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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

18 मई, 2018

मैं क्यों लिखता हूं


मैं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूं !

गणेश गनी

उसे कविता लिखने का शौक है और उसकी आत्मा को संगीत का। कविता दोनों काम कर रही है। वाल्टेयर ने कहा है कि कविता आत्मा का संगीत है। तो यह भी सच है कि संगीत आत्मा का भोजन है। वो चाहता है कि आत्मा को बेहतरीन संगीत मिले इसलिए तो वो बेहतरीन कविता लिखना चाहता है। तो कविता की खोज अनवरत रहती है। कविता न तो रियाज़ से बनेगी और न ही पढ़ने से। रियाज़ से नृत्य में निखार आ सकता है, वाद्ययंत्र भी काबू आ सकते हैं और अध्ययन से बौद्धिकता की सीमा को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन कविता या तो आएगी या नहीं आएगी। यदि तुम चल सकते हो तो नाच भी सकते हो, तुम बोल सकते हो तो गा भी सकते हो। यहां अभ्यास अपना काम करेगा। परंतु कविता का सम्बन्ध आत्मा से है, यह हृदय का विषय है।

गणेश गनी

कविता की दुनिया बड़ी रहस्यमयी है। कविता को चोरी किया जा सकता है, कविता लिखने की तकनीक को कैसे चोरी करोगे। एक बार की बात है। एक चिड़िया और एक मधुमक्खी की मित्रता हुई। चिड़िया ने मधुमक्खी से कहा कि तुम इतना परिश्रम करती हो शहद बनाने में और इन्सान आता है, चुपके से तुम्हारा सारा शहद चुराकर ले जाता है। मधुमक्खी ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा कि भले ही इंसान मेरा बनाया सारा शहद चुरा लेता है, परंतु वो आज तक शहद बनाने की मेरी तकनीक नहीं चुरा पाया।
वैश्वीकरण और बाज़ारवाद के इस दौर में मौलिकता का भी ह्रास हुआ है। आज भी कुछेक अनछुए गांव बचे हैं जहां मौलिकता को महसूस किया जा सकता है, छुआ जा सकता है। गांव में एक खूबसूरत चीज़ यह भी होती है कि घर की दहलीज़ से ही खेतों की सीमा आरम्भ हो जाती है। ढलानों पर बने सीढ़ीदार खेतों के बीच बीच में बचे हुए हिस्से घास के लिए होते हैं और इन्हीं हिस्सों में अखरोट, सेब, नाशपती तथा कुछ जंगली फलों के पेड़ बसे रहते हैं। बसंत के मौसम में इन्हीं स्थानों पर आकाशवर्णी तथा पीले फूल खिलते तो रंग बिरंगी तितलियाँ और भँवरे फूल दर फूल सैर करते। क्या मजाल कि कोई पंखुड़ी भी टूट जाए। चिड़ियों की अलग दुनिया होती। झींगुर भरी दोपहर तान छेड़े रहते। गांव के सामने वाले पहाड़ पर एक बड़ा सा जलप्रपात बहुत ही सुंदर नज़ारा बनाए रखता और इसका सफेद पानी नीचे उतरकर चनाब में जा मिलता तो लगता कि इस झरने की यात्रा पूरी हो गई। अब बताओ कोई लिखे तो क्या लिखे इन सबके लिए! बचपन में ही चनाब छूटी तो रावी के करीब रहने के दिन आए। इधर रावी के आर पार लोकगीतों में भरी प्रेमकथाएं लुभाती रहीं। बाद में पता चला कि रावी का पानी चनाब के पानी से भी तेज गति से बह गया। अचानक वो समय आया जब रावी के पुल को अंतिम बार पार किया। साथ एक डायरी रही जिसके पन्नों पर वो लिखा जो था नहीं। जो था वो कभी लिखा ही नहीं गया। इस यात्रा में आगे बढ़ा तो एक और नदी रास्ते में आई। ब्यास की अपनी रवानगी है। इसके किस्से भी उसी डायरी के पन्नों पर दर्ज हैं।
वह पहले फूलों, तितलियों, चिड़ियों के लिए लिखता था। फिर बड़ा हुआ तो लड़कियों के लिए लिखा। नदियों की तरह ही दोस्त भी बिछुड़े तो लिखा। फिर इधर से नज़र उधर गई तो देखा कि जो लिखा वो तो व्यर्थ था। कलम तो भूख, दुःख, अन्याय, भ्रष्ट व्यवस्था आदि पर लिखने के लिए बनी है। मुद्दे तो ये हैं। उसने अपने मन में एक सुंदर समाज की तस्वीर बना ली। अब बेचैनी बढ़ने लगी। उसको हमेशा इस बात की पीड़ा रहती थी कि जो छवि उसके मन में इस समाज की है वो हकीकत क्यों नहीं बन पा रही। अब उसका क्रोध विद्रोह में बदलने लगा। रातों में नारे लिखना और दोस्तों के साथ मिलकर दीवारों पर चिपकाना, सुबह हड़ताल करना व्यवस्था के ख़िलाफ़। फिर आश्वासन मिलना और केवल वादों में और समझौतों में समस्याओं को हल करने का नाटक खेला जाना। समय बीतता जाता और तस्वीर लगभग वैसी की वैसी ही रहती। उसे डायरी के पन्नों पर अपनी बात लिखने से थोड़ी राहत मिलती। तनाव कम होता।
एक शाम वो सुखना झील के किनारे बैठा बत्तखों और नावों को तैरते देख रहा था। धीरे धीरे अंधेरा बढ़ने लगा। नाव तो किनारे पर लग गईं, पर बत्तखें कहीं नज़र नहीं आईं। झील के उस पार लाइट हाउस की रोशनी झिलमिला रही थी। उसने लौटने से पहले अपनी आँखों में थोड़ी सी रोशनी भरी। उस रात उसने कुछ नहीं लिखा। बस जो लिखा था उसे नष्ट किया। मन हल्का हुआ तो नींद गहरी आई।
समय बीतता गया। पानी बहता गया। दोस्त बनते रहे और बिछुड़ते गए। व्यवस्था में ज़्यादा बदलाव नहीं हुआ। बस चल रहा है जैसे कैसे। रोटी की व्यवस्था में संघर्ष की दिशा मुड़ गई। बेचैनी बराबर बनी रही। मन उदास भी रहता। संगीत सुनना छूटने लगा। सुंदर चीज़ें भी आकर्षित  करने में असमर्थ होने लगीं। लिखने पढ़ने का अब मन ही नहीं करता। उसे और मुश्किल का सामना करना पड़ता। मन में युद्ध चलता रहता। विचारों को किससे साझा करे? अपनी परेशानी में किसे शामिल किया जाए?
एक दिन चलते चलते उसका हाथ एक दोस्त ने धीमे से मगर एक मजबूत पकड़ और अद्भुत गर्माहट के साथ पकड़ा और कहा मैं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूं। उसने महसूस किया कि यह साथ कभी न छूटने वाला है। आंखों में तैरते सपने एक जैसे ही थे। अचानक आसपास तितलियों का उड़ना और फूलों का खिलना इस बात की पुष्टि कर रहा था कि कठिन समय आसान होने जा रहा है। उसने रात में एक कविता लिखी। सुबह संगीत सुना। दिन में सूरज की रोशनी में छिपे सात रंग देखे। तब से वो अपनी अनुभूतियों को लिख रहा है। उसके विषय अब फिर लौट आए हैं। वो फूलों के लिए लिख रहा है, तितलियों के लिए लिख रहा है, हवा के लिए लिख रहा है, मिट्टी के लिए लिख रहा है, एक दोस्त के लिए लिख रहा है.....।
वो इसलिए लिखता है कि बहुत सी अनुभूतियों को व्यक्त नहीं कर पाता, बहुत सी बातों को संकोचवश कह नहीं पाता, छोटी छोटी बातों की शिकायत नहीं करता। वो अपनी सम्वेदनाओं को प्रकट नहीं कर पाता, इसलिए लिखता है। लिखना उसके लिए सम्वाद जैसा है। जाने अनजाने में की गई गलतियों की माफ़ी के लिए लिखता है, जो कुछ अनैतिक है तो उसके विरोध में लिखता है वो। व्यवस्था के खिलाफ लिखता है और सच्चाई के पक्ष में भी डटकर लिखता है। वो इसलिए लिखता है ताकि सच ज़िन्दा रह सके। दरअसल वो जीना चाहता है। अपनी यादों को संजोए रखना चाहता है। कठिन समय में मनोबल ऊंचा बनाए रखना चाहता है। अंतिम बात यह कि फिर सभी कवि क्यों नहीं बन जाते। इसका सीधा उत्तर है कि सभी प्रेम भी तो नहीं करते। प्लेटो ने ठीक ही कहा है कि प्रेम के स्पर्श से सभी कवि बन जाते हैं।
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