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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

19 जुलाई, 2018

 तिब्बती कवि तेनजिन की कविताएं



तेनजिन 


यह कविताएं पिछले पच्चीस से भी अधिक वर्षों से अपने शब्दों के माध्यम से तिब्बत की व्यथा को दुनिया भर में पहुंचाने वाले तेनजिन त्सुन्दू की है जिन्हें “तिब्बत की आवाज़” के नाम से जाना जाता है.

2001का पहला आउटलुक-पिकाडोर नॉन-फिक्शन अवार्ड पाने वाले तेनजिन त्सुन्दू ने मद्रास से स्नातक की डिग्री लेने के बाद तमाम जोखिम उठाते हुए पैदल हिमालयी दर्रे पार किए और अपनी मातृभूमि तिब्बत का हाल अपनी आँखों से देखा. चीन की सीमा पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर तीन माह ल्हासा की जेल में रखा. उसके बाद उन्हें वापस भारत में  धकेल दिया गया.सत्तर की दहाई के शुरुआती सालों में मनाली के नज़दीक भारत की सरहदों पर बन रही सडकों पर मज़दूरी कर रहे एक गरीब तिब्बती शरणार्थी परिवार में जन्मे तेनजिन की तीन पुस्तकें छप चुकी हैं. इनमें दो कविता-संग्रह हैं और एक उनके लेखों का संग्रह. अपना पहला कविता संग्रह छापने के लिए उन्होंने अपने सहपाठियों से पैसे उधार मांगे थे - तब वे बम्बई में अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. कर रहे थे. 1999 में तेनजिन ने फ्रेंड्स ऑफ तिब्बत (इण्डिया) की सदस्यता ग्रहण की. तब से अब तक वे इस संगठन से जुड़े हैं और वर्तमान में महासचिव हैं. 2002 में उन्होंने बम्बई के ओबेरॉय टावर्स में तिब्बती झंडा और एक बैनर फहराया था जिस पर लिखा था - तिब्बत को आजाद करो भारत का दौरा कर रहे चीनी राष्ट्रपति उसी इमारत में भारत के बड़े व्यापारियों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे. इस घटना ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस कारनामे की तरफ खींचा और भारतीय पुलिस अफसरान ने जेल में उन्हें अपने अधिकारों की पैरवी करने की हिम्मत रखने की दाद भी दी.
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मै थक गया हूँ

थक गया हूँ दस मार्च के उस अनुष्ठान से
चीखता हुआ धर्मशाला की पहाड़ियों से
मैं थक गया हूँ
थक गया हूँ सड़क किनारे स्वेटरें बेचता
चालीस सालोँ से बैठे बैठे, धुल और थूक के बीच इंतजार करता
मैं थक गया हूँ
दाल भात खाने से
और कर्नाटक के जंगलों में गायें चराने से
मैं थक गया हूँ
थक गया हूँ मजनू के टीले की धुल में
घसीटता हुआ अपनी धोती
मैं थक गया हूँ
थक गया हूँ लड़ता हुआ उस देश के लिए





हताश  समय 

मार डालो मेरे दलाई लामा को
ताकि मै बंद कर दूँ यकीन करना
दफना दो मेरा सर
फोड़ दो उसे
मेरे कपडे उतार दो
जंजीरों में बाँध दो
बस मुझे आजाद न करना
इस कैदखाने के भीतर
यह शरीर तुम्हारा है
लेकिन इस शरीर के भीतर
मेरा यकीन बस मेरा है
तुम यही चाहते हो न
मुझे मार डालना यहीं-खामोशी के साथ
ध्यान रखना एक भी सांस न बचे
बस मुझे आजाद न करना
अगर तुम चाहो तो ऐसा फिर करना
बिलकुल शुरू से
मुझे अनुशासित करो
नए सिरे से शिक्षित करो
अपने सिद्धान्त सिखलाओ
मुझे दिखाओ अपनी कम्युनिस्ट तिकड़में
बस मुझे आजाद न करना
मार डालो मेरे दलाई लामा को
और मै
बंद कर दूंगा यकीन करना








एक 

 दगा

हमारे घर
हमारे गांव
हमारे देश को बचाने की कोशिश में
मेरे पिता ने अपनी जान गंवाई
मै भी लड़ना चाहता था
लेकिन हम लोग बौद्ध हैं
शांतिप्रिय ओर अहिंसक
सो मै क्षमा करता हूँ अपने शत्रु को
लेकिन कभी कभी मुझे लगता है
मैंने दगा दिया अपने पिता को



 दो   

शरणार्थी

जब मै पैदा हुआ
मेरे माँ ने कहा
तुम एक शरणार्थी हो
सड़क के किनारे पैट हमारा तम्बू
बर्फ में ढाका हुआ
तुम्हारे माथे पर
तुम्हारी भँवों के बीच
एक R खुदा हुआ है
ऐसा कहा मेरे अध्यापक ने
मैंने उसे खुरच कर निकालना चाहा
और मैंने अपने माथे पर पाई
एक लाल दर्द की खंरोच
मै जन्मजात शरणार्थी हूँ
मेरे पास तीन भाषाएँ हैं
गाने वाली मेरी मातृ भाषा है
मेरे माथे का R
तिब्बती भाषा में इसे पढ़ते हैं

RANGZEN

रंगजेन का मतलब होता है आजादी




तीन 

बाड़ें अब बदल चुकी है जंगल की
अब मै कैसे बताऊँ अपने बच्चों को
की कहाँ से आये थे हम




 चार  
                
लद्दाख से 

बस निगाह भर दूर है तिब्बत
उन्होंने कहा
दुमत्से की काली पहाड़ी से
यह तिब्बत हे अब
मैंने पहली बार देखा
अपने मुल्क तिब्बत को
हड़बड़ी में छिपते छिपाते
मै टीले पर पंहुच गया
मैंने मिट्टी को सूँघा
जमीन को कुरेदा
सूखी हवा को सूना
और सुना बूढ़े जंगली सारसों को
मुझे सीमा नजर नहीं आई
कसम खा के कहता हूँ कुछ भी
फर्क नहीं था वहां
मै नहीं जानता
मै वहां था या यहाँ
मुझे नहीं पता था
मै वहां था या यहाँ
लोग कहते हैं
क्यांग हर जाड़ों में आते हैं यहाँ
लोग कहते हैं
क्यांग हर गर्मियों में जाते हैं वहां
,,,,,
क्यांग(तिब्बत और लद्दाख के उत्तरी मैदानों में पाये जाने वाले जंगली गधे)








पांच  
              
लोसर की शुभकामनायें

ताशी देलक
हालांकि  किराये के एक मकान में
तुम बड़ी हो रही हो
अछे से बड़ी हो रही हो बहना
इस लोसर
जब तुम सुबह की प्रार्थना में जाओ
तो एक प्रार्थना और करना
की अगला लोसर हम मन सकें ल्हासा में
जब तुम अपने कॉन्वेंट में कक्षाएं पढ़ रही होओ
एक पाठ और सीखना
जिसे तुम वापस जा कर तिब्बत के बच्चों को पढ़ा सको
पिछले साल
हमारे शुभ लोसर के दिन
मैंने इडली सांभर का नाश्ता किया था
और बी ए फ़ाइनल का परचा दिया था
दांते दार अलुम्युनियम के मेरे कांटे में
ठीक से नहीं अटक पा रही थी इडलियां
अलबत्ता मेरा इम्तिहान अच्छा हुआ
हालांकि किराये के एक मकान में
तुम बड़ी हो रही हो,अच्छे से बड़ी हो रही हो बहन
अपनी जड़ों को भेजना
ईंटों
पत्थरों,टाइलों और बालू के पार
पसार लेना अपनी टहनियों को
और उठाना ऊँचे
बाड़ से ऊपर ऊँचे
तासी देलक

(तासी देलक- नववर्ष पर किया जाने वाला  तिब्बती अभिवादन)
लोसर-फरवरी या मार्च में पड़ने वाला तिब्बतेर नववर्ष

सौजन्य: गीता गैरोला

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