रहेगा ही
मैं यहाँ से निकल तो जाऊँगा
चला जाऊँगा कहीं भी
लेकिन ' यह ' जो है
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
वह भोर से ही ग्वाले का उठना
चारा पानी देना मवेशियों को
घर्र घर्र करते निकलते दूध
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
वो जाती हुई भैंसें गायें
खेत में चरने के लिए
दौड़ती
फुदकती
मकनाती हुईं
कुलांचे भरती हुईं
और वो
घर की ओर लौटते हुए
रम्भाते हुए आना
यों ममता का सागर
छलकाते हुए आना
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
वो सिरी और छब्बी लोहार की
दहकी हुई भठ्ठियाँ
ठक्क ठक्क करती
गूँजती हथौड़े की ध्वनियाँ
बनते गगरे,
लोटे,
करछुल और तावे
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
वो रग्घू और उदल कुम्हार की
पिनपिनाती नाचती चाकें
बनते पुरवे और दियलियाँ
नरिया मोघिया और थपुवे
जिन खपरैलों से सजते छाजन
और वे आदमकद कुंड़े और गगरियाँ
जिसमें ता मूँद कर रखे जाते सुरक्षित
अनाज गुड़ और खाँड़
वो मटके का पानी
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
वो सिवान के पेडों पर
चहकती चहचहाती गौरैया
मक्का और बजरी की
पकती बालियों पर
सुग्गों और पंक्षियों के झुण्ड का उतरना
टीन को बे ताल ही ताल देना
यूं ही नहीं थी
पूरे सिवान में
टीन वादन की चर्चा
खा ले खा ले
जो हो खाना
तुझसे बचा हुआ ही
घर जायेगा दाना
कुछ ऐसे ही
अनगढ़े गीत गाना
उन चिड़ियों को उडाना
या बुलाना
बिठाना
खिलाना
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
गाँव के दक्खिन से बहती गंगा नदी में
पता नहीं आस्था अधिक है
या पाप से मुक्ति की कामना
अथवा नरक का डर
बड़के भोर से ही
लगने लगते गोते
बजने लगते घंटे
गूँजने लगतीं ऋचाएं
झाँझ और करतल ध्वनियों के साथ
गूँजती प्रार्थनाएं
और मस्जिद के कंगुरे से फूटती
अजान की सदायें
नहीं निकल सकेगा
रहेगा ही मुझमें
०००
भिनभिनाना
उन्हें पसंद नहीं
फूलों से भरी हुई घाटियाँ
खुश्बुओं से महकती हुई घाटियाँ
हरियाली से
लहलहाती और झूमती हुई घाटियाँ
वे वहाँ पर
बारूदों की दमघोंटू गँध भर कर
उसे उजाडे जाने
और जलाये जाने का
जश्न मनाते हैं
क्योंकि उन्हें पसंद नहीं
फूलों पर मड़राती हुईं तितलियाँ
गुनगुनाती हुई
अपनी भाषा में
कुछ गाती हुईं मधुमक्खियाँ
वे उसे
भिनभिनाना कहते हैं
उन्हें पसंद नहीं
यूँ मधुमक्खियों का प्रेम प्रदर्शन
एकता का आह्वान
सामुहिकता का गान
उन्हें पसंद नहीं
दूर दूर तक फूलों का खिलना
उससे रस लेना
छत्ते बनाना
सामुहिकता के पर्याय का जीवंत होना
तो उन्हें कतई पसंद नहीं
०००
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