शुक्ला की ख़ास बात कम शब्दों में बड़ी बात
शीतेंद्र नाथ चौधुरी
कवि-कथाकार शुक्ला चौधुरी का जन्म तत्कालीन मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले में मनेंन्द्रगढ़ के निकट झागड़ाखांड कोलियरी क्षेत्र में 6 जनवरी 1951 में हुआ था। उनकी औपचारिक शिक्षा केवल हायर
सेकंंडरी तक ही हो पाई थी। बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा देने के बाद वे आगे नहीं पढ़ सकीं। बाद में उन्होंने संगीत में विशारद किया था। शिक्षक पिता साहित्यिक रुचि के थे और घर में बांग्ला तथा हिन्दी की सभी अच्छी पत्रिकाएं आती थीं। स्कूल के दिनों से ही शुक्ला शुकतारा( बांग्ला), चंपक, पराग, कादम्बिनी, धर्मयुग आदि पत्रिकाएं तथा शरत साहित्य पढ़ती थीं। वह अपने आसपास की चीजों को लेकर छोटी-छोटी कविताएँ-कहानियाँ लिखती थीं जो स्कूल की कापियों में ही दर्ज रह जाती थीं। उनका वास्तविक रचनाकर्म शादी के दस साल बाद 1976 में अम्बिकापुर आकाशवाणी की स्थापना के साथ शुरू हुआ। उन्हें आकाशवाणी से अपनी कविताएँ-कहानियां पाठ करने के अनुबंध मिलने लगे। आकाशवाणी से वह लगभग 25 वर्षों तक जुड़ी रहीं। बीच में स्थान परिवर्तन के कारण कुछ वर्षों तक रायपुर आकाशवाणी भी जाती रहीं। आकाशवाणी के साथ ही, तब से लगातार उनकी कहानी-कविताएं देशबंधु अवकाश अंक एवं दीपावली विशेषांक में छपती रहीं। कुछ समय बाद नवभारत एवं दैनिक भास्कर के रविवारीय अंकों में भी प्रकाशित हुईं। 1995 के बाद से उनकी कविताएँ वागर्थ, साक्षात्कार, काव्यम्, परस्पर, अक्षरपर्व, दुनिया इन दिनों एवं दोआबा जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। अक्षरपर्व, पाठ, वागर्थ और सर्वनाम में उनकी कहानियाँ प्रकाशित हुईं। अक्षरपर्व के कहानी विशेषांक में उनकी कहानी " लड़की पहाड़ पर " दोबारा छपी। "छत्तीसगढ़ के कवि" काव्य संकलन में उनकी कविताएँ शामिल की गईं तथा वनमाली प्रकाशन के अंतर्गत "कथा मध्यप्रदेश" संकलन में उनकी कहानी "सुनो" छपी। शुक्ला ने बच्चों के लिए भी खूब लिखा। उनकी एक कविता "शिक्षक मुझे वैसा नहीं पढ़ाते" पहले 'चकमक' में छपी, बाद में उस पर एकलव्य ने संगीत के रूप में टेलीफिल्म बनाई। छोटे बच्चों की शिक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानते हुए मध्यप्रदेश शासन के शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका "पलाश" में भी इस कविता को छापा गया। बाद में दो-तीन और बाल पत्रिकाओं ने इस कविता को रंगीन चित्रों के साथ छापा। शुक्ला की पहली किताब बच्चों के लिए लिखी उनकी काव्य नाटिका " हमारी धरती " 1996 के आसपास प्रकाशित हुई थी जो कि कई संस्थाओं में मंचित हुई। बहुत बाद में सन् 2020 में उनका एक उपन्यास "इश्क़" प्रकाशित हुआ जिस पर लेखकों की आठ-नौ बहुत अच्छी समीक्षाएं फेसबुक में पढ़ने को मिलीं। 23 मई, 2021 में कोरोना से उनके निधन के बाद उनका काव्यसंग्रह "अनछुआ रह गया आकाश" प्रकाशित हुआ। अफसोस कि वह अपनी यह किताब देखकर नहीं जा सकीं। उनके कहानीसंग्रह की पांडुलिपि तैयार की जा रही है जो आशा है कि निकट भविष्य में ही प्रकाशित हो सकेगी।शुक्ला का बहुत आग्रह रहता था कि मैं उनकी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करूँ। मैं टालता रहता था कि मुझसे नहीं हो पाएगा। बहुत पीछे लगने पर मैंने कुछ छोटी कविताओं पर कोशिश की और लगा कि कर पाऊंगा। इसी कोशिश में अनूदित कविताएँ हैं ये।
दरअसल शुक्ला ने बहुत सारी दो, तीन या चार पंक्ति अथवा बहुत हुआ तो पांच-छै पंक्तियों की छोटी कविताएँ लिखी हैं। कम शब्दों में अधिक कहना कविता की बड़ी विशेषता है।शुक्ला की कविताओं में यही खास बात है, वह कम शब्दों में बहुत कुछ कहती हैं। उनकी कविताओं में स्थानीयता का लोकव्यापीकरण होता है, इनडिविजुएल का यूनिवर्सेलाइज़ेशन होता है। उनकी कविता में युद्ध के विरुद्ध शांति का आग्रह है। वह बंदूक को काट कर बाँसुरी बनाने की बात करती है। उनकी कविताओं में चाँद है, सूरज है, धरती है, आसमान है, तारे हैं, बादल है, नदी है, समुद्र है, पेड़ है, जंगल है, पहाड़ है, मैदान है, फूल है, तितली है, चिड़िया है। चाँद उनका प्रिय नायक है, न जाने कितनी ही कविताएँ हैं उनकी चाँद पर। उनकी कविताओं में इंसान है, इंसान का दु:ख-दर्द है, इतवारी नाम का मज़दूर है, चंपा मछुआरिन है, अंतत: श्रम है और श्रम का सौंदर्य है। उनके लिखे और व्यवहार में कोई फाँक नहीं। वह अपने हाथों पौधों में पानी सीँचती, माटी चढ़ाती, खाद डालती, घर की दीवालों पर रंग खरीद कर ब्रश चलाती, रिक्शा चालकों, ठेले पर चाय बनाने वालों, रेजाओं-मिस्त्रियों, घर में काम करनेवाले वाली बाइयों से वह आत्मीयता से पेश आतीं। वह जाति, धर्म आदि का भेद नहीं मानती थीं।घर में उनकी ओर से पूजा-पाठ, कथा- प्रवचन या धार्मिक आडम्बर का कोई चक्कर नहीं था। मुहल्ले में सार्वजनिक पूजा या उत्सव में वह सामाजिक-सांस्कृतिक भावना के तहत ही भागीदारी करती थीं। वह चीजों को वैज्ञानिक दृष्टि से परख सकती थीं। वह सही मायने में प्रगतिशील चेतना की रचनाकार थीं। यहाँ उनकी जिन कविताओं का अंग्रेजी में तर्जुमा हुआ है उनके खूबसूरत बिंबों से निकलने वाले प्रतीकात्मक अर्थ यकीनन पाठक को प्रभावित करेंगे।
शुक्ला चौधरी की कविताएं
मूल हिन्दी में कविताएँ - शुक्ला चौधुरी
अंग्रेजी भाषा में अनुवाद :
शीतेंद्र नाथ चौधुरी
1
कला
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ये क्या किया
ये कैसे हुआ
तारों ने बनाया नाव और
रात की नदी में बहा दिया
Art
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What's this done
How's this become
Stars have made the boat
And sailed in the night's river.
2
स्त्री
पग -पग धरती नापी
चूल्हा - चूल्हा आग
लिखने वाले ने लिखे
यही तेरा भाग
कागभोर में पनघट भागी
रगड़-रगड़
धोई भोर
बिना खनके
बिना छनके
आंगन आई
जैसे चोर
बिस्तर बर्तन
कलम कागज
कोई न बना
खास
शब्द गर लिखे कुछ कोई
वो भी बकवास.
The Country Woman
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The country woman
Scales the yard step by step
Fires oven by oven
Providence has written so - 'This is thy fate'
Moves at dawn to the water-place by the river-side
Rubbing again and again washes the dawn
Without chime
Without tinkle
Comes to the yard
As if a thief
Neither bed nor the utensils
Neither pen nor the paper
Nothing becomes specific
Words if written any
That too is rubbish...
3
यातना
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मेरी यातना में
तुम रहना
बारिश की तरह
कहना दो मीठे बोल
मुझे झकझोरना
बार-बार
कहना-
सुनो
उठो
लिखो प्रिये.
Torment
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I want you
Remain in my torment
Like the rains
And speak two sweet words
Shake me
Again and again
And ask--
Listen
Arise
Write darling!
4
रंगशाला
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तुम्हारी आँखों की
रंगशाला में
मैं किरदार की तरह
रहती हूँ.
The Theatre
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I remain
Like a character
In the theatre
Of your eyes.
5
पुत्री
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पुत्री
पिता पर लिखती है
पिता की
मां बनकर.
The daughter
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The daughter
Writes on her father
Being mother of the father.
शीतेंद्र नाथ चौधुरी और शुक्ला चौधरी
6
नये पत्ते
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पेड़ की
झुर्रियों पर
नये पत्तों ने
डाले पर्दे.
New Leaves
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The newly born leaves of a tree
Put a cover
On the wrinkles of the tree.
7
चिड़िया
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चिड़िया
मेरे तन को छू कर
उड़ गई
चूम कर
रख गई
एक कविता
मेरे कंधे पर.
The Bird
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The bird
Flew away
having touched my body
Before she did so, she kissed a poem
And kept it on my shoulder.
8
झप्पी
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बूंदें
गिरी नहीं कि
हवा चली नहीं कि
एक दूसरे के
लेने लगे झप्पी.
The Hug
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Just as drops of rain fell
Just as the wind blew
The two started
hugging each other.
9
प्रश्न- उत्तर
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पेड़ एक
हरा प्रश्न
मनुष्य उसका
लाल उत्तर.
Question-Answer
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The tree --
A green question
The human--
Its red answer.
10
भूख
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भूख जब लगती है
रोटी आँखों से होकर
कंठ में पकती है.
The hunger
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When hunger prevails
The bread is baked in the throat
Passing through the eyes.
11
छपाक!
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रात की नदी में
जब डूबा चाँद
मेरी नींद में
आवाज़ आई--
छपाक!
Chhapak!
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When the moon
Immersed in the river of night
The sound echoed in my sleep--
Chhapak!
12
रातभर
मुहब्बत की
रोटी पकती है
तारों भरे आकाश में.
The bread of love
Is cooked for the whole night
In the sky full of stars.
13
घर चलता रहा
..................
मेरी
हंसी थी मीठी
तुम्हारी हंसी थी नमकीन
खर्च होता रहा
घर चलता रहा.
My laughter was sweet
Yours was salty
Expenses incurred
Household needs fulfilled.
14
आश्चर्य
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आश्चर्य कि
तुम्हारे भीतर भी
जान फूंकने के लिए
एक मनुष्य रूपी प्राणी की
ज़रूरत पड़ती है
शिव!
Strange
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It's strange !
Even to infuse life
in you O' Lord Shiva
A human is required.
15
चाँद
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ये चाँद के
घटने का समय है.... और
टेक लगाकर आराम
फरमाने का समय है
क्या नहीं है
मेरे चाँद के पास जैसे
इतवारी के पास एक
झकास सायकिल है
कल उसमें उसने
आगे की तरफ लगाई है
एक बहारी बाती
कहता है इतवरी ये
चाँद की तरह
अंधेरे में
फोकस मारता है
गुलाबी की आँखें
इस रोशनी में
चौंधिया जाती है---सच!
The Moon
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It's the time for the Moon's
reduction in size
And the time for rest taking a support
What is not there with my moon as....
Itwari has a bicycle elegant
Yesterday he got a glistening light clamped
On the front side
Says Itwari, this throws a focus of shining like the moon
In the dark
Gulabi's rosy eyes get blinded in this glaring light---
Blinded indeed!
16
रंग
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पहले-पहल
आकाश
फिर बादल रंगा
फिर रंगी मेरी दो आँखें
देहरी रंगी इतनी
कि तितलियाँ
रंग में लिथड़ गईं
उड़ न पाईं कुछ देर
केतकी जूही
गुलाब, चम्पा हो गये
गुलाब चम्पा रंग गये
गेंदे में
फिर रंगी मैं
और रंगता रहा सब कुछ
जिसे छू रही थी
वह रंग में बदल रहा था.
चित्र-महावीर वर्मा
The Colour
...........
First of all
The sky
Then the cloud
got coloured
Then got coloured
my two eyes
The Threshold got
coloured so much
That the butterflies
got embelished in the colour
And failed to fly for sometime
Ketki juhi rose became the champa
The rose and the champa was coloured into
Marigold
Then got colored I
And remained colouring
all that I was touching
That was getting converted
to colour.
*****
द्वारा - भास्कर
8319273093
बहुत सुंदर कविताएं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सारगर्भित लगा । बधाई शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजी, बहुत गहरे एहसास शुक्ला जी की कविताओं में दिखती है।एक अलग किस्म की रूमानियत।प्रकृति के रंग में रंगी कवियित्री समाज की कृत्रिमता को दुत्कारते हूए लगती है।
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