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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 सितंबर, 2024

मौत उनके लिए नहीं, कविता संग्रह के अनुवादक राधारमण अग्रवाल की टिप्पणी


जिस ज़मीं पर भी खुला मेरे लहू का परचम

लहलहाता है वहाँ अरज़े1फ़िलिस्तीन का अलाम 2

तेरे आदा 3 ने किया एक फ़िलिस्तीं बर्बाद

मेरे ज़ख्मों ने किये कितने फ़िलिस्तीं आबाद

फ़ैज़ 

(1- ज़मीन, 2- झंडा, 3- दुश्मन )

                            

फ़ैज़ ने फ़िलिस्तीन का दर्द महसूस करने के बाद ही यह लाइनें लिखी होंगी। शायद ही कोई होजो फ़िलिस्तीन का इतिहास जानने के बादउसके साथ हुई ज़्यादती से विचलित न होता हो । जानबूझ कर आँखें बन्द कर ली जायें तो बात अलग है । इतिहास ने सम्भवतः किसी और क़ौम या मुल्क के साथ इतना क्रूर मज़ाक नहीं किया । बहरहालफ़िलिस्तीन का वजूद एक सच्चाई है ।

पिछले वर्ष अफ्रो-एशियाई लेखक संघ द्वारा प्रकाशित फ़िलिस्तीनी कहानी संग्रह 'सुबहमें कुछ अनुवाद करने का अवसर प्राप्त हुआ था । यह अपनी तरह का अलग अनुभव था । उसी समय फ़िलिस्तीनी त्रासदी से गहरे रूप में साक्षात्कार हुआ। फिर कविता संग्रह का अनुवाद करने की इच्छा हुई । श्री भीष्म साहनी ने कृपापूर्वक मेरे आग्रह को स्वीकार किया । 'सुबहका जिस तरह से सर्वत्र स्वागत हुआउससे भी उत्साह बढ़ा ।

प्रकाशन पूर्व इन अनुवादों का पाठ जबलपुरभोपालदिल्ली एवं वाराणसी में हुआ। सुधी श्रोताओं ने डूबकर इन्हें सुना । एक ही प्रतिक्रिया थी — स्तब्धता । हिन्दी में इस तेवर की और इतनी संख्या में एक साथ फ़िलिस्तीनी कविताएँ पहली बार प्रकाशित हो रही हैं। इन कविताओं का अनुवाद करके मुझे गहरी आत्मतुष्टि मिली है।

 

कविताओं का अंग्रेज़ी पाठ 'लोटसपत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री ज़ियाद-अब्द-अल-फ़तह ने उपलब्ध कराया। अधिकांश कविताएँ 'द ब्रेथ ऑफ द कन्ट्रीसंग्रह में हैं जो 1990 में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ द्वारा प्रकाशित किया गया था । कविताएँ अगर आपको अच्छी लगें तो इनका श्रेय मूल कविता और कवियों को है। यदि कुछ अटपटा लगे तो यह निश्चय ही मेरे अनुवाद की अक्षमता है।

मैं सर्वश्री भीष्म साहनीज्ञानरंजन और दूधनाथ सिंह के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने समय-समय पर अपने सुझावों से मुझे उपकृत किया । अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का भी कृतज्ञ हूँ जिसने इसके प्रकाशन का दायित्व लिया ।

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चित्र फेसबुक से साभार 



मौत उनके लिए नहीं, कविता संग्रह के अनुवादक 

राधारमण अग्रवाल

इलाहाबाद

22 फ़रवरी, 1991

 

                       


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