डरा हुआ आदमी
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डरा हुआ आदमी
हमेशा संशय में रहता है
कि कोई कुछ बोल न दे
उसके अंदर की कमियां
उसे बार-बार बेचैन
करती रहती हैं
और वह अस्थिर बना रहता है
डरा हुआ आदमी
शेखी बघारता है
और अपने को
श्रेष्ठ साबित करने की
कोशिश में वह
लगातार लगा रहता है
डरा हुआ आदमी के अंदर
हमेशा उत्थल-पुथल
मचा रहता है
और वह उसी में
खोए रहना चाहता है
डरा हुआ आदमी
हमेशा डरा हुआ ही रहता है
और ये भावनाएँ
उसके हाव-भाव से
प्रदर्शित हो ही जाती हैं
जिसे समझने में
किसी को कोई
दिक्कत नहीं होती
क्योंकि वह
डरा हुआ आदमी है।
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चित्र
अनुप्रिया
प्रेम करने की उम्र
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प्रेम करने की
कोई उम्र नहीं होती
बल्कि उनके
आत्मिक मिलन से
शुरू किया गया प्रेम
दैहिक हो जाता है
प्रेम की परिभाषा
तो कइयों ने दी है
कि आंखों से शुरू होकर
दोनों जंघाओं के बीच
आकर खत्म हो जाता है
प्रेम की व्यापकता को
अधेड़ उम्र के लोग
सार्थकता प्रदान करते हैं
क्योंकि इनके प्रेम में
पत्नी का विच्छोह
या पति की मनमानी
या पति का तलाक
या पति द्वारा छोड़ देना
जो कुछ भी हो
पर साथ रहने को
दोनों मजबूर होते हैं
और कुछ दिनों बाद
दोनों साथ रहने लगते हैं
इन्हें समाज की
किसी प्रतिक्रिया से
कोई लेना-देना नहीं है
सिर्फ और सिर्फ
अपने तक सीमित
होते जाते हैं
लगातार।
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संबंधों के दायरे
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संबंधों के दायरे
घटते जा रहे हैं
और यह घटते-घटते
सिमटे जा रहे हैं
...और आकर
सिर्फ और सिर्फ
एकल परिवार तक
सिमट गए हैं
एक समय था
जब संबंधों के दायरे
बहुत विस्तृत रूप लिए हुए था
जिसने बड़ी मां, बड़े पापा
छोटी मां, छोटे पापा के सिवाय
कुछ नहीं था
अगर गलती से
कुछ कह दिया तो
मां की डांट
पड़नी निश्चित थी
आज के बच्चे
संबंधों को नहीं जानते हैं
सिर्फ और सिर्फ
जानते हैं तो
नाना-नानी, मामा-मामी
मौसा-मौसी और अपने भाई-बहन को
कैसा समय है यह
कि नई पीढ़ी के अंदर
आते जा रहे हैं बदलाव
जो अब
रुकने का नाम तक
नहीं लेते हैं।
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बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं
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बच्चों के साथ
एक ऐसी अनहोनी
घटनाएं घटती जाती हैं
जिसे वे कह नहीं पाते हैं
अंदर-ही-अंदर
वे बातें पकती रहती हैं
और पकते-पकते
उन्हें आत्महत्या करने को
विवश कर देती हैं
बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं
क्योंकि उनके ऊपर
माता-पिता और घर-परिवार का
अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है
और वे चिंतनशील होते जाते हैं
यही स्थिति उन्हें
आत्महत्या के द्वार तक
पहुंचा देती है
फिर इन्हें इसके आगे
कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है
तभी वे अपनी
जीवन लीला को ही
समाप्त करने को ठान लेते हैं
और कर लेते हैं आत्महत्या
आत्महत्या
वह मान:स्थित है
जो व्यक्ति को
चैतन्य-शून्य बना देती है
और उनके अंदर की चेतना को
धीरे-धीरे विलुप्त कर देती है
फिर इसके सिवाय
उनके पास
कोई चारा ही नहीं बचता।
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बच्चे बड़े हो रहे हैं
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आजकल के बच्चे
बड़े हो रहे हैं
कुछ बड़ा होते ही
सब कुछ जान लेना चाहते हैं
होश संभालते ही
मोबाइल और कंप्यूटर से
खेलना सीख जाते हैं
ज्यों-ज्यों बड़े होते हैं
इनमें उन्हें महारत हासिल होते जाता है
ये वे बातें और कार्य करने लगते हैं
जिन्हें हमें जानने और समझने में
बरसों लग गए थे
बच्चे बड़े हो रहे हैं
पढ़ाई के साथ-साथ
अन्य बातों में भी
उनकी एक अलग
सोच और समझ
विकसित होती जा रही है
क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे हैं
इनके सपनों को पंख लगते
देर नहीं लगती है
बल्कि इसमें रोज-रोज
कुछ-न-कुछ इजाफा ही होते जाता है
क्योंकि ये
रोज-ब-रोज बड़े हो रहे हैं
बच्चों का बड़ा होना
आज के समय के लिए
किसी दुर्घटना से कम नहीं है।
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परिचय
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नीलोत्पल रमेश का (मूल नाम - रमेश प्रसाद सिंह) है। जन्म - 7 फरवरी,1965 ई. बिहार के भोजपुर जनपद के दुलारपुर गाँव में ।शिक्षा - एम.ए.(हिंदी), बी. एड., पी-एच. डी. ।शोधकार्य - 1.हिंदी के विकास में शाहाबाद जनपद का योगदान।2.हिंदी के विकास में आरा नागरी प्रचारिणी सभा का योगदान ।
प्रकाशन - 'मेरे गाँव का पोखरा', 'लीक छाड़ि तीनौं चलै' (कविता-संग्रह), 'कसौटी के दायरे में' (आलोचना), 'शाल वन की धरा से', 'कसौटी पर कविताएं', 'बारूद की फसलें', '21श्रेष्ठ लोक कथाएं, झारखंड' (संपादित)।हिंदी साहित्य की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में एक सौ से अधिक कविताएं ,150 के लगभग समीक्षाएं और दर्जनों कहानियां तथा आलेख प्रकाशित। समय-समय पर साहित्यिक आलेखों का लेखन व प्रकाशन।
'मेह' त्रैमासिक पत्रिका का संपादन।
'प्रसंग' पत्रिका के संपादकीय विभाग में शामिल।
जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान,व्यथित सम्मान , शब्द शिल्पी सम्मान। बिहार सरकार का पांडुलिपि प्रकाशन अनुदान।
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन ,रांची से कविताओं और कहानियों का प्रसारण ।
संप्रति - ओ. पी. जिंदल स्कूल, पतरातू, रामगढ़ (झारखंड) में शिक्षक के पद पर कार्यरत ।
संपर्क - डॉ.नीलोत्पल रमेश
पुराना शिव मंदिर ,बुध बाजार
गिद्दी -ए, जिला - हजारीबाग
झारखंड -829108
मोबाइल -09931117537
ईमेल- neelotpalramesh@gmail.com
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