहावरे और लोकशब्द उनकी कविताओं में सुंदरता से पिरोये गए हैं। यही उन्हें अन्य लोकधर्मी कवियों से अलग रेखांकित करता है। अजेय आम बोलचाल की भाषा को भी बड़ी कुशलता से अपनी कविता में लाए हैं। पीकर ठुच्च , पीके गच्च, अग्नि कसम जैसे वाक्य कवि ने प्रयोग किये हैं। बातचीत कविता अजेय की एक कमाल की कविता है-

चुस्त लोगों ने सोसायटियां बणा के
जमीने कराई अपने नाम
आज मालिक बने हैं सब
प्लाट काट के बेच रहा है
कलोनी खड़ी कर दी अगलों ने
कौण पूछ सकता है?

यह कविता लंबी है लेकिन इसका शिल्प अद्भुत है। पाठक को इस कविता की शैली मंत्रमुग्ध करती है-

सही गलत तो पता नहीँ हो भाई
हम अनपढ़ आदमी, क्या पता
पर देखाई देता है साफ़ साफ़
कि वो ताकतवर है अभी भी
अभी भी जैसे राज चलता है हम पे
उनका ही - एह !

छतडू में कैंप फायर अजेय की एक और कविता है जो बहुत कुछ कहती है। कवि ने ईश्वर पर बेबाकी से बात की है। अजेय की ऐसी कविताएँ भी अन्य प्रगतिशील कवियों से भिन्न हैं। इन में अजीब सा आकर्षण है-

ऐसे ही बैठे थे
फायरप्लेस के आगे
हम पांच या छः जनें
कि अचानक उतर आया जीजस
दीवार पर टँगी सूली से
चुपचाप शामिल हो गया
हमारी गपशप में ।

रात भर बतियाते रहे हम
अलाव तापते
बीयर के साथ
दुनियादारी और मौसम की बातें
बातें फूलों रंगों और कीट पतंगों की
बातें , आदमी और पैसे
और ताकत से होते हुए
युद्धों की ,हड़तालों , कर्फ्यू और दंगों की
हँसता रहा पैगम्बर रात भर !

छतडू में कैंप फायर कविता को पढ़ने पर कवि की दृष्टि की विराटता का अहसास होता है। वो स्थूल चीजों को भी कितनी सूक्ष्मता से देखता है और अपनी बात कहता है।
इन सपनों को कौन गाएगा, ब्यून्स की टहनियां, एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है तथा माँ पर लिखी अजेय की कवितायेँ बहुत चर्चित रही हैं। खुद अपने खिलाफ, आज जब वह जा रही है तथा तुम्हारी जेब में सूरज होता था जैसी तीन कवितायेँ माँ की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करती हैं जिन्हें कोई भी बार बार पढ़ना चाहेगा। आज जब अधिकतर कवि सुख, दुःख, मिलन, वियोग, स्मृति आदि को जश्न की तरह लिख रहे हैं, वे अहसान जताना नहीं भूलते। ऐसे समय में अजेय की दृष्टि, सोच और लेखनी में एक ईमानदारी, सच्चाई, भोलापन और निश्छलता  दिखाई देती है-

मुझे तुम्हारी सबसे भीतर वाली जेब से
चुराना है एक दहकता सूरज
और भागकर गुम हो जाना है।

अजेय ने चर्चित यायावर लेखक सैन्नी अशेष को समर्पित कुछ कमाल की कविताएं लिखी हैं। ईश्वर कविता में अजेय ने बहुत ही चतुरता से उन लोगों से सवाल किया है जो मंदिरों में या देवी देवताओं में ईश्वर को ढूंढते हैं -

तुम आहत होते हो मैं सांत्वना होना शुरू होता हूँ
तुम ठगा हुआ महसूस करते हो मैं विश्वास होना शुरू होता हूँ
तुम्हें प्यास लगती है मैं पानी होना शुरू होता हूँ।

जहां जहां जो जो तुम चाहते हो
मैं वहां वहां वह वह होता हूँ
मैं अभी तक एक इंसान ही हूं दोस्त
अब बताओ क्या तुम्हें एक ईश्वर चाहिए ?

रुलाई कविता में कवि ने एक ऐसी हकीकत बयान की है जिसे अक्सर लोग छिपाते हैं। साहित्य में कवि प्रगतिशील, जनवादी और क्रांतिकारी जैसे अलंकारों से सुशोभित हैं, परंतु असल में देखा जाए तो स्थिति इसके विपरीत है। अजेय ने इस बात को बेहद गम्भीर और सटीक शब्दों में रखा है -

कैसे कहूँ तुम्हारे लिए
और कैसे कहूँ कि तुम्हें लड़ना चाहिए
जबकि मुझे न तो लड़ना आता है
न ही दुश्मन का पता है।

तो रो लेने दो मुझे सच्चे मन से
कि यही एक काम है
जो मैं ठीक से कर सकता हूँ
और तुम इस रुलाई में से खोज लेना
अपने लिए एक लड़ाई।

अजेय


क्या कमाल कहा है कवि ने। एकदम अचम्भित करने जैसा। एक कवि को अपने शब्दों और विषय का चुनाव बड़ी खूबसूरती और सावधानी से करना होता है। अजेय में यह गुण विद्यमान है। वो अपनी बात कुछ इस प्रकार से रखते हैं कि पाठक हैरान रह जाता है। उसे लगता है कि यह बात तो उसको पता थी पर वो कह क्यों नहीं पाया। फ़कीर कविता में अजेय कहते हैं -

जहां उसे हांफना चाहिए था
ठीक वहीं उसकी कहन में ताकत आ रही थी
बड़बड़ाता था जहां जहां
लगता था बौखलाहट में टूट जाएगा
रो लेना चाहता था जहां जहां
ठीक वहीं उसमें उल्लास फूट रहा था।

गलत लोग कविता में कवि ने भ्रम में रहने और जीने वालों के मुखौटे नोचे हैं। ऐसी कविता नंगा तो करती ही है सावधान भी करती है -

सब गलतियां कर रहे थे

जो जानबूझ कर गलतियां कर रहे थे
खुश थे, कि दुनिया बेवकूफ है
और जो गलती से गलतियां कर रहे थे
डरे हुए थे, कि दुनिया उनके बारे क्या सोचेगी।

सब लोग गलत न होने का नाटक कर रहे थे
जबकि सब लोग गलतियां कर रहे थे।

अजेय ने स्त्री पर भी सुन्दर और अद्भुत कवितायेँ लिखी हैं पर वे स्त्री विमर्श से परे हमें संवेदनाओं की नमी देती हैं , वे शुष्क नहीं हैं। उनमे हरे हरे पत्तों सी ताजगी और बहते पानी सी रवानगी है। नए मुहावरे, नए बिम्ब, नया दृष्टिकोण, स्थानीयता तथा भाषा की ताजगी उन्हेँ अन्य कवियों से अलग करता है।
यहाँ एक और कविता का जिक्र करना जरुरी है। कवि का कविताओं में इतना यकीन है जितना कि एक पक्षी का अपने पंखों पर। यह भी सत्य है कि हम दृष्टि के आधार पर नहीँ विश्वास के आधार पर चलते हैं। कविताओं के बारे में कविताएं एक ऐसी रचना है जो कवि ने मुक्त कंठ से कही है, बिना किसी दबाव के और केवल कविता पर ही सोचते हुए -

वक्त आया है
हम खूब कवितायेँ लिखें
कविताओं के बारे में
इतनी कि
कवितायेँ हमारी जेबों से निकल
बाजार में फैल जाएं
वक्त आया है
कि हम खूब कवितायेँ लिखें
जिंदगी के बारे में
इतनी कि
कविताओं के हाथ थामकर
जिंदगी के झंझटों में कूद सकें
जीना आसान बने
और कविताओं के लिए भी बची रहे
थोड़ी सी जगह
उस आसान जीवन में ।
००
 गणेश गनी
 9817200069

परखः छः नीचे लिंक पर पढ़िए


https://bizooka2009.blogspot.com/2018/07/blog-post_83.html?m=1


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें