Poems by Sudha Arora
Translated by C.S.Lakshmi ‘Ambai
कम से कम एक दरवाज़ा
चाहे नक्काशीदार एंटीक दरवाजा हो
या लकड़ी के चिरे हुए फट्टों से बना
उस पर ख़ूबसूरत हैंडल जड़ा हो
या लोहे का कुंडा !
वह घर -- जहाँ माँ बाप की रजामंदी के बगैर
अपने प्रेमी के साथ भागी हुई बेटी से
माता पिता कह सकें --
'' जानते हैं - तुमने गलत फैसला लिया
फिर भी हमारी यही दुआ है
खुश रहो उसके साथ
जिसे तुमने वरा है !
यह मत भूलना ,
कभी यह फैसला भारी पड़े
और पाँव लौटने को मुड़ें
तो यह दरवाज़ा खुला है तुम्हारे लिए ! ''
बेटियों को जब सारी दिशाएं
बंद नज़र आएं
कम से कम एक दरवाज़ा
हमेशा खुला रहे उनके लिए !
चित्र
मुकेश बिजौले
One Single Door, At Least!
It could be a carved antique door
Or a door made of cut pieces of wood
Maybe with a ethnic handle on it
Or a metal hasp
Let the door be of a house
Where the daughter
Has eloped with her lover
Against her parents’ wishes
And the parents are able to say…
“We know you took a wrong decision
Still we pray
Be happy with him
Whom you have chosen
Don’t ever forget
If at any time
The decision of yours goes wrong
And your feet want to turn where you belong
This door will be open for you ! ”
When all doors seem closed
To daughters
Let there be at least one single door
Always open for them!
०००
धूप तो कब की जा चुकी है !
औरत पहचान ही नहीं पाती
अपना अकेला होना
घर का फर्श बुहारती है
खिड़की दरवाजे
झाड़न से चमकाती है
और उन दीवारों पर
लाड़ उँड़ेलती है
जिसे पकड़कर बेटे ने
पहला कदम रखना सीखा था।
औरत पहचान ही नहीं पातीं
अपना अकेला होना
अरसे तक
अपने घर की
दीवारों पर लगी
खूँटियों पर टँगी रहती है।
फ्रेम में जड़ी तस्वीरें बदलती है
और निहारती है
उन बच्चों की तस्वीरों को
जो बड़े हो गए
और घर छोड़कर चले गए
और जिनके बच्चे अब
इस उम्र पर आ गए
पर औरत के ज़ेहन में कैद
बच्चे कभी बड़े हुए ही नहीं
उसने उन्हें बड़ा होने ही नहीं दिया
अपने लिए ....
औरत पहचान ही नहीं पातीं
अपना अकेला होना
सोफे और कुशन के कवर
बदरंग होने के बाद
उसे और लुभाते हैं
अच्छे दिनों की याद दिलाते हैं
घिस घिस कर फट जाते हैं
बदल देती है उन्हें
ऐसे रंगों से
जो बदरंग होने से पहले के
पुराने रंगों से मिलान खाते हों
और पहले वाला समय
उस सोफे पर पसरा बैठा हो .....
औरत पहचान ही नहीं पातीं
अपना अकेला होना
अब भी अचार और बड़ियां बनाती है
और उन पर फफूंद लगने तक
राह तकती है
परदेस जाने वाले किसी दोस्त रिश्तेदार की
जो उसके बच्चों तक उन्हें पहुँचा सके ....
औरत पहचान ही नहीं पातीं
अपना अकेला होना
अब भी बाट जोहती है
टमाटर के सस्ते होने की
कि वह भर भर बोतलें सॉस बना सके
कच्ची केरी के मौसम में
मुरब्बे और चटनी जगह ढूँढते हैं
बरामदे से धूप के
खिसकने के साथ साथ
मुँह पर कपड़े बँधे
मर्तबान घूमते हैं .
बौराई सी
हर रोज़ मर्तबान का अचार हिलाती है
पर बच्चों तक पहुँचा नहीं पाती ...
आखिर मुस्कान को काँख में दबाए
पड़ोसियों में अचार बाँट आती है
और अपने कद से डेढ़ इंच
ऊपर उठ जाती है !
अपनी पीठ पर
देख नहीं पाती
कि पड़ोसी उस पर तरस खाते से
सॉस की बोतल और
मुरब्बे अचार के नमूने
घर के किसी कोने में रख लेते हैं ।
कितना बड़ा अहसान करते हैं
उस पर कि वह अचार छोड़ जाए
और अपने अकेले न होने के
भरम की पोटली
बगल में दबा कर साथ ले जाए ।
फिर एक दिन जब
हाथ पाँव नहीं चलते
मुँह से बुदबुदाहटें बाहर आती हैं
ध्यान से सुनो
तो यही कह रही होती है
अरी रुक तो ! जरा सुन !
धूप उस ओर सरक गई है
ज़रा मर्तबान का मुँह धूप की ओर तो करना ।
नहीं जानती
कि धूप तो कब की जा चुकी है
अब तो दूज का चाँद भी ढलने को है ......
चित्र
जोआन मिरो
The Sunlight Left a Long time Ago
Woman never realizes
When she becomes alone
She sweeps the floor
She dusts the windows and doors
To keep them shining
And she caresses those walls
Holding which her son
Had learnt to take his first steps.
Woman never realises
When she becomes alone
For years she remains as if hung
On the wall-pegs
Of her house.
She changes the photographs in the frames
And looks intently at the photographs
Of those children who have now grown up
And have left home
But children imprisoned in the minds of woman
Never grow up
She never allows them to grow up for her
Woman never realises
When she becomes alone
Discoloured sofa and cushion covers
Still look attractive to her
Reminding her of good old times
When they get torn after use
She changes them into colours
Close to those
That were there before they faded
As if the past is sitting firmly
On those sofas
Woman never realises
When she becomes alone
She still makes pickles and snacks
And waits watching endlessly
Till they catch fungus
Waiting for someone going abroad
Who can carry them for her children…
Even now she waits for
The tomato prices to go down
So that she can fill bottles with sauce
When the raw mango season comes
Murabbas and chutney have to find a place
In the balcony as the sunlight fades
Glazed earthenware with their mouths
Covered with a piece of cloth
Can be seen around
Every morning
She stirs the pickle
But cannot send them to her children…
Finally
With a hidden smile
She distributes the pickle
Among the neighbours
And she feels as if
She has risen a few inches!
She can’t see behind her
That the neighbours take pity on her
And keep the sample bottles of
Sauce, murabbas and pickles
In some corner of the house.
How much they oblige her!
So that she can leave the pickles
And take with her
The tightly held bundle of her illusion
Of not being alone!
And then comes a day
When her limbs become weak
She comes out muttering something …….
Listen to her carefully
She will be saying
Please wait! Please listen!
The sun has shifted to the other side
Please shift the pickle jars towards the sunlight.
Poor She ! ….. does not know
The sunlight has faded a long time ago
Now it is time for the rare moon
Of the second day of the lunar fortnight
To slowly fade away …
०००
सदियों के खिलाफ़ तैयार हो रहा है एक मोर्चा
बाज़ार भरा है नये से नये यंत्रचालित उपकरणो से
लेकिन कुछ भी नहीं है आधुनिक
कुछ भी नहीं है नया
न आय पॉड , न थ्री डी होम थिएटर , न टैब्लेट कम्प्यूटर !
सिर्फ लड़कियों का सिर उठाना है नया
सिर्फ उनका इनकार है नया !
सदियों की चुप्पी के खिलाफ़ बोलना उनका
जबरन कहला ली गई ''हां'' के खिलाफ़
उनका ''नहीं'' है नया !
तुम अपनी हिंस्त्र कामुकता को
लपेटकर प्रेम की चासनी में
अपनी आंखों की लिप्सा में आतुरता सजाकर
रचते हो प्रेम का सब्जबाग़ उनके लिये !
तुमने यही सीखा सहस्त्राब्दियों तक !
ठोकर मार देना एक लड़की का
तुम्हारे प्रस्ताव को
एकदम नया है !
तुम पचा नहीं पाते जब इस इनकार को
तो असलियत पर उतर आते हो
अपने चेहरे पर नकाब बांधे
फेंकते हो उसके मुंह पर तेजाब पीछे से
सामने आकर लड़ने का हौसला नहीं तुममें !
तुम अपनी आतुरता, अपनी हिंसा,अपने प्रतिशोध के साथ खड़े रहो वहीं
जहां सदियों से खड़े हो !
क्योंकि जि़न्दा इंसान ही चला करते हैं आगे रचा करते हैं कुछ नया ।
तुम्हारी बर्बरता के खिलाफ लड़कियों का अपने लिये एक मुकाम बनाना है बिल्कुल नया !
०००
चित्र
गूगल से साभार
A March Against Many Centuries is Being Planned
The market is full of gadgets
But nothing is modern
Nothing is new either
Not iPod
Nor 3D Home theatre
Nor tablet computer
What is new is the
Raised heads of girls
Only their defiance is new!
Speaking against centuries of silence
Against years of “yes”
Their “no” is new!
You carry your violent lust
Covered in the syrup of love
Your eyes smeared with desire
You create a green garden of love
This is what you have learnt
For thousands of years
A girl rejecting your proposal
Is new to you!
When you can’t take this rejection
You become your real self
Hiding your face
You throw acid on her face from behind
You don’t have the courage to
Fight her straight away !
You stand there
With your desire,
With your violence
With your revenge
Where you have been standing
For centuries!
Only the living can
Go forward
Do something new.
Against your savagery
Girls for creating their space for themselves
Is absolutely new!
०००
पीले पत्तों पर ओस की बूंदें
हरे पत्ते
खुश किस्मत हैं
रात की नमी में
उन्हें दुलारती
ओस की बूंदें
जब उन पर गिरती हैं
वे और निखर आते हैं .......
बात करें उन पीले पत्तों की
ओस की बूंदों की नमी से भी
जो हरिया नहीं पाते
और शाख से टूटकर गिर जाते हैं ।
Dew Drops on Yellowed Leaves
Green leaves
Are lucky
In the soft night
They are caressed
By the dew drops
Touched by them
They look abundant…
As for those yellowed leaves
Even the soft touch of the dew drops
Cannot turn them green
Shocked,
They wither and fall.
०००
अकेली औरत का हँसना
अकेली औरत
खुद से खुद को छिपाती है।
होंठों के बीच कैद पड़ी हँसी को खींचकर
जबरन हँसती है
और हँसी बीच रास्ते ही टूट जाती है ......
अकेली औरत का हँसना,
नहीं सुहाता लोगों को।
कितनी बेहया है यह औरत
सिर पर मर्द के साये के बिना भी
तपता नहीं सिर इसका ....
मुँह फाड़कर हँसती
अकेली औरत
किसी को अच्छी नहीं लगती।
जो खुलकर लुटाने आए थे हमदर्दी,
वापस सहेज लेते हैं उसे
कहीं और काम आएगी यह धरोहर !
अकेली औरत
कितनी खूबसूरत लगती है ....
जब उसके चेहरे पर एक उजाड़ होता है
आँखें खोयी खोयी सी कुछ ढूँढती हैं,
एक वाक्य भी जो बिना हकलाए बोल नहीं पातीं
बातें करते करते अचानक
बात का सिरा पकड़ में नही आता,
बार बार भूल जाती है - अभी अभी क्या कहा था।
अकेली औरत
का चेहरा कितना भला लगता है ....
जब उसके चेहरे पर ऐसा शून्य पसरा होता है
कि जो आपने कहा, उस तक पहुँचा ही नहीं।
आप उसे देखें तो लगे ही नहीं
कि साबुत खड़ी है वहाँ।
पूरी की पूरी आपके सामने खड़ी होती है
और आधी पौनी ही दिखती है।
बाकी का हिस्सा कहाँ किसे ढूँढ रहा है,
उसे खुद भी मालूम नहीं होता।
कितनी मासूम लगती है ऐसी औरत !
हँसी तो उसके चेहरे पर
थिगली सी चिपकी लगती है,
किसी गैरजरूरी चीज़ की तरह
हाथ लगाते ही चेहरे से झर जाती है .......
Laugh of a single woman
A single woman
Hides herself from herself.
She yanks out the smile imprisoned between her lips and
Forcibly smiles
And the smile gets broken midway…
People don’t like single women smiling.
How shameless this woman is,
Without a man’s protective shadow on her head
Her head is still raised…
When a single woman laughs aloud
Nobody likes it.
Those who openly want to
pour buckets of sympathy on her
Pull themselves back
Thinking these soft words can be deposited elsewhere!
How beautiful a single woman looks…
When there is desolation on her face
And her eyes look lost
Seeking something,
She can’t even speak a sentence without stammering
All of a sudden, while she speaks
She loses thread of what she is saying,
She forgets very often
What she has spoken a while before.
How nice a single woman’s face looks…
When there is emptiness on her face
And what you speak never reaches her.
She can’t even seem as if she is firmly present anywhere.
She can be a complete person standing before you
But you can see half or only three fourth of her.
Where exactly the remaining parts of her are
And searching for whom
Is something even she does not know.
How innocent such a woman looks!
Laughter remains as a speck on her face
As if it is unnecessary
And the moment you touch it
It falls like a mask from the face…
०००
यहीं कहीं था घर
ज्यादातर घर
ईंट गारे से बनी दीवारों के मकान होते हैं
घर नहीं होते ...
जड़ों समेत उखड़कर
अपना घर छोड़कर आती है लड़की
रोपती है अपने पाँव
एक दूसरे आंगन की खुरदुरी मिट्टी में
खुद ही देती है उसे हवा-पानी , खाद-खूराक
कि पाँव जमे रहें मिट्टी पर
जहाँ रचने-बसने के लिए
टोरा गया था उसे !
एक दिन
वहाँ से भी फेंक दी जाती है
कारण की जरूरत नहीं होती
किसी बहाने की भी नहीं
कोई नहीं उठाता सवाल
कोई हाथ दो बित्ता आगे नहीं बढ़ता
उसे थामने के लिए...
वह लौटती है पुराने घर
जहाँ से उखड़कर आई थी
देखती है - उखड़ी हुई जगह भर दी गई है
कहीं कोई निशान नहीं बचा
उसके उखड़ने का...
फिर से लौटती है वहीं
जहाँ से निकाल दी गई थी बेवजह
ढूँढ नहीं पाती वह जगह ,
वह मिट्टी, वह नमी, वह खाद खूराक !
ताउम्र ढूँढती फिरती है
ईंट गारे की दीवारों के बीच
यहीं कहीं था घर .....
The Home Used To Be Here Somewhere
Many homes are houses
Made of bricks and mortar
They are not homes…
Uprooted
A girl comes
Leaving her home
She plants her feet
In the uneven soil of
Some other courtyard
She waters the soil
And gives it manure
So that her feet
Settle there firmly
Where she has been
Sent to make a home and live.
One day
She is thrown out of there too
No need for reasons
Not even excuses
No one questions
No one moves forward
With stretched arms
To support her…
She comes back to her old home
From where she was uprooted
She notices that the uprooted soil
Has been filled up
Leaving no trace
Of any uprooting…
She returns to the same place
From where, for no reasons,
She was thrown out
She is unable to locate the place
Its soil, its softness, its manure.
She searches for it all her life
Amidst the walls of bricks and mortar
The home used to be here somewhere ! …
०००
परिचय
सातवें दशक में सामने आईं कथाकार और कवयित्री सुधा अरोड़ा का जन्म 4 अक्टूबर, 1946 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ।
उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की, फिर बतौर प्राध्यापक कार्यरत हुईं। बाद में स्वयंसेवी संस्था ‘हेल्प’ के साथ संबद्धता रही और फिर स्वतंत्र लेखन की ओर उन्मुख हुईं।‘रचेंगे हम साझा इतिहास’ और ‘कम से कम एक दरवाज़ा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। उन्होंने कथा-लेखन अधिक किया है जिस क्रम में उनके एक दर्जन से अधिक कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं, जिनमें ‘महानगर की मैथिली’, ‘काला शुक्रवार’, ‘रहोगी तुम वही’ आदि चर्चित रहे हैं। उनका उपन्यास ‘यहीं कहीं था घर’ शीर्षक से प्रकाशित है। ‘आम औरत ज़िंदा सवाल’ और ‘एक औरत की नोटबुक’ में उनके स्त्री-विमर्श-संबंधी आलेखों का संकलन हुआ है। ‘औरत की कहानी’, ‘मन्नू भंडारी सृजन के शिखर’, ‘मन्नू भंडारी का रचनात्मक अवदान’ आदि उनके संपादन में प्रकाशित कृतियाँ हैं। उनके संपादन में तैयार ‘दहलीज को लाँघते हुए’ और ‘पंखों की उड़ान’ कृतियों में भारतीय महिला कलाकारों के आत्म-कथ्यों का संकलन किया गया है।
उनकी कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, फ्रेंच, पोलिश, चेक, जापानी, डच, जर्मन, इतालवी तथा ताजिकी भाषाओं में अनूदित और इन भाषाओं के संकलनों में प्रकाशित हुई हैं।
उन्होंने स्तंभ-लेखन भी किया है और इस क्रम में सारिका में 'आम आदमीः ज़िंदा सवाल', जनसत्ता में 'वामा' कथादेश में ‘औरत की दुनिया’ और फिर ‘राख में दबी चिनगारी’ चर्चित स्तंभ रहे हैं।
उनका योगदान रेडियो नाटक, टी.वी। धारावाहिक तथा फ़िल्म पटकथाओं में भी रहा है जिनमें भँवरी देवी के जीवन पर आधारित 'बवंडर' फ़िल्म का पटकथा-लेखन उल्लेखनीय है। इसके साथ ही वह विभिन्न महिला संगठनों और महिला सलाहकार केंद्रों के सामाजिक कार्यों से जुड़ी रही हैं।
उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के विशेष पुरस्कार, भारत निर्माण सम्मान, प्रियदर्शिनी पुरस्कार, वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड, महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी सम्मान, वाग्मणि सम्मान आदि से सम्मानित किया गया है।
०००
Translater
C.S.Lakshmi ‘Ambai’ (Lakshmi Chitoor Subramaniam ‘Ambai’) Born in 1944, in Coimbatore, C S Lakshmi has been an independent researcher in Women's Studies for
the last more than forty years. She has a Ph.D from Jawaharlal Nehru University, New Delhi. She writes under the pseudonym Ambai in Tamil about love, relationships, quests and journeys and her short story collections have been published in Tamil and also translated into English. She was given the Sahitya Akademi Award in 2021 for her book Sivappuk Kazhuththudan Oru Pachaip Paravai.She is currently the Director of SPARROW (Sound & Picture Archives for Research on Women)
अच्छी कविताएं
जवाब देंहटाएंकमाल की कविताएं , औरत के भीतरी और बाहरी वजूद को पूर्णता में सामने रखने वाली। आपका कथा संसार और कविता संसार दोनों ही लाजवाब हैं।
जवाब देंहटाएंउम्दा कविताएं सुधा जी की , उनकी कविताएं उनकी कहानियों की तरह ही मारक और प्रभावशाली हैं ।
जवाब देंहटाएंकमाल की कविताएँ हैं. कुछ पंक्तियाँ जहाँ मन के कोने को सहलाती हैं तो कुछ इतनी मार्मिक की भीतर तक धंस जाती हैं.
जवाब देंहटाएंउफ़! अंतर्मन को स्पर्श कर गईं आपकी रचनाऍं! कभी ऑंख भर आई तो कभी मौन रहकर स्वयं को सबसे विलग पाया! मन के एकांत में एक नई आहट महसूस हुई! आपकी सशक्त लेखनी को नमन! लाजवाब रचनाकार को सैल्यूट!
जवाब देंहटाएंBeautiful poems! Introducing women once again and making them realise the actual situations. Enjoyed thank you!
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