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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

01 सितंबर, 2024

रीना श्रीवास्तव की कविताएं

बिल्लियाँ












बेहद मुलायम होती हैं

नाज़ुक होती हैं

बड़ी प्यारी होती हैं

रंगबिरंगी बिल्लियाँ

सफ़ेद, काली, भूरी, चितकबरी


पहलू में

आगोश में 

गोद में

और कभी बिस्तर में

दुबक जाती हैं

बिल्लियाँ


पंजों में नाख़ून समेटे

झबरी पूँछ लहराते

मूँछें फहराते

बड़े लाड़ से खेलती हैं

दुलराती हैं

गुर्राती हैं

बिल्लियाँ


बिल्लियाँ

तभी तक रहती हैं

बिल्लियाँ

जब तक महफ़ूज़ रहती हैं

सुरक्षित रहती हैं


हल्की सी आहट हो

खतरे भाँप लेती हैं 

बिल्लियाँ

पंजों के बाहर 

निकलने लगते हैं

नुकीले नाख़ून

पैने दाँत

और पैने हो जाते हैं


पहले गुर्राती हैं

फिर चीखती हैं

और टूट पड़ती दुश्मन पर

दुश्मन चाहे जो हो

जैसा हो

पूरी ताक़त से

भिड़ जाती हैं 

बिल्लियाँ


तब बिल्लियाँ नहीं रह जातीं

बिल्लियाँ

बाघ बन जाती हैं

बिल्लियाँ


लेकिन

ऐसा ही क्यों नहीं होता

लड़कियों के साथ

वे क्यों अंत तक बनी रहती हैं

लड़कियाँ

०००


वक़्त की बात


यूँ तो वक़्त सभी के पास है


जिसके पास कुछ भी नहीं है

वक़्त उसके भी पास है


किसिम किसिम के वक़्त हैं

किसिम किसिम के लोगों के पास


क्या कोई ऐसा भी है

जिसके पास

उसके लिए वक़्त है

जिसके पास सिर्फ़

वक़्त है

और वह भी बीता हुआ

एक रीता हुआ शख़्स

क्या किसी के वक़्त के काम का हो सकता है


वक़्त मिले 

तो ज़रूर बताना!

०००


लकड़बग्घे ख़ूँख़्वार शिकार पर हैं इन्सानी शक़्ल में



मैं पहले ही हरक रही थी

कि जंगल में घर बनाओगे

तो जंगल घर में घुस आएगा

पर तुम नहीं माने


जंगल में जंगल के नियम चलते हैं

और जंगल का नियम है

कि यहाँ कोई नियम नहीं है

जो समर्थ है

जो वहशी है

जो ताक़तवर है

जो ख़ूँख़्वार है

वही नियम है

वही नियामक है

बाकी सब भ्रामक है


इस भ्रम से निकलने के लिए

पहले जंगल से निकलना होगा

या घर से निकालना होगा

भयावह जंगल

जो पूरे घर में पसरा जा रहा है


अब तुम्हीं बताओ

मैं अकेले दम पर

कैसे बचाऊँ अपना घर

जबकि तुम 

जंगल के साथ खड़े हो

०००










रीना श्रीवास्तव 




चित्र:- रमेश आनंद 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार कविता

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  2. अच्छी कविताएं हैं रीना श्रीवास्तव जी की। बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. जंगल में घर घुस आयेगा .....बहुत गहरी बात। बहुत अच्छी कवितायेँ हैं।
    बधाई

    जवाब देंहटाएं