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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

11 जुलाई, 2018

मीलोज़ {CZESLAW  MELOZ } की कविताएं 

अनुवाद: संध्या कुलकर्णी


संध्या कुलकर्णी 


 मानवीय कारण

खूबसूरत हैं और अजेय भी
कोइ सलाखें नहीं ,न कोई कांटेदार बाड़
 किताबों की कोई नरमियत भी नहीं
कोई जलावतन की सज़ा  इसके खिलाफ मुक़र्रर  नहीं की जा सकती
ये भाषा में वैश्विक विचार स्थापित करता है
और हमारे हाथों को मार्गदर्शन देता है
कि, हम लिख सकें सत्य और न्याय बड़े अक्षरों में
झूठ और दमन छोटे अक्षरों में
ये इस तरह रखा जा सकता है कि,
कौनसी  चीज़ किस चीज़ के ऊपर है ,जैसी वो हैं
ये दुश्मन हैं निराशा की और उम्मीद की मित्र
इसे नहीं पता ग्रीक  और जियुस
गुलाम और मालिक
हमें देती  है दुनिया का साम्राज्य प्रबंधन के लिए
ये  यातना देने वाले घृणित शब्द जो खराब करते हैं
उनसे सुरक्षित करता है
बहुत ही दुरूह और पारदर्शी गध्य
यह कहता है कि, हर चीज़ नई है सूर्य की रोशनी में
अतीत की कसी हुई मुट्ठियाँ खोलता है

सुन्दर और युवा दर्शन और काव्य------
अच्छे के लिए उनका सहयोग

प्रकृति उनके जन्म का अभिनन्दन करती है
इस तरह जैसे कि कल ही मनाया गया हो
यह खबर पहाड़ों तक एक प्रतिध्वनि द्वारा
एक  यूनिकॉर्न* द्वारा पहुंचाई जाती है
उनकी दोस्ती गौरवशाली  होगी ,समय होगा उनका असीम
उनके शत्रु खुद ही कर देंगे अपना सर्वनाश ....

मीलोज़
{CZESLAW  MELOZ }







 समर्पण { DEDICATION  }

तुम , जिसे मैं नहीं कर सकता सुरक्षित
मुझे सुनो तुम ...
मेरे इस सादा से भाषण को समझने की कोशिश करो
क्योकि, अन्य भाषणों से मुझे आती है शर्म
मैं कसम खाता हूँ कि, मेरे भीतर कोई भी लच्छेदार शब्द नहीं हैं
मैं तुमसे बिलकुल खामोशी के साथ एक बादल
या फिर एक पेड़ की तरह बात कर रहा हूँ

जो मुझे ताकतवर बनाता है तुम्हारे लिए
 एक  मृत्यु योग्य कारण की तरह
तुम विदा को उस ख़ास समय से मिला देते हो
नए समय की शुरुआत के साथ
घृणासिक्त प्रेरणा की  संगीतमय सौन्दर्य से
अंधी ताक़त से सम्पूर्ण आकार की  तरह ...


यहाँ है उथली पोलिश नदियाँ
और एक वृहदाकार  पुल एक सफ़ेद धुंध की  और जाता हुआ
यहाँ है एक टूटा हुआ शहर
 हवा फेंक रही है गिध्धों की चीखें तुम्हारी कब्र पर----



जब मैं तुम से कर रहा हूँ बातें ....

कविता क्या है आखिर ?
अगर वो देश और लोगों को नहीं बचा पाती हो
बोले जा रहे झूठ का स्वीकार्य सहयोग
एक पियक्कड़ों का गीत जिसकी कभी भी काटी जा सकती है जीभ
हाई स्कूल की कन्याओं के लिए पढ़े  जा रहे गीत
कि, मैं चाहता हूँ श्रेष्ठ कविताएँ
मैंने  ज़रा देर से खोजा  इसका पवित्र उद्धेश्य
कि, केवल  इसमें और केवल इसमें ही मैं देखता हूँ इसका हल

वो अक्सर डाला करते है
मृत लोगों की कब्र में ज्वार और पोस्ते के बीज
जो फिर से लोटेंगे पक्षियों के वेश में
मैं तुम्हारे लिए यह किताब यहाँ रखता हूँ
जो कभी यहाँ जिया था
शायद तब तुम यहाँ कभी  नहीं आओगे .. ........










जबकि हाँ किताबें हैं

जबकि, हाँ किताबें है अलमारियों में
एक अलग चीज़ की तरह
प्रकट होती हैं...अब भी नम
एक पेड़ के नीचे चमकते हुए
अखरोट की तरह बसंत के मौसम में
छूती हैं,जीना शुरू करती हैं ,संरक्षित
बावजूद,क्षितिज पर आग होने के
किले फूंके जाने के
जातियां परेड पर हो
गृह गतिमान हों...
"हम हैं" वो कहती हैं ...
भले ही उनके पन्ने फाड़े जा रहे हों
और तेज़ लपटें ,उनके आखर उड़ा रही हो
ज़्यादा टिकाऊ होती हैं...
हमसे भी ज़्यादा ...
हम,जिनकी नाज़ुक ऊष्मा
स्मृति के साथ बर्फ हो गई हैं
फैला दी गईं हैं..
कर दी गयी हैं नेस्तनाबूद
मैं कल्पना करता हूँ इस धरती की
जब नहीं रहूंगा मैं ..
कुछ नहीं होता ,कोई नुक्सान नहीं
यहाँ अब भी वही ऐतिहासिक नृत्य है
लिबास हैं स्त्रियों के ,शबनमी लिली है
एक गीत है घाटी में गूंजता
जबकि,किताबें हैं अलमारियों में
ठीक से उत्पन्न ,जन-जन से उगी हुई
अपनी चमक से ,ऊंचाईयों से .....

मीलोज़  [Czeslaw melosz]

मीलोज़  [Czeslaw melosz]


Czesław Miłosz was a Polish poet,
 prose writer, translator and diplomat. 
His World War II-era sequence The World is a collection of twenty "naïve" poems. 

Died: 14 August 2004, Kraków, Poland

Spouse: Carol Thigpen (m. 1992–2002), Janina Miłosz (m. 1944–1986)

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