गुमनाम औरत की डायरी में दर्ज कुछ और नोट्स और इम्प्रेशन्स
कविता कृष्णपल्लवी
भाग पांच
अलबम ज़िन्दगी का सही पता नहीं बताते |
*
डायरी इतिहास नहीं होती | उसमें सबकुछ वस्तुगत नहीं होता |
*
जो सपने अपनी मौत मरते हैं, उनकी लाशें नहीं मिलतीं, अपनी मौत मरने वाले परिंदों की तरह |
*
खूबसूरती में यकीन करने के लिए चीज़ों को ख़ूबसूरत बनाने का हुनर आना चाहिए |
*
ताबूतसाज़ की दूकान में एक पर एक कई ताबूत रखे थे | वे किसी बहुमंज़िली इमारत जैसा लग रहे थे |
*
रोमांसवाद था मार्क्सवाद का पूर्वज | एकबार पूर्वजों को ढूँढ़ने मैं अतीत में चली गयी | वहाँ सुन्दर शिलालेखों वाली क़ब्रों से भरा एक कब्रिस्तान था | बड़ी मुश्किल से वहाँ से निकलकर वापस आना हुआ |
*
मैं तुच्छता भरी अँधेरी दुनिया से आयी हूँ | इसलिए तुच्छता से सिर्फ़ नफ़रत ही नहीं करती,उसके बारे में सोचती भी हूँ |
*
दूसरों के बनाये पुल से नदी पार करने की जगह मैं आदिम औजारों से अपनी डोंगी खुद बनाने की कोशिश करती रही और तरह-तरह से लांछित-कलंकित होती रही, धिक्कारी-फटकारी जाती रही, उपहास का पात्र बनती रही | पुरुषों ने शराफ़त की हिंसा का सहारा लिया | पराजित स्त्रियों ने भीषण ईर्ष्या की |
*
कई बुद्धिजीवी मिले | उन्होंने कई दार्शनिक बातें कीं, कविता के बारे में अच्छी-अच्छी बातें कीं और कई बार शालीन हँसी हँसे | उनकी हँसी काँच के गिलास में भरे पानी में पड़ी नक़ली बत्तीसी जैसी थी | मेरा ख़याल है, ये बुद्धिजीवी रात को अपने गुप्त अड्डे पर लौटते हैं और जीवितों का चोला उतारकर प्रेतलोक चले जाते हैं |
*
पुरुष जब पौरुष की श्रेष्ठता का प्रदर्शन करता है, वह स्त्री को बेवफ़ाई के लिए उकसाता है |
*
बुर्जुआ समाज में विशिष्ट व्यक्तिगत इतिहास के चलते जो लोग योग्य और उन्नतचेतस होते हैं, अक्सर वे बहुत अहम्मन्य, दुर्दांत व्यक्तिवादी, घोर आत्मधर्माभिमानी, प्रतिशोधी, आत्मग्रस्त और हुकूमती ज़हनियत के होते हैं | साथ ही, वे गहन असुरक्षा-बोध से भी ग्रस्त होते हैं | पराजय या पीछे छूटना उन्हें असहनीय होता है | शीर्ष तक पहुँचने के लिए वे कुछ भी, कोई अमानवीय से अमानवीय कृत्य करने के लिए भी तैयार रहते हैं |
*
उस अनजान शहर में मैं न जाने कितने वर्षों तक भटकती रही | जब वापस लौटने की घड़ी आयी तो लाख ढूँढ़ने पर भी वह अमानती सामान घर नहीं मिला जहाँ अपनी सारी चीज़ें रखकर मैं उस शहर की सड़कों पर निकल पड़ी थी | मैं उस शहर से वापस आ गयी , लेकिन मेरी बहुत सारी चीज़ें वहीं छूट गयीं | चीज़ें शायद इंतज़ार नहीं करतीं, लेकिन अगर उनसे जुड़ी आपकी ढेरों यादें हों, तो ज़िन्दगी भर उनकी याद तो आती ही रहती है |
(11 अप्रैल, 2018)
गुमनाम औरत की डायरी भाग चार
https://bizooka2009.blogspot.in/2018/05/blog-post_26.html?m=1
कविता कृष्णपल्लवी
भाग पांच
अलबम ज़िन्दगी का सही पता नहीं बताते |
*
डायरी इतिहास नहीं होती | उसमें सबकुछ वस्तुगत नहीं होता |
*
जो सपने अपनी मौत मरते हैं, उनकी लाशें नहीं मिलतीं, अपनी मौत मरने वाले परिंदों की तरह |
*
खूबसूरती में यकीन करने के लिए चीज़ों को ख़ूबसूरत बनाने का हुनर आना चाहिए |
*
ताबूतसाज़ की दूकान में एक पर एक कई ताबूत रखे थे | वे किसी बहुमंज़िली इमारत जैसा लग रहे थे |
*
रोमांसवाद था मार्क्सवाद का पूर्वज | एकबार पूर्वजों को ढूँढ़ने मैं अतीत में चली गयी | वहाँ सुन्दर शिलालेखों वाली क़ब्रों से भरा एक कब्रिस्तान था | बड़ी मुश्किल से वहाँ से निकलकर वापस आना हुआ |
*
मैं तुच्छता भरी अँधेरी दुनिया से आयी हूँ | इसलिए तुच्छता से सिर्फ़ नफ़रत ही नहीं करती,उसके बारे में सोचती भी हूँ |
*
दूसरों के बनाये पुल से नदी पार करने की जगह मैं आदिम औजारों से अपनी डोंगी खुद बनाने की कोशिश करती रही और तरह-तरह से लांछित-कलंकित होती रही, धिक्कारी-फटकारी जाती रही, उपहास का पात्र बनती रही | पुरुषों ने शराफ़त की हिंसा का सहारा लिया | पराजित स्त्रियों ने भीषण ईर्ष्या की |
*
कई बुद्धिजीवी मिले | उन्होंने कई दार्शनिक बातें कीं, कविता के बारे में अच्छी-अच्छी बातें कीं और कई बार शालीन हँसी हँसे | उनकी हँसी काँच के गिलास में भरे पानी में पड़ी नक़ली बत्तीसी जैसी थी | मेरा ख़याल है, ये बुद्धिजीवी रात को अपने गुप्त अड्डे पर लौटते हैं और जीवितों का चोला उतारकर प्रेतलोक चले जाते हैं |
*
पुरुष जब पौरुष की श्रेष्ठता का प्रदर्शन करता है, वह स्त्री को बेवफ़ाई के लिए उकसाता है |
*
बुर्जुआ समाज में विशिष्ट व्यक्तिगत इतिहास के चलते जो लोग योग्य और उन्नतचेतस होते हैं, अक्सर वे बहुत अहम्मन्य, दुर्दांत व्यक्तिवादी, घोर आत्मधर्माभिमानी, प्रतिशोधी, आत्मग्रस्त और हुकूमती ज़हनियत के होते हैं | साथ ही, वे गहन असुरक्षा-बोध से भी ग्रस्त होते हैं | पराजय या पीछे छूटना उन्हें असहनीय होता है | शीर्ष तक पहुँचने के लिए वे कुछ भी, कोई अमानवीय से अमानवीय कृत्य करने के लिए भी तैयार रहते हैं |
*
उस अनजान शहर में मैं न जाने कितने वर्षों तक भटकती रही | जब वापस लौटने की घड़ी आयी तो लाख ढूँढ़ने पर भी वह अमानती सामान घर नहीं मिला जहाँ अपनी सारी चीज़ें रखकर मैं उस शहर की सड़कों पर निकल पड़ी थी | मैं उस शहर से वापस आ गयी , लेकिन मेरी बहुत सारी चीज़ें वहीं छूट गयीं | चीज़ें शायद इंतज़ार नहीं करतीं, लेकिन अगर उनसे जुड़ी आपकी ढेरों यादें हों, तो ज़िन्दगी भर उनकी याद तो आती ही रहती है |
(11 अप्रैल, 2018)
कविता कृष्णपल्लवी गुुमनाम औरत की डायरी का भाग चार नीचे दी गरी लिंक पर पढ़िए |
https://bizooka2009.blogspot.in/2018/05/blog-post_26.html?m=1
रोचक पन्ने डायरी के
जवाब देंहटाएं