सिर्फ़ एक बार
ज़कारिया मौहम्मद
सिर्फ़ एक गोली बन्दूक में
ताकि मौत इन्तज़ार कर सके
छुप कर दरवाज़े के पीछे
सिर्फ़ एक फेफड़ा पसलियों के पीछे
ताकि साँस
रौशन कर सके अँधेरे को
सिर्फ़ एक चाभी घर की
ताकि सिवाय भूतों के
कोई दाख़िल न हो सके
सिर्फ़ एक शहर
जागता है दिल में
कसकती है उससे बेदखली
सिर्फ़ एक उम्र,
अकेली वही एक उम्र,
दहशत पैदा करती है
वजूद के लिए
०००
चित्र
फेसबुक से साभार
वाह !
अगर
चारे के लिए कलियाँ और कोंपलें हों,
अगर
खुरों में जड़ी हों चाँदी की नाल,
अगर
हो काठी सोने की
पर,
पर गले के लिए तो होनी ही चाहिये
चमचमाती ख़ूनी लाल लगाम
०००
वक़्त, चाबुक और घोड़े
मैं ठीक कर देता हूँ
घंटे वाली सुई
फिर, मिनट और सेकण्ड वाले काँटे
हाथ की बेसब्र चाबुक
चीख़ती है
तेज, तेज और तेज
घोड़े दौड़ पड़ते हैं सरपट
पागलों की तरह
०००
चरागाह
घास का लुभावना,
बहुत ऊँचा होना
नहीं है सच, उतना ही
जितना पानी का बरसना, न बरसना
बादलों का होना, न होना
घास का क्या
हो सकता है पहुँच जाये
तुम्हारी कमर की ऊँचाई तक
पर क्या लुभा लेगी वह
और चरते रहोगे वहीं जीवन भर
मान कर उसे आखिरी सच
मत चरो, उसी अकेले चरागाह में
दुनियाँ में और भी बहुत से सच है
उस चरागाह के सिवा
०००
कवि का परिचय
जकरिया मोहम्मद युवा फ़िलिस्तीनी कवि । फ़िलहाल फ़िलिस्तीनी पत्रिका 'अल-हुरियाह' के सम्पादक-सचिव । इनका अब तक एक कविता-संग्रह प्रकाशित हुआ है और ये फ़िलिस्तीनी लेखक एवं पत्रकार संघ के सदस्य हैं।
०००
अनुवादक
राधारमण अग्रवाल
1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में एयरफ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।
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