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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

08 सितंबर, 2024

मौत उनके लिए नहीं फ़िलिस्तीनी कविताएं-तीन



राशिद हुसैन की कविताएं 


लानत है


मैं नहीं देता हक़ 

अपने वतन के जाँबाजों को कि वे रौंदें, 

घास के एक भी टुकड़े को


मैं नहीं देता हक़ 

अपनी बहनों को 

कि वे उठा लें 

और चलायें बन्दूक़


मैं नहीं देता हक़ 

किसी भी बच्चे को 

कि वे करें खिलवाड़, 

और छुयें, किसी बम के गोले को


मैं छीन सकता हूँ 

किसी से उसका कोई भी हक़ 

पर गायब हो जाते हैं सारे के सारे उसूल 

जब जलती हुई निगाहें 

थाम लेती हैं


बगल से गुजरते हुए 

जालिमों के घोड़ों की रासें


मैं नहीं चाहता 

दस साल का मासूम बच्चा 

बन जाए शहीद 

मैं नहीं चाहता 

कोई पेड़ छुपा ले बारूद अपने तनों में 

मैं नहीं चाहता 

मेरे बागीचे के पेड़ों की शाखों से 

झूलते हों फाँसी के फंदे


मैं नहीं चाहता 

मेरे गुलाब की क्यारी 

इस्तेमाल की जाये 

फ़ार्यारग स्क्वाड के दरिन्दों द्वारा


मैं न चाहूँ तो...

पर मैं 

चाह कर भी नहीं चाह पाता 

जब मेरा वतन 

जल गया हो मेरे दोस्तों के जिस्मों के साथ 

जब जल गया हो मेरी ज़िन्दगी का, 

सबसे बेहतरीन वक़्त उनके साथ


तब, 

मैं कैसे रोक सकता हूँ 

अपनी क़लम को हथियार बनने से

०००











फेसबुक से साभार 


आँखों में बसा है-येरूशलम

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तुम्हारी आँखों का रंग 

रंगत है खजूर के पत्ते की 

अंगूर के बेलों की


तुम्हारी आँखों का रंग 

रंगत है मेरी मुहब्बत की 

लहरा रहा है जो प्यारे येरुशलम के लिए 

क़ीमती है यह रंगत, बेशक़ीमत


तुम्हारी आँखों की रंगत से झाँकता जख्म 

है मेरी कविता की तरह 

प्यार जितना गहरा 

देशनिकाले जितना लम्बा


तुम्हारी आँखों का रंग 

मिलता है मेरे पिता से 

लगाये जिन्होंने बहुत से पेड़ 

और गाते रहे खुशी से


तुम्हारी आँखों का रंग 

है उस सिपहसालार जैसा 

खड़ा है जो बिना फौज के


तुम्हारी आँखों का रंग 

है अत्याचार जैसा 

नाक़ाबिले बर्दाश्त


तुम्हारी आँखों का रंग 

रंगत है ताजा फ़सल की 

नये अनाज के दाने सी


तुम्हारी आँखों की रंगत 

है रंग हमारी लड़ाई का 

मेरे दरबदर वतन का


तुम्हारी आँखों का रंग 

मिलता है मेरी हिम्मत और धीरज से 

बिल्कुल मेरी माँ जैसा 

मेरे घावों जैसा 

मेरी दूर खड़ी मंजिल जैसा


तुम्हारी आँखों का रंग 

मिलता है कबूतर से 

पर, 

दरअसल वह है 

मेरे लड़ाकू बाज़ जैसा

०००


कवि का परिचय 



राशिद हुसैन - अधिकृत क्षेत्र वाले कवियों में अग्रणी । 1936 में जन्म हुआ । 1976 में, अमरीका में एक रहस्यमय अग्निकांड में जलकर मृत्यु । इनके संग्रहों में 'सुबह के साथ', 'राकेट', 'फ़िलिस्तीनी कविताएँ' और 'दुनियाँ महरूम नहीं करती बारिश से' प्रमुख हैं। एक दिन वे अस्पताल में अपनी बहन की आँखों के ऑपरेशन का इन्तजार कर ही रहे थे कि उन्हें दो दुःखद घटनाओं की एक साथ सूचना मिली । आँखों के ऑपरेशन की असफलता तथा जून 1967 की शिकस्त । वहीं पर, उन्होंने 'आँखों में बसा है येरूशलम' कविता लिखी ।

०००


अनुवादक का परिचय 


राधारमण अग्रवाल 

1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में फ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।

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