फ़िलिस्तीनी मुहब्बत
अब्दुल लतीफ़ अक़्ल
जब नहीं था मुमकिन
मैं लाया सौगातें तुम्हारे लिए
महकता रहा तुम्हारा बदन ख़यालों में
तुम्हारी सूनी आँखों में
पड़ें थे कभी मेरे सपने
मुर्दा
मैं चाहता हूँ तुमको अब भी
जब सताती है भूख
सूंघ लेता हूँ तुम्हारी खुशबूदार जुल्फ़े
और पोंछ लेता हूँ आँसू
दर्द और धूल से भरा चेहरा
खिल उठता है
तुम्हारी हथेलियों के बीच आते ही
चित्र
मुकेश बिजौले
लगता है मैं
अभी पैदा ही नहीं हुआ
फिर भी बढ़ रहा हूँ उम्र-दर-उम्र तुम्हारी निगाहों के सामने
सीखता हूँ बहुत कुछ
मेरा वजूद
लेता है शक्ल एक इरादे की
और उड़ जाता है सरहदों के पार
तुम हो मेरा असबाब और नकली पासपोर्ट
हँसता हूँ बिन पकड़े सरहद पार कर जाने की खुशी में
हँसता हूँ शान से
क्या पकड़ पायेगी पुलिस कभी हमें ? अगर पकड़ ले
और कुचल डाले मेरी आँखें
फिर भी, न होगा शिकवा या गिला शर्म धोकर कर देगी मुझे
साफ़ और नर्म
घबराकर, मेरे जुनून और ताक़त से बंद कर दे मुझे किसी तनहा कोठरी में लिख दूंगा तुम्हारा नाम
हर काग़ज पर
ले जाये अगर
फाँसी के तख़्ते पर
बरसाते कोड़े दनादन
अपनी मर्जी के मुताबिक़
सोचूंगा फिर भी
हम हैं दो दीवाने
मौत के दरवाजे पर
तुम्हारा गेहुँआ रंग
है पहले जैसा
मैं और तुम
हैं एक जिस्म एक जान
कुचल दिया जायेगा जब मेरा सर ढकेल दिया जायेगा
सीलन भरे अँधेरे दोजख में
चाहूँगा तुम्हें भूलना तब
और ज्यादा चाहते हुए
०००
कवि का परिचय
अब्दुल लतीफ़ अक़्ल - प्रसिद्ध कवि । इस्त्रायल अधिकृत क्षेत्र में रहते हैं अनेक दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक विषयों पर लेख लिखे जो इनकी कविताओं क बरह ही पसन्द किए गए। इनका सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह 'वह या मौत' है
०००
अनुवादक
राधारमण अग्रवाल
1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में एयरफ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।
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