हसन जकतान की कविताएं
उनकी ज़िन्दगी
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पुकारो अपने गाँव को
पिता कहो उसे
पुकारो अपने घर को
पिता कहो उसे
बताओ सब कुछ उन्हें
जो देखते हैं अपनी मृत्यु को
अपने सामने घटित होते
वे कभी नहीं मरते
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खेमाइस निम्र की मौत
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कितनी बार
तुम तड़पे होगे
कितनी बार उठ गये होंगे
तुम्हारे नन्हें हाथ
आसमान की तरफ़
कितने तारे टूटे पड़े होंगे, शर्म से
तुम्हारे चमकदार बालों के आगे
कितनी बार तुमने की होगी कोशिश
कितनी बार थर्राये होंगे तुम्हारे हाथ
ऊपर चढ़ने में
कितनी बार तड़पे होंगे दर्द से
जब जब उठाये होंगे हाथ
कितनी बार अकड़ गया होगा तुम्हारा बदन
दहशत से, एक डरे हुए फूल सा
सीढ़ियों पर चढ़ते - आसमान की तरफ़
कितना ठंढा हो गया होगा तुम्हारा जिस्म
घुटन भरी रात में
घर से दूर, हवा में झूलते
शाम, मग़रिब की नमाज के बाद
करते हैं वजू जिससे
पुराने तालाब का पानी भी है शर्मसार
मौत की आहट से,
तुम्हारी नन्हीं उँगनियों से
शायद इसलिये भी
कि पा लिये तुमने
अपने आँसू
सिसकियों के बीच
[11 साल का फ़िलीस्तीनी बच्चा जिसे एलकोड में, 10 मार्च 1988 को जिनो- निस्ट ताकतों द्वारा फाँसी दे दी गई।]
०००
मौत उनके लिए नहीं
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अल अरब जाने के रास्ते
मुर्दे उठ खड़े होते हैं रात में
उतरते हैं पहाड़ियों से
सदियों पुरानी पगडंडियों से
घरों के पीछे से
अंगूर के बागीचों से
यादों में
मासूम नींदों में
अजान में
धूल से अँटे,
ओढ़े कफ़न मौत का
एक के बाद एक
बढ़ते हैं मुर्दे
ढलानों से उतरते
झाड़ झंखाड़ पार करते
उठाते वह सब कुछ
छोड़ गये जो दरिन्दे
माँ के आँसू,
और, जो उँगलियाँ नहीं पोंछ पाईं
चन्द ओस की बूंदें
उठेंगे मुर्दे बार बार
चलेंगे आहिस्ता, धीरे धीरे
धरती के बोझ से बोझिल
तालाबों और पुराने रास्ते से सही रास्ते पर
तालाब की खामोशी के बीच
मेहराबों के नीचे, खंडहर में, बैठेगें मुर्दे
याद नहीं आयेगा कुछ भी
जमीन के नीचे बहता दरिया
सुनाई पड़ती है घोड़ों की हिनहिनाहट
मुर्दे देंगे पहरा रात भर
उनके लिए भला रात क्या
निगाहें टिकी हैं उनकी
मकानों पर
०००
वही है सब कुछ मेरे लिये
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रेगिस्तान में
तलाशते कहीं नखलिस्तान
उतरती है एक फुसफुसाहट
कविता बन, दिल में
देवदूतों की नींद की खातिर
घासों और पत्थर के मेहराबों की खातिर
लहराती, बल खाती घास
करती है प्रार्थना
मेरे वतन की खातिर
मेरा वतन, जो नहीं मारता किसी को यूं ही
वह जमीन
बाँध रक्खा है जिसने मुझे
करती है इशारा
करूँगा देरी अगर, जरा भी मैं
खो जायेगा इशारा
जो बतायेगा रास्ता
और ले जायेगा मुझे
अपने घर तक
अपनी माँ तक
अपने वतन तक
०००
सलाम-I
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तुम नहीं बदले
हो बिल्कुल जैसे के तैसे
हुए नहीं चालीस के भी
उम्र की मार
खड़ी है वेबस देहलीज पर
एक बाल सफ़ेद नहीं
वर्दी पर जरा सी धूल
घावों पर जरा सा कालापन
पिघल रहा है सूरज
तुम्हारे बाजुओं पर
शाम के ठीक चार बजे हैं
तुम नहीं बदले जरा भी
पुकारते हैं नौजवान तुम्हें
आसरा है, सिर्फ़ तुम्हारा
आराम नहीं बदा उसी दम,
उसी कपड़े में
निकल आते हो
रख देते हो अपना दिल चौखट पर
ताकि हम आ जा सकें बेख़ौफ़
चुन लेते हैं हम तुम्हारे जख्मों से फूल
पिघलता हुआ सूरज
महसूस कर सकते हैं हम अपने अन्दर
पचास बरस
तुम जी रहे हो क्या खूब
हर दिल में
हर घर में
हर निकाह में
...हर जख्म में
सुनाई पड़ती है तुम्हारी आवाज़
गलियों में
सरहद की निगरानी चौकियों तक
माँयें बताती हैं यह सब
अपने बच्चों को हर रात
हम छुपा लेते हैं तुम्हारा घोड़ा
तमाशबीनों से
कस देते हैं चमकदार काठी
सुबह, फिर से
तुम हो बिल्कुल वैसे के वैसे
हम सबसे हसीन
बड़े भाई जैसे
हम पहुँचते हैं तुम्हारे पास
बड़ी आस लिए
तुम थाम लेते हो हाथ
सिर्फ थोड़ी सी धूल
लगी है वर्दी पर
पचास साल !
हम हैं यहीं के यहीं
तुम पहुँच गए कहाँ !
०००
सलाम-II
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दुआ है
धरती हो उतनी ही पाक
जितना तुम्हारा दिल
उतनी ही दुआओं से लबरेज़
उतनी ही नर्म
मची है हलचल चारों तरफ़
तुम डटे हो अब भी
पूरे फ़ौज-फाटे के साथ
बढ़ चले
एल कोड की पहाड़ियों की तरफ़
ऐलान कर दिया
तुम्हीं हो बादशाह
ताज नहीं है, तो क्या हुआ
तुम्हारे घुँघराले बाल
क्या कम हैं
किसी ताज से
०००
सभी चित्र गूगल से साभार
कवि का परिचय
हसन जकतान का जन्म 1954 हुआ था उनके तीन कविता संग्रह ' मुंह अंधेरे ', परचम, और बहादुरी, प्रकाशित है। वे फिलिस्तीनी लेखक व पत्रकार संघ के सदस्य रहे हैं। यह परिचय अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए 'पहल' द्वारा प्रकाशित फिलिस्तीनी कविताओं के संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' से लिया गया है। उनके बारे में अधिक जानने की इच्छा से मैंने गूगल को टटोला लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। एक तस्वीर भी नहीं।
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अनुवादक का परिचय
राधारमण अग्रवाल 1947 में इलाहाबाद में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फ़िलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में फ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए 'पहल ' द्वारा प्रकाशित किया गया था। उन दिनों राधारमण अग्रवाल पहल के प्रबंध संपादक थे।
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कविता संग्रह:-
'मौत उनके लिए नहीं'
से साभार
सौजन्य:- सुधा अरोड़ा
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