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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

22 मई, 2018

गुमनाम औरत की डायरी का एक और इंदराज

कविता कृष्णपल्लवी
भाग दो



 (एक) 

मेरे पास एक करामाती कोट है, जिसे पहनकर मैं लोगों की नज़रों से ओझल हो जाती हूँ और महान होने या बनने का मुग़ालता पालने वाली आत्माओं की तस्वीरें  नागिन की तरह अपनी आँखों के कैमरे में क़ैद करती रहती हूँ |

मेरे पास जादुई जूतियों की एक जोड़ी है, जिसे पहनकर मैं मनहूसों, पाखंडियों और कूपमंडूकों की घेरेबंदियों से भाग निकलती हूँ, उड़कर, पवन वेग से |







मेरे पास सपनों और कविताओं का एक जादुई छाता है जो मुझे उदासियों और एकाकीपन की ठण्डी बारिश से बचाता है |

मेरे पास अपने दुखों और हठों के कवच और कुंडल हैं, जो मेरी आत्मा को क्षुद्रता भरे जीवन और कुरूप मृत्यु से बचाते हैं |

मैं पंखों वाले जिस गर्वीले घोड़े की सवारी करती हूँ, वह मुझे विजय तक तो शायद न ले जाये, लेकिन वीरोचित पराजय तक ज़रूर ले जाएगा, या फिर हो सकता है कि एक उदात्त, काव्यात्मक मृत्यु तक |

(10, मार्च,2018)



(दो)

बूढ़े आदमी ने शिकायताना अंदाज में कहा, “हमारे ज़माने में ...”

युवा आदमी ने मेज पर मुक्का ठोंककर, बूढ़े आदमी को अवहेलनापूर्ण निगाहों से देखते हुए, अतिआत्मविश्वास के साथ कहा, “हमारे ज़माने में ...”

बूढ़ी स्त्री ने दोनों को उचटती निगाहों से देखा, फिर बेटी को शंकालु निगाहों से देखा और कुछ ईर्ष्या, कुछ अफ़सोस और कुछ वर्जना के स्वर में बोली, “हमारे ज़माने मे ...”

युवा स्त्री कुछ सोचती हुई, कुछ ठिठकती, कुछ हिम्मत बाँधती हुई, जैसे कुछ पूछती हुई सी, दूर क्षितिज की ओर देखती हुई बोली,“हमारे ज़माने में ... ”

(11मार्च,2018)
००

क्रमशः
कविता कृष्णपल्लवी




परिचय :
सामाजिक-राजनीतिक कामों में पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से सक्रियता।
पिछले बारह वर्षों से कविताएं और निबंध लेखन
हिन्‍दी की विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और लेख प्रकाशित
फिलहाल निवास देहरादून

गुमनाम और की डायरी का भाग एक नीचे लिंक पर पढ़िए




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