भास्कर चौधुरी की कविताएं
भास्कर चौधुरी: का जन्म 27 अगस्त 1969 में रमानुजगंज, सरगुजा (छ.ग.) हुआ। आपने एम. ए. (हिंदी एवं अंग्रेजी) में शिक्षा हासिल की है।
आपका एक काव्य संकलन ‘कुछ हिस्सा तो उनका भी है’ एवं गद्य संकलन (यात्रा वृतांत) ‘बस्तर में तीन दिन’ प्रकाशित है। लघु पत्रिका ‘संकेत’ का छ्टा अंक कविताओं पर केंद्रित है। कविता, संस्मरण, समीक्षा आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। आपने सुनामी के बाद दो दोस्तों के साथ नागापट्टिनम की यात्रा. वहाँ ‘बच्चों के लिए बच्चों के द्वारा’ कार्यक्रम के तहत बच्चों को मदद पहुँचाने की कोशिश, आनंदवन, बस्तर, उत्तराखंड, शांतिनिकेतन की यात्राएं की हैं।
कविताएं
1
दुर्गा
दुर्गा की मूर्ति मानें
मूर्ति एक स्त्री की
बड़ी बड़ी आँखों वाली
फूले फूले गालों वाली
आभूषणों से ढंकी
बला की सुंदर स्त्री
हाथों में उसके
अस्त्र सुसज्जित
जिसकी शक्ति
और सुंदरता के आगे पुरुष
नतमस्तक
शायद इसलिए कि
वह बोलती नहीं है
चुप है
हिलती डुलती नहीं
जड़ है स्थिर अपनी जगह
देखती हुई खुली आँखों से
पुरुषों को
पुरुषोत्तम राम के वंशज
नतमस्तक...
2
हँसी
एक
बाबा कहते हैं
हँसना ज़रूरी है
दो वक्त खाने की तरह
तो हँसों
हँसों हँसों ठहाके लगा-लगा कर हँसों
दाँत निपोर-निपोर कर हँसों
हँसों बंद कमरे में
खुले में हँसों
कम्पनी गार्डन में
दस-बीस-तीस-चालीस मिल कर हँसों
हँसों कि लेटे हो तब भी
कि उठ कर बैठे हो
या बैठ कर उठे हो
घास में लोट-लोट कर हँसों
कीचड़ में लथ-पथ होकर हँसों
कूद-फांद कर
हाथ-पैर हवा में फेंककर
कि मुट्ठियाँ भींचकर या खोलकर हँसों
पर हँसों
हँसों कि बाबा कहते हैं
ज़रूरी हैं हँसना
कि बच्चा हँसता है माँ के पेट में
इधर से उधर, उधर से इधर तैरकर
जन्म से पहले हर बच्चा जैसे
स्वीमिंग पूल में तैर रहा हो
और हँसते हँसते लात जमाता है पानी में वैसे ही
तुम भी हँसों
हँसों जैसे स्वीमिंग पूल हो हँसी का
और तुम लगा रहे हो हँसी के समरसॉल्ट
हँसों कि हँसने लायक ही है
बाहर की दुनिया
चार्ली चैपलीन की तरह हँसों
कि जिसके रोने में टीवी या फिल्म के परदे पर
हँसी दिखाई देती है दुनिया को
हँसों ऐसे हँसों कि तुम्हारे रोने में भी पैदा हो
हँसी की तरंगें
हँसों ऐसे हँसों कि भूल जाओ
मर रहे हैं बच्चे और नौजवान
कीड़े मकोड़ों की तरह बिलबिलाकर
किसी पेस्टीसाइड की मार पड़ी हो जैसे
हँसों ऐसे हँसों कि खो जाए तुम्हारी हँसी में
गौरी लंकेश का हँसता हुआ चेहरा
और तुम्हारी आँखों के रेटिना से पुंछ जाए
ऐसी कोई भी तसवीर जहाँ
गौरी लंकेश गोविंद पानसरे दाभोलकर या कलबुर्गी की
खून सनी लाशें पड़ी हो फर्श पर
या धरती पर धूल में लिथड़ी
हँसों केवल हँसते रहो
कि हँसना ज़रूरी है दो वक्त के खाने की तरह
बाबा कहते हैं ...!!
दो
वह हँसा
वह भी हँसा
दोनों मिलकर हँसे
हँसते रहे ...
उनकी हँसी
कोई पहाड़ी नाले का पानी तो है नहीं
कि ठहर गई बारिश
और थम गई हँसी
उनकी हँसी समुद्र है
जिसमें घुल सकती है अनगिनत हँसियाँ ...
उन हँसियों पर काबू पाना
‘उनके’ बस का नहीं !!
3
तानाशाह
एक
उससे न
चीटियाँ डरती हैं
न कोई चूहा
वह स्वयं डरता है कॉकरोच से
और कॉकरोच देखते ही
बंदूक तान देता है
शह और मात के खेल का उस्ताद
तानाशाह वह
समुद्र की ओर देखकर पेशाब करता है
और डूबा देगा आधी दुनिया
समुद्र के पानी में
ऐसा सोचता है...
दो
वह नाश्ते में फल खाता है
उसे पपीता बेहद पसंद है
सूखी चपाती बिना नमक वाली दाल
और सलाद में चुकंदर
या खाने की ऐसे ही कुछ और चीजें
उसके दोपहर का भोजन है
गाय का दूध
वह भी बिना मलाई वाला
रात को बस इतना ही
सादगी की मिसाल है वह
अपने साथियों के बीच
जो सबके सब अय्याश हैं
गुरेज़ नहीं तानाशाह को
उसके जुम्लों में
आमिष शब्दों के प्रयोग से
उसे गुरेज़ नहीं
हत्याओं से
तानाशाह सम्मोहन जानता है
उसे भीड़ को एक ही समय में
हँसना और रुलाना आता है
उसे आता है देश को
ईशारों पर नचाना !!
4
रोहिंग्या
बच्चे नहीं हैं
ये बच्चे
ये रोहिंग्या हैं
इनका जीवित रहना
उन सभी जंतु जानवरों के लिए खतरनाक है
जो इस वक्त धरती पर
मनुष्यों की तरह साँस ले रहे हैं
खतरनाक उन तानाशाहों से भी ज़्यादा
जिनके हाथों में चाभी है परमाणु बमों की
रोहिंग्या मनुष्य नहीं शायद
मच्छरों की कोई प्रजाति का नाम है
एडीज की तरह का
जिससे डेंगु फैलता है
या यूरेनियम जैसा कोई रेडियो एक्टिव पदार्थ
जिसके विकीरण से
पूरी की पूरी धरती का जनाज़ा उठ सकता है !!
5
हत्या
एक
हैं कुछ हत्यारे
जो हँस रहे हैं
उन्हें पता है कि
हत्या कर हँसा जा सकता है
उन्हें पता है हत्या की सजा
उनके लिए मुकर्रर नहीं है
कुछ ऐसे भी हैं जो
शामिल नहीं है हत्या में
और दूर हैं हत्यास्थल से
पर दूरबीन सटाए आँखों से
नज़र रखते हैं हत्याओं पर
हँस रहे हैं वे भी
वे दरअसल
हत्यारों से भी खतरनाक है
वे ही तय करते हैं
उन पात्रों को
जिनकी करवानी होती है हत्या
हत्यास्थल भी
वे ही तय करते हैं...
दो
वे हँसते और
हँसते रहे
देर तक
जैसे-जैसे बढ़ती गई हत्यायें...
पर यह क्या
दर्जनों हत्याओं के बाद
अब जबकि थकने लगे हैं हत्यारे
थक चुके हैं वे भी जो
दूरबीन आँखों से सटाए
नज़र रखे हुए थे हत्याओं पर
हँस रहे थे अब से कुछ देर पहले तक
वे थर-थर काँप रहे हैं
जाने किस बात से भयभीत हैं ??
संपर्क:
भास्कर चौधुरी
1/बी/83
बालको (कोरबा)
छत्तीसगढ़
495684
मो. 9098400682
bhaskar.pakhi009@gmail.com
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भास्कर चौधुरी: का जन्म 27 अगस्त 1969 में रमानुजगंज, सरगुजा (छ.ग.) हुआ। आपने एम. ए. (हिंदी एवं अंग्रेजी) में शिक्षा हासिल की है।
भास्कर चौधुरी |
आपका एक काव्य संकलन ‘कुछ हिस्सा तो उनका भी है’ एवं गद्य संकलन (यात्रा वृतांत) ‘बस्तर में तीन दिन’ प्रकाशित है। लघु पत्रिका ‘संकेत’ का छ्टा अंक कविताओं पर केंद्रित है। कविता, संस्मरण, समीक्षा आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। आपने सुनामी के बाद दो दोस्तों के साथ नागापट्टिनम की यात्रा. वहाँ ‘बच्चों के लिए बच्चों के द्वारा’ कार्यक्रम के तहत बच्चों को मदद पहुँचाने की कोशिश, आनंदवन, बस्तर, उत्तराखंड, शांतिनिकेतन की यात्राएं की हैं।
कविताएं
1
दुर्गा
दुर्गा की मूर्ति मानें
मूर्ति एक स्त्री की
बड़ी बड़ी आँखों वाली
फूले फूले गालों वाली
आभूषणों से ढंकी
बला की सुंदर स्त्री
हाथों में उसके
अस्त्र सुसज्जित
जिसकी शक्ति
और सुंदरता के आगे पुरुष
नतमस्तक
शायद इसलिए कि
वह बोलती नहीं है
चुप है
हिलती डुलती नहीं
जड़ है स्थिर अपनी जगह
देखती हुई खुली आँखों से
पुरुषों को
पुरुषोत्तम राम के वंशज
नतमस्तक...
2
हँसी
एक
बाबा कहते हैं
हँसना ज़रूरी है
दो वक्त खाने की तरह
तो हँसों
हँसों हँसों ठहाके लगा-लगा कर हँसों
दाँत निपोर-निपोर कर हँसों
हँसों बंद कमरे में
खुले में हँसों
कम्पनी गार्डन में
दस-बीस-तीस-चालीस मिल कर हँसों
हँसों कि लेटे हो तब भी
कि उठ कर बैठे हो
या बैठ कर उठे हो
घास में लोट-लोट कर हँसों
कीचड़ में लथ-पथ होकर हँसों
कूद-फांद कर
हाथ-पैर हवा में फेंककर
कि मुट्ठियाँ भींचकर या खोलकर हँसों
पर हँसों
हँसों कि बाबा कहते हैं
ज़रूरी हैं हँसना
कि बच्चा हँसता है माँ के पेट में
इधर से उधर, उधर से इधर तैरकर
जन्म से पहले हर बच्चा जैसे
स्वीमिंग पूल में तैर रहा हो
और हँसते हँसते लात जमाता है पानी में वैसे ही
तुम भी हँसों
हँसों जैसे स्वीमिंग पूल हो हँसी का
और तुम लगा रहे हो हँसी के समरसॉल्ट
हँसों कि हँसने लायक ही है
बाहर की दुनिया
चार्ली चैपलीन की तरह हँसों
कि जिसके रोने में टीवी या फिल्म के परदे पर
हँसी दिखाई देती है दुनिया को
हँसों ऐसे हँसों कि तुम्हारे रोने में भी पैदा हो
हँसी की तरंगें
हँसों ऐसे हँसों कि भूल जाओ
मर रहे हैं बच्चे और नौजवान
कीड़े मकोड़ों की तरह बिलबिलाकर
किसी पेस्टीसाइड की मार पड़ी हो जैसे
हँसों ऐसे हँसों कि खो जाए तुम्हारी हँसी में
गौरी लंकेश का हँसता हुआ चेहरा
और तुम्हारी आँखों के रेटिना से पुंछ जाए
ऐसी कोई भी तसवीर जहाँ
गौरी लंकेश गोविंद पानसरे दाभोलकर या कलबुर्गी की
खून सनी लाशें पड़ी हो फर्श पर
या धरती पर धूल में लिथड़ी
हँसों केवल हँसते रहो
कि हँसना ज़रूरी है दो वक्त के खाने की तरह
बाबा कहते हैं ...!!
दो
वह हँसा
वह भी हँसा
दोनों मिलकर हँसे
हँसते रहे ...
उनकी हँसी
कोई पहाड़ी नाले का पानी तो है नहीं
कि ठहर गई बारिश
और थम गई हँसी
उनकी हँसी समुद्र है
जिसमें घुल सकती है अनगिनत हँसियाँ ...
उन हँसियों पर काबू पाना
‘उनके’ बस का नहीं !!
3
तानाशाह
एक
उससे न
चीटियाँ डरती हैं
न कोई चूहा
वह स्वयं डरता है कॉकरोच से
और कॉकरोच देखते ही
बंदूक तान देता है
शह और मात के खेल का उस्ताद
तानाशाह वह
समुद्र की ओर देखकर पेशाब करता है
और डूबा देगा आधी दुनिया
समुद्र के पानी में
ऐसा सोचता है...
दो
वह नाश्ते में फल खाता है
उसे पपीता बेहद पसंद है
सूखी चपाती बिना नमक वाली दाल
और सलाद में चुकंदर
या खाने की ऐसे ही कुछ और चीजें
उसके दोपहर का भोजन है
गाय का दूध
वह भी बिना मलाई वाला
रात को बस इतना ही
सादगी की मिसाल है वह
अपने साथियों के बीच
जो सबके सब अय्याश हैं
गुरेज़ नहीं तानाशाह को
उसके जुम्लों में
आमिष शब्दों के प्रयोग से
उसे गुरेज़ नहीं
हत्याओं से
तानाशाह सम्मोहन जानता है
उसे भीड़ को एक ही समय में
हँसना और रुलाना आता है
उसे आता है देश को
ईशारों पर नचाना !!
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रोहिंग्या
बच्चे नहीं हैं
ये बच्चे
ये रोहिंग्या हैं
इनका जीवित रहना
उन सभी जंतु जानवरों के लिए खतरनाक है
जो इस वक्त धरती पर
मनुष्यों की तरह साँस ले रहे हैं
खतरनाक उन तानाशाहों से भी ज़्यादा
जिनके हाथों में चाभी है परमाणु बमों की
रोहिंग्या मनुष्य नहीं शायद
मच्छरों की कोई प्रजाति का नाम है
एडीज की तरह का
जिससे डेंगु फैलता है
या यूरेनियम जैसा कोई रेडियो एक्टिव पदार्थ
जिसके विकीरण से
पूरी की पूरी धरती का जनाज़ा उठ सकता है !!
5
हत्या
एक
हैं कुछ हत्यारे
जो हँस रहे हैं
उन्हें पता है कि
हत्या कर हँसा जा सकता है
उन्हें पता है हत्या की सजा
उनके लिए मुकर्रर नहीं है
कुछ ऐसे भी हैं जो
शामिल नहीं है हत्या में
और दूर हैं हत्यास्थल से
पर दूरबीन सटाए आँखों से
नज़र रखते हैं हत्याओं पर
हँस रहे हैं वे भी
वे दरअसल
हत्यारों से भी खतरनाक है
वे ही तय करते हैं
उन पात्रों को
जिनकी करवानी होती है हत्या
हत्यास्थल भी
वे ही तय करते हैं...
दो
वे हँसते और
हँसते रहे
देर तक
जैसे-जैसे बढ़ती गई हत्यायें...
पर यह क्या
दर्जनों हत्याओं के बाद
अब जबकि थकने लगे हैं हत्यारे
थक चुके हैं वे भी जो
दूरबीन आँखों से सटाए
नज़र रखे हुए थे हत्याओं पर
हँस रहे थे अब से कुछ देर पहले तक
वे थर-थर काँप रहे हैं
जाने किस बात से भयभीत हैं ??
संपर्क:
भास्कर चौधुरी
1/बी/83
बालको (कोरबा)
छत्तीसगढ़
495684
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