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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

11 सितंबर, 2024

राणा प्रताप की कविताएं

 राणा प्रताप की कविताएं 


एक


मैं आप पर,

और आप मुझ पर

दीया जलाएं!

जीवन प्रकाशित होगा।

बुझे हुवे दीए में 

तेल डाल कर रोशनी

जलाएं।

आज बुद्ध की 

थेरी गाथा

गा उठेगी 

संवेदना में आसूं 

प्रेम की आश चमक जाएगी

जीवन 

उस रक्त पिपासा की 

धार  को

धो देगा कलंक !





चित्र 

फेसबुक से साभार 








इच्छाओं में मरता रहता

करता रोज खोज की बातें,

नया नया सफा पलटता

रखे आलमारी के किताबे।

कौन डिगाता,उलझन देता

मन को पीर पिराते,

जीवन में हिचकोले देता 

मुझको सुख से विसराते।

तपता जीवन,छाया न्यारी

ढूंढ कहां मैं पाया?

थका पसीना, लतपथ काया

गाते चलता जाता 

लोक लोर की बातें।

नभ में तपता प्यासा बादल

मैं धरती पर अकुलाता

हवा भी उसको खोज रही है 

हरियाली को बुलाते।

ढूंढ ढूंढ कर पहलू बदला

करता रोज खोज की बातें

पथ पर अब भी खोज रहा हूं 

अलख ज्योति की किताबें।

०००


दो


आहत और शीथिल काया में

प्रेम के अलौकिक ज्योति जला दे,

मादक नयन स्नेह चितवन से

मूर्छित तन में उमंग जगा दें।

वन उपवन संसार की शोभा

जीव जगत की रचना रचते,

चर अचर सब रत तेरे में

मंद मंद मुस्काते।

सबको देते बल बुद्धि

और समझ के गीत गवाते,

मस्तिष्क लगन के रचना कार

सबको बुद्धि से नहलाते।

कहां से इतना तेज अलौकिक

सुंदर काया लाते,

बल घमंड के तृष्णा में

लोगों को रोज भटकाते।

भनक नहीं लगता जीवन को

काल ग्रास से सब घबराते,

तुम ही जीवन और मृत्यु का

निर्णय तुम ही सुनाते।

जय जय तेरी महिमा अलौकिक

जय हो अलख सिधारे।



तीन 


जो रोते हुए आंखों को

मुस्की उजास दे दें,

लरजते हुए कदमों को

थिरकी उल्लास दे दें।

दुख के जलालत से

मुक्ति का ज्ञान दे दे,

कलपते हुए मन को 

विहंसने का अनोखा संसार दे दे।

दुख में सुख के

जतन का मुकाम दे दें 

आते जाते सपनों का 

खुद में विश्राम दे दें।

तुम्हारे ताकत से रचना

संसार चलता है,

उस ताकत के महिमा का

वंदन बखान दे दें।

हे ईश्वर धरती के दुख का

समाधान दे दें,

आपस के बैर भाव का

राणा निदान दे दें।

०००


कवि परिचय 


मन के खेत में कविता के अनाज हर समय लहरते रहते हैं।संभालने की कोशिश रहती है।

कृतियां=कहानी संग्रह करजा के खातिर।

प्रकाशित रचनाएं= वसुधा, रेत पथ, गुंजन,निकट,साखी और बयां में।


संपर्क 

राणा प्रताप सिंह 

ग्राम मटिहानी खुर्द पोस्ट पकड़ी बुजुर्ग पडरौना जिला कुशीनगर up

274304

मोबाईल 8756894896

2 टिप्‍पणियां:

  1. कविता अपने आप में जीवन के यथार्थ से जुड़ी है और कवि ने इस भावना को बहुत ही सहजता से व्यक्त किया है ।

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  2. आभार व्यक्त कर रह हूं।

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