गुमनाम औरत की डायरी का एक और इंदराज
कविता कृष्णपल्लवी
भाग दो
(एक)
मेरे पास एक करामाती कोट है, जिसे पहनकर मैं लोगों की नज़रों से ओझल हो जाती हूँ और महान होने या बनने का मुग़ालता पालने वाली आत्माओं की तस्वीरें नागिन की तरह अपनी आँखों के कैमरे में क़ैद करती रहती हूँ |
मेरे पास जादुई जूतियों की एक जोड़ी है, जिसे पहनकर मैं मनहूसों, पाखंडियों और कूपमंडूकों की घेरेबंदियों से भाग निकलती हूँ, उड़कर, पवन वेग से |
मेरे पास सपनों और कविताओं का एक जादुई छाता है जो मुझे उदासियों और एकाकीपन की ठण्डी बारिश से बचाता है |
मेरे पास अपने दुखों और हठों के कवच और कुंडल हैं, जो मेरी आत्मा को क्षुद्रता भरे जीवन और कुरूप मृत्यु से बचाते हैं |
मैं पंखों वाले जिस गर्वीले घोड़े की सवारी करती हूँ, वह मुझे विजय तक तो शायद न ले जाये, लेकिन वीरोचित पराजय तक ज़रूर ले जाएगा, या फिर हो सकता है कि एक उदात्त, काव्यात्मक मृत्यु तक |
(10, मार्च,2018)
(दो)
बूढ़े आदमी ने शिकायताना अंदाज में कहा, “हमारे ज़माने में ...”
युवा आदमी ने मेज पर मुक्का ठोंककर, बूढ़े आदमी को अवहेलनापूर्ण निगाहों से देखते हुए, अतिआत्मविश्वास के साथ कहा, “हमारे ज़माने में ...”
बूढ़ी स्त्री ने दोनों को उचटती निगाहों से देखा, फिर बेटी को शंकालु निगाहों से देखा और कुछ ईर्ष्या, कुछ अफ़सोस और कुछ वर्जना के स्वर में बोली, “हमारे ज़माने मे ...”
युवा स्त्री कुछ सोचती हुई, कुछ ठिठकती, कुछ हिम्मत बाँधती हुई, जैसे कुछ पूछती हुई सी, दूर क्षितिज की ओर देखती हुई बोली,“हमारे ज़माने में ... ”
(11मार्च,2018)
००
क्रमशः
परिचय :
सामाजिक-राजनीतिक कामों में पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से सक्रियता।
पिछले बारह वर्षों से कविताएं और निबंध लेखन
हिन्दी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और लेख प्रकाशित
फिलहाल निवास देहरादून
गुमनाम और की डायरी का भाग एक नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.in/2018/05/blog-post_20.html?m=1
कविता कृष्णपल्लवी
भाग दो
(एक)
मेरे पास एक करामाती कोट है, जिसे पहनकर मैं लोगों की नज़रों से ओझल हो जाती हूँ और महान होने या बनने का मुग़ालता पालने वाली आत्माओं की तस्वीरें नागिन की तरह अपनी आँखों के कैमरे में क़ैद करती रहती हूँ |
मेरे पास जादुई जूतियों की एक जोड़ी है, जिसे पहनकर मैं मनहूसों, पाखंडियों और कूपमंडूकों की घेरेबंदियों से भाग निकलती हूँ, उड़कर, पवन वेग से |
मेरे पास सपनों और कविताओं का एक जादुई छाता है जो मुझे उदासियों और एकाकीपन की ठण्डी बारिश से बचाता है |
मेरे पास अपने दुखों और हठों के कवच और कुंडल हैं, जो मेरी आत्मा को क्षुद्रता भरे जीवन और कुरूप मृत्यु से बचाते हैं |
मैं पंखों वाले जिस गर्वीले घोड़े की सवारी करती हूँ, वह मुझे विजय तक तो शायद न ले जाये, लेकिन वीरोचित पराजय तक ज़रूर ले जाएगा, या फिर हो सकता है कि एक उदात्त, काव्यात्मक मृत्यु तक |
(10, मार्च,2018)
(दो)
बूढ़े आदमी ने शिकायताना अंदाज में कहा, “हमारे ज़माने में ...”
युवा आदमी ने मेज पर मुक्का ठोंककर, बूढ़े आदमी को अवहेलनापूर्ण निगाहों से देखते हुए, अतिआत्मविश्वास के साथ कहा, “हमारे ज़माने में ...”
बूढ़ी स्त्री ने दोनों को उचटती निगाहों से देखा, फिर बेटी को शंकालु निगाहों से देखा और कुछ ईर्ष्या, कुछ अफ़सोस और कुछ वर्जना के स्वर में बोली, “हमारे ज़माने मे ...”
युवा स्त्री कुछ सोचती हुई, कुछ ठिठकती, कुछ हिम्मत बाँधती हुई, जैसे कुछ पूछती हुई सी, दूर क्षितिज की ओर देखती हुई बोली,“हमारे ज़माने में ... ”
(11मार्च,2018)
००
क्रमशः
कविता कृष्णपल्लवी |
परिचय :
सामाजिक-राजनीतिक कामों में पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से सक्रियता।
पिछले बारह वर्षों से कविताएं और निबंध लेखन
हिन्दी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और लेख प्रकाशित
फिलहाल निवास देहरादून
गुमनाम और की डायरी का भाग एक नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.in/2018/05/blog-post_20.html?m=1
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